अपराध के खबरें

शर्मसार महसूस कर रहा बिहार का एक गाँव, हर नजर झुकी और चेहरे पर खामोशी


उज्जवल कुमार

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) ।
गाँव के लोग दुःख में सहभागी हो सकते हैं, लेकिन कुकर्म और पाप में शरीक नहीं। औरंगाबाद के कर्मा लहंग गाँव के वाशिंदों की यही सोच है। यह वही गांव है जहाँ साल 2012 के चर्चित निर्भया सामूहिक दुष्‍कर्म व हत्‍याकांड का एक आरोपित अक्षय ठाकुर पला-बढ़ा।
लोगों को यह तकलीफ साल रही कि यहाँ के वाशिंदे के अपराध ने पूरे गाँव को शर्मसार किया है। वहाँ हर नजर झुकी दिख रही तो चेहरे पर खामोशी भी है।

क्‍या है मामला, जानिए,
विदित हो कि साल 2012 के दिसंबर की एक रात दिल्‍ली में चलती बस में एक पारामेडिकल छात्रा के साथ न केवल सामूहिक दुष्‍कर्म किया गया, बल्कि जबरदस्‍त हैवानियत भी की गई। फिर उसे मरने के लिए सड़क किनारे फेंक दिया गया। पुलिस ने मामले का उद्भेदन कर सभी छह अपराधियों को गिरफ्तार किया, जिनमें एक नाबालिग बाल सुधार गृह में तो शेष पांच तिहाड़ जेल भेजे गए। ट्रायल के दौरान मुख्‍य आरोपित ने तिहाड़ में सुसाइड कर लिया। शेष बचे अक्षय सहित चारों की मौत की सजा पर अंतिम मुहर लगने के बाद सोमवार को दिल्‍ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने डेथ वारंट जारी कर दिया। अगर उपरी अदालत से इसपर स्‍टे नहीं लगा तो चारों को 22 जनवरी की सुबह फांसी पर लटका दिया जाएगा।

गलत संगत में बिगड़ बन बैठा गुनहगार

अक्षय ठाकुर का कर्मा लहंग गांव औरंगाबाद जिला के टंडवा थाना क्षेत्र में पड़ता है। वहां सरयू सिंह की गृहस्थी राजी-खुशी चल रही थी। तीन बेटों में अक्षय सिंह ठाकुर से उन्हें कुछ खास उम्मीद थी। भाइयों के साथ अक्षय रोजी-रोटी के जुगाड़ में दिल्ली गया और वहां ऐसी साथ-संगत कर बैठा कि निर्भया कांड का गुनहगार बन गया। अब जबकि डेथ वारंट जारी हो चुका है तो स्वजनों के लिए कोई चारा भी नहीं। हालांकि, वे आखिरी क्षण तक अक्षय की जिंदगी के लिए प्रार्थना और प्रयास करते रहेंगे।

भाई बोले: अंतिम दम तक करेंगे कोशिश

बात करते हुए अक्षय के बड़े भाई विनय सिंह का गला रुंध आता है। वे कहते हैं कि हम लोग न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। हमारे वकील द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। हम लोग अंतिम दम तक लड़ेंगे।

परिवार से गाँववालों को सहानुभूति

दूसरी ओर कर्मा लहंग गाँव का दूसरा कोई वाशिंदा इस मसले पर बात करना भी नहीं चाहता। गाँव के लोग बहुत कुरेदने पर महज इतना कहते हैं कि कानून को अपना काम करना है। अदालत का फैसला शिरोधार्य। गांव में रहने तक अक्षय तो भला ही था, दिल्ली जाकर जाने क्या हो गया! एक अन्‍य ग्रामीण ने कहा कि गाँव के लोग घटना से दुखी हैं। सरयू सिंह के परिवार से सहानुभूति है, वे लोग दुख में सहभागी हो सकते हैं, लेकिन कुकर्म और पाप में शरीक नहीं हो सकते।

उम्र के आखिरी पड़ाव पर पिता

पिता सरयू सिंह जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर हैं। आस-औलाद के लिए मोह-माया से वे भी परे नहीं, लेकिन समाज-सरकार का वास्ता भी है। वैसे उन्होंने ही टंडवा थाने में 21 दिसंबर, 2012 को अक्षय का आत्मसमर्पण कराया था। वहाँ से दिल्ली पुलिस उसे अपने साथ ले गई थी। सामूहिक दुष्कर्म का दोष सिद्ध हो जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फाँसी की सजा सुनाई। स्वजनों ने क्षमा याचिका दायर की, जिसे अदालत खारिज कर चुकी है। अब 22 जनवरी के लिए डेथ वारंट जारी हो चुका है।

कलेजे में हूक, पर जुबान पाबंद

बहरहाल सरयू सिंह के घर चूल्हा-चौका की भी किसी को फिक्र नहीं। कातर आंखों से महिलाएं दुहाई दे रहीं कि ऐसी विपत्ति से किसी का वास्ता नहीं हो। सरयू सिंह की आंखों के आँसू भी एकधार हो चले हैं। कितना हूक है कलेजे में! फिर भी जुबान पाबंद हैं।

खेती-किसानी से चल रही गृहस्थी

अक्षय के अपराध के समय उसके दोनों भाई भी दिल्‍ली में ही रहते थे। लेकिन उस अपराध के कारण दोनों भाइयों को दिल्ली से तड़ीपार होना पड़ा। जिस कंपनी में मुलाजिम थे, उसने काम से बेदखल कर दिया। अब वे खेती-किसानी के भरोसे गृहस्थी की गाड़ी खींच रहे। फांकाकशी की नौबत तो कभी नहीं रही, लेकिन सरयू सिंह की साढ़े चार एकड़ जमीन से पूरे परिवार के लिए खुशहाल जिंदगी का भरोसा भी नहीं कर सकते। ...और अब तो अक्षय से मिला अंतहीन दुख भी है । समस्त्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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