पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । मिथिला हिन्दी के सम्पादक राजेश कुमार वर्मा के अनुसार या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता !
या वीणावरदंडमंडितकरा, या श्वेत पद्मासना !!
या ब्रह्मास्च्युत शंकर प्रभृतिर्भिरदेवाः सदाबंदिताः
सा मां पातु सरस्वती देवी, या निशेष जाड़यापहा !!
जो कुंद फूल, चंद्रमा और वर्फ के हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ स्वेत वस्त्र धारण करती हैं|
जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं||
ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं| हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें||
माँ सरस्वती
--------------
सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है. ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है. इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं. कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती हैं. इसका प्रमाण है माता वैष्णो का दरबार जहॉ सरस्वती, लक्ष्मी, काली ये तीनों महाशक्तियां साथ में निवास करती हैं. जिस प्रकार माता दुर्गा की पूजा का नवरात्रे में महत्व है उसी प्रकार बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का महत्व है.
सरस्वती पूजा के दिन यानी माघ शुक्ल पंचमी के दिन सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक एवं छात्रगण सरस्वती माता की पूजा एवं अर्चना करते हैं. सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं. छात्रगण सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कापी एवं कलम की पूजा करते हैं. संगीतकार वाद्ययंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका की पूजा करते हैं । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।