राजेश कुमार वर्मा
सूर्य को वेदों मे जगत की आत्मा कहा गया है!
मधुबनी,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) ।
सूर्य के बारे मे हमें एक मत नहीं देखी जा रही है, वैसे सूर्य को कई विद्वान ग्रह रूप मे देखते है मैं इसका विरोध नहीं कर सकता! परंतु मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सूर्य जो स्वयं प्रज्वलित रहते हुए और सदैव प्रकाशित व्यवस्था में रहकर दूसरे को भी प्रकाशित करता हो वह कभी मेरे अनुसार ग्रह नहीं हो सकता! हाँ सूर्य को पिंड स्वरुप जरूर कह सकते है!
सूर्य के बारे मे शास्त्र पुराण मे कई विवरण मिलते है देखा जाय तो सभी विवरण एक ही ओर इशारा करता है! सूर्य को वेदों मे जगत की आत्मा कहा गया है! समस्त सचराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है! सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह एक आज सर्वमान्य सत्य है! इतना ही नहीं भारतीय ज्योतिष शास्त्र मे सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है! फिर सूर्य को हम ग्रह कैसे कह सकते है? य़ह मुझे थोड़ा अटपटा लगता है! मतलब धार्मिक और ज्योतिष दृष्टि से भी देखा जाय तो सूर्य वास्तव मे ग्रह नहीं है! मैं व्यक्तिगत रूप से य़ह मानता हूं कि सायद हम सभी को इस विषय को समझने मे चूक हुयी है! अतः हमे सूर्य को ग्रह नहीं, पिंड कहना उचित होगा!
विज्ञान के दृष्टि से भी देखा जाय तो एक अध्यन से पता चलता है कि सूर्य जो हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और इसका ब्यास लगभग 13 लाख 90 हजार किलोमिटर है जो पृथ्वी से लगभग 109 गुना अधिक माना गया है! सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर या 9,29,60,000 मील है! पृथ्वी पर प्रकाश को आने मे सायद 8.3 मिनट का समय लगता होगा! वेसे विज्ञान भी मानते है कि य़ह जलता हुआ विशाल पिंड है! इसके गुरुत्वाकर्षण बल पर ही समस्त ग्रह इसके तरफ खींचे रहते है!
अतः अब और साफ है कि य़ह धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से भी वास्तव मे सूर्य ग्रह नहीं पिंड है!
वेसे आज के आधुनिक विज्ञान ने बेशक काफी तरक्की कर ली है फिर भी मेरा व्यक्तिगत मानना है कि विज्ञान क्या है, इसका कोई स्पष्ट उत्तर मुझे नहीं मिल पाता जिस कारण मै आज के आधुनिक विज्ञान से मैं पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं हो पा रहा हूं! मुझे लगता है कि आज के विज्ञान के पास विज्ञान की कोई सर्व सम्मत परिभाषा नहीं है! हमने एक अध्यन से य़ह पाया कि एक कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार भौतिक जगत की संरचना एवं व्यवहार का प्रयोगों और मापन के द्वारा क्रम बद्ध अध्यन करना, प्राप्त ज्ञान, परिणामों का आख्यान करने के लिए सिद्धांतों का परिपादन करना विज्ञान कहलाता है! हमे य़ह भी कहना उचित होगा कि प्राचीन काल मे हमारे पूर्वजों या प्राचीन ऋषि मुनियों ने ज्योतिष विज्ञान का प्रतिपादन भी इसी पद्धतियों से सम्भवतः किया होगा!
ज्योतिष में किसी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्तियां जीवन की घटनाओं तथा जन्म के समय ग्रहों की स्थिति से जुड़े तथ्यों का संग्रह किया जाता है!
पर्याप्त तथ्यों का अध्ययन, वर्गीकरण करने के पश्चात प्राप्त तथ्यों का संग्रह किया जाता है! जैसे ग्रहों के स्थिति योग के अनुरूप फल प्राप्त होता है!सूर्य जो पिता का प्रतिनिधित्व करता है! यह मेष के 10 अंश पर उच्च और तुला के 10 अंश पर नीच का माना जाता है! सूर्य का भचक्र के अनुसार मुल त्रिकोण सिंह पर 0 अंश से लेकर 10 अंश तक शक्तिशाली फलदायी होता है । नोट - किसी भी प्रकार के त्रुटि होने पर क्षमा चाहता हूं एवं आप सभी का मार्ग दर्शन भी चाहता हूं! मेरा उद्धेश्य किसी के भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही है, हो सकता है अनजान मे गलती हमसे भी हो । समस्त्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित।