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शिवरात्रि पर्व में इस बार 117 वर्ष बाद शुक्र और शनि का विशेष योग बन रहा है


राजेश कुमार वर्मा
दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 20 फरवरी,20 ) । महा शिवरात्रि भगवान भोले नाथ के पूजा के लिए विशेष समय होता है। भगवान भोले नाथ को मनाना बहुत ही आसान माना गया है खासकर बाबा भोलेनाथ को जो निष्ठा और विश्वास के साथ जल से भी अभिषेक करते है तो भी बाबा प्रसन्न होने में देरी नहीं करते।
शिवरात्रि में खासकर आनंद भैरवी साधना बहुत ही अचूक माना गया है जो विशेष कल्याणकारी होता है।
आनंद भैरवी शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप है, अतः जो साधक इसे सिद्ध कर लेता है, उसके साथ आनंद भैरवी पूर्ण रूप से जुड़ जाती है।
आनंद भैरवी का स्वरूप अल्हर नदी की भांति है, क्योंकि इसमें शिवत्व है, निश्चिंतता है, प्रसन्नता का मीठा जल तत्व है।
इस साधना के बारे में कहा गया है कि शुक्रवार के रात्रि से प्रारंभ किया जाता है और शनिवार के रात्रि समाप्त किया जाता है।
यह संयोग ही है कि महा शिवरात्रि पर्व में इस बार 117 वर्ष बाद शुक्र और शनि का विशेष योग बन रहा है जो आनंद भैरवी के साधना के लिए और भी जल्दी विशेष फल देने वाला तथा महत्वपूर्ण है।
इस साधना को पुरुष या स्त्री कोई भी सम्मपन्न कर सकता है। 
आनंद भैरवी स्वरूप में अपने आप में अत्यन्त सौंदर्य युक्त अप्सरा है, जो कि एक तरफ रूप और यौवन से परिपूर्ण है, तो दूसरी ओर धन और सुख सौभाग्य देने में भी सफल है। पंकज झा शास्त्री की संवाद को राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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