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भोजपुरी लोकगीतों की मधुर स्वर डॉक्टर नीतू नवगीत


अनूप नारायण सिंह

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय ) । फूहड़पन और अश्लीलता के कारण लोकगीतों की काफी बदनामी हुई है । अनेक गायक इसी कारण लोकगीतों से मुंह मोड़ रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि लोकगीत हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है और इसकी मिठास हमारे जीवन को रसमय बनाए रखती है । लोकगीत मां की लोरी जैसे होते हैं । यह कहना है बिहार के प्रसिद्ध लोक गायिका डॉ नीतू कुमारी नवगीत का जो कि मुंगेर महोत्सव में भाग लेने के लिए आई हुई हैं । हिंदी साहित्य से डॉक्टरेट करने वाली नीतू कुमारी नवगीत ने लोक गायकी के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है । दूरदर्शन और आकाशवाणी के कई कार्यक्रमों में शिरकत कर चुकी डॉ नीतू कुमारी नवगीत का जन्म वैसे तो रांची में हुआ है लेकिन वह पूरी तरह से बिहार के लोकगीतों के प्रति समर्पित हैं । लोकगीतों के कई एल्बम में उनकी भागीदारी रही है जिनमें बिटिया है अनमोल रतन, गांधी गान, स्वच्छता संदेश, पावन लागे लाली चुनरिया और मोरी बाली उमरिया शामिल हैं । लोकगीतों की पारंपरिक मिठास को बनाए रखने के लिए सदैव प्रयत्नरत डॉ नीतू कुमारी नवगीत ने इस संबंध में विस्तार से बताया कि एक लोक गायिका की क्या इच्छा होती है ? अपने देश की माटी की सोंधी महक से वातावरण सुवासित रहे, अपनी संस्कृति का परचम लहराता रहे और देसज धुनों और देसी गानों की गूंज से हमारा जीवन गुंजित होता रहे । जिन गीतों को हमारी दादी- नानी और उनकी दादी-नानी ने गाया, बड़े प्यार से सहेजा, उन गीतों की परंपरा जारी रहना चाहिए । हर पर्व, हर त्यौहार और जन्म, छठी, सतईसा, मुंडन,उपनयन, शादी-विवाह सहित जीवन के हर अवसर के लिए गीत हमारे गांव में मौजूद हैं, हमारी जड़ों में हैं । कोई लाख कोशिश कर ले, आधुनिकता की चाहे कितनी भी लंबी चादर ओढ़ ले; अपनी जड़ों से कटकर ज्यादा दिन तक जी नहीं सकता । दुनिया का कोई भी बिस्तर मां की गोद की जगह नहीं ले सकता । बड़े-बड़े साहित्यकारों की रचनाएं भी दादी नानी की कहानियों से बड़ी नहीं हो सकती । उसी तरह से लोक संगीत है । पश्चिमी संगीत और फिल्मी संगीत का अपना महत्व है लेकिन लोक संगीत का जीवन में वही स्थान है जो दादी-नानी की कहानियों का है । जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अवसरों पर और जीवन के सबसे चुनौतीपूर्ण मौकों पर हमारा अपना लोक संगीत हमारे साथ खड़ा होता है । हमारे मानस को बनाता हुआ, हमारे विश्वास को बढ़ाता हुआ । भिखारी ठाकुर और महेंदर मिसिर से लेकर विंध्यवासिनी देवी और शारदा सिन्हा तक ने बिहार के लोकगीतों पर काफी काम किया है और इसे विश्वस्तरीय पहचान दी है । एक युवा कलाकार के तौर पर मेरी कोशिश होती है कि लोक गायकी के इन महान कलाकारों ने जो समृद्ध विरासत तैयार की है, उसी को थोड़ा आगे मैं भी बढ़ाऊं । हमेशा कोशिश करती हूं कि लोकगीतों के गायन के समय इसकी आत्मा अक्षुण बनी रहे । इसकी पारंपरिक मिठास और कर्ण प्रियता पर कोई असर ना पड़े । भोजपुरी में हजारों लोकगीत है । अनेक लोकगीतों पर काम हुआ है, लेकिन अभी बहुत काम होना बाकी है । सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में बहुत कुछ गलत भी हुआ है । द्विअर्थी बोल वाले गानों के प्रचलन के कारण भोजपुरी लोक संगीत को बदनामी भी काफी मिली है और स्वनामधन्य सुसंस्कृत लोग इसी आधार पर भोजपुरी गीतों से परहेज भी करने लगे हैं । लेकिन हकीकत तो यही है कि हर क्षेत्र में कुछ अच्छे लोग होते हैं और कुछ खराब लोग । भोजपुरी संगीत के मामले में भी ऐसा है । कुछ कलाकार भोजपुरी गीतों को सड़कछाप संगीत में बदलकर अपना हित साधने में लगे हैं । एक बड़ा श्रोता वर्ग भी ऐसे गीतों को पसंद करता है । लेकिन ऐसा साहित्य के मामले में भी होता है जब हम देखते हैं कि अश्लीलता से परिपूर्ण साहित्य नुक्कड़ की दुकानों पर ज्यादा बिकता है । लेकिन उस आधार पर पूरे साहित्य को गंदा तो नहीं कहा जा सकता है । वस्तुतः नुक्कड़ पर बिकने वाली अश्लील किताबें साहित्य की श्रेणी में रखी ही नहीं जाती है तो फिर लोक संगीत के मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए । सड़क छाप एल्बमों के आधार पर भोजपुरी लोक गायन के संसार को खराब कह देना गलत है । 
इन दिनों व्यवसायिकता हर जगह हावी है । व्यवसायिकता की अंधी दौड़ में हमारा लोक संगीत थोड़ा पिछड़ रहा है । इसलिए हर स्तर पर इसे प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है । सरकारी कार्यक्रमों में बिहार के लोक कलाकारों को ज्यादा से ज्यादा मौका दिया जाना चाहिए । उसी तरह कंपनियों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी लोक संगीत को बढ़ावा देने के लिए आगे आना होगा । लोक संगीत से सामूहिकता का विकास होता है हम परिवार और समाज के साथ-साथ आगे बढ़ने की सोचते हैं । POP और रॉक संगीत जीवन में एकाकीपन ला रहा है । यह अजनबीपन के एहसास को भी बढ़ाता है । लोक संगीत में भौजाई और ननद की चुहलबाजियाँ, सास और बहू का संसार और सुर-बेसुर की परवाह किए बिना साथ साथ मिलकर गाने की परंपरा से समाज में मजबूती आती है । हम अपने आसपास कैसा संसार बनाना चाहते हैं, हम अपनी अगली पीढ़ी को किस प्रकार की संस्कृति विरासत में देना चाहते हैं,इसका फैसला तो हमें ही करना होगा । अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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