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आईएएस बनने की चाहत लेकिन बन गए लेक्चरर मो० रहमान की कहानी


अनूप नारायण सिंह

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 09 फरवरी,20 ) । पटना के मछुआ टोली में कोचिंग क्लास चलाने वाले मो. रहमान आईए एस बनना चाहते थे । इसके लिए उन्होंने कई बार यूपीएससी का एग्जाम दिया। दो बार यूपीएससी का इंटरव्यू भी दिया, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली ।असफलता से रहमान निराश नहीं हुऐ और उन्होंने दूसरे बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया ।इसके बाद रहमान ने कोचिंग खोला और अब तक हजारों छात्रों को अफसर बना चुके हैं । रहमान की खास बात यह है कि वे गरीबों से फीस के नाम पर सिर्फ एक रुपए लेते हैं । रहमान बताते हैं कि मैंने अपनी जिंदगी में गरीबी देखी है. तभी से मैने यह सोच लिया था कि गरीब बच्चों से फीस नहीं लूंगा। इसलिए आज भी मैं गरीब बच्चों से सिर्फ एक रुपये लेता हूं. रहमान ने बताया कि वो 27 ऐसे बच्चों को अपने साथ रखते हैं, जो बेहद गरीब हैं और उनका कोई ख्याल रहने वाला नहीं है। रहमान इन बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा भी उठाते हैं. उनके पालन-पोषण से लेकर पढ़ाई और सभी तरह की जिम्मेदारियां उठाता हूं । गरीब बच्चों के सपने को पंख देने वाले रहमान पर अभिनेता सुनील शेट्टी का प्रोडक्शन हाउस फिल्म बना रहा है । रहमान ने बताया कि कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चे एक-दो हजार या पांच हजार रुपए फीस के तौर पर दे देते हैं. इससे मेरी सारी जरूरतें पूरी होती रहती हैं । करीब 22 साल से मैं कोचिंग में पढ़ा रहा हूं, लेकिन कभी किसी से फीस नहीं मांगी । जो बच्चे सफल होकर निकलते हैं और आज बड़े पदों पर काबिज हैं वो खुद आकर पैसे दे जाते हैं, इससे मेरी जरूरतें पूरी होती हैं और मैं कोचिंग का विस्तार करता हूं ।
रहमान ने बताया कि मेरा एक सपना है कि मैं भविष्य में गुरुकुल खोलूं जहां गरीब और असहाय बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ उनका पालन-पोषण भी हो। गुरुकुल में वैसे बच्चे रहेंगे जिनका इस दुनिया में कोई सहारा नहीं है। कोचिंग से निकले बच्चों से जब बात होती है तब कहता हूं आप सब मेरे इस सपने को साकार करने में मदद करना.रहमान बताते हैं कि 1997 में यूपीएससी में दूसरी बार इंटरव्यू में असफल होने के बाद मैंने रहमान एम के नाम से कोचिंग शुरू की । तब 10-12 बच्चे ही क्लास में थे. 1998 में एक लड़के का चयन यूपीएससी में हुआ। तब यह बात लोगों के बीच में फैल गई कि एक सर बिना फीस के आईएएस की तैयारी कराते हैं. इसके बाद गांव-गांव से लोग पढ़ने आने लगे । 
22 साल में 40 से ज्यादा बच्चे यूपीएससी में सिलेक्ट हो चुके हैं । बीपीएससी में चार सौ से ज्यादा बच्चे सफल हो चुके हैं. चार हजार से ज्यादा बच्चे इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर हैं. 2007-08 बैच की एक छात्रा पिंकी गुप्ता अभी प्रधानमंत्री सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में कार्यरत है।
बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के साथ रहमान हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए भी काम करते हैं. रहमान बताते हैं कि 1994 में दिल्ली से एमए कर रहा था। इसी दौरान ब्राह्मण परिवार की एक लड़की अमिता कुमारी से प्यार हुआ। समाज हमारी शादी के खिलाफ था. इसके बावजूद हमने 1997 में पटना के बिरला मंदिर में शादी की. इस वजह से अब तक 13 फतवे जारी हो चुके हैं । रहमान ने बताया कि दस साल तक हमें किराये पर कोई घर नहीं मिला । पति-पत्नी होकर भी हमें अलग-अलग रहना पड़ा. 2007 में मित्र की मदद से मुझे किराये पर घर मिला तब हम दोनों साथ रहने लगे. 2008 में एक बेटी हुई, जिसका नाम अदम्या है । 2012 में बेटा हुआ उसका नाम अभिज्ञान है. इसके बाद कोचिंग सेंटर का नाम रहमान एम क्लासेज से बदलकर अदम्या अदीति गुरुकुल कर दिया । अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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