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अठाईस बरसों का दर्द अब बन गया है नासूर, गया के बारा में हुए नरसंहार




अनूप नारायण सिंह 

गया, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 12 फरवरी, 20 ) । अठाईस बरसों का दर्द अब बन गया है नासूर,28 वर्षों पूर्व गया के बारा में हुए नरसंहार में जो दर्द उभरी हुई थी वह अभी तक ताजा है। सुनी मांग और सुनी कोख का दर्द लिए बारा की आबोहवा में आज भी दर्द सिसकियां समाहित है।गया जिले की टिकारी प्रखंड अंतर्गत बारा गांव के लोग आज भी 28 साल पहले 12 फरवरी 1992 की उस मनहूस रात को याद कर सिहर जाते हैं। इसी रात को गांव के पश्चिमी हिस्से से आए हथियारबंद दर्जनों दरिदों ने 35 लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी थी। बीच-बचाव में आई महिलाओं को हथियार की बट से बेरहमी से पीटा गया था। महिलाओं ने अपनी आंखों के सामने अपने सुहाग को मिटते देखा। किसी ने बेटा खोया तो कइयों के सिर से पिता का साया उठ गया। बारा नरसंहार ने तत्कालीन राज्य सरकार की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाया था। सरकार ने मृतकों परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की थी। साथ ही एक-एक लाख रुपये देने की भी घोषणा की गई थी, जो मिल गई।गांव के सत्येंद्र शर्मा बताते हैं, नरसंहार के बाद 22 परिवारों को नौकरी मिली, जबकि सभी 35 लोगों के आश्रित को नौकरी देने की घोषणा हुई थी। स्व. शिवजन्म सिंह, स्व. रामअकबाल सिंह, स्व. भुसाल सिंह, स्व. आसुदेव सिंह, स्व. बलिराम सिंह समेत कई अन्य के आश्रित को नौकरी नहीं मिली है।राज्य सरकार ने गांव की सुरक्षा के लिए थाना खोलने से लेकर तमाम विकास योजनाएं पहुंचाने का भरोसा दिया था। गांव में कई मृतकों के आश्रित तत्कालीन सरकार की घोषणा और आज की मौजूदा स्थिति पर असंतुष्टि जताते हैं। बारा नरसंहार में अपने पिता समेत दो चाचा और पांच चचेरे भाई को खोने वाले सत्येंद्र शर्मा कहते हैं कि घटना के बाद सरकार ने पुलिस सुरक्षा बढ़ाते हुए 20 बीएमपी का एक कैंप बनाया था। वह भी साल 1999-2000 में हटा लिया गया। गांव में थाना खोलने के लिए ग्रामीणों ने करीब छह कट्ठा जमीन भी दी है, लेकिन अब तक थाना नहीं बना। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क जैसी योजनाएं भी दुरुस्त नहीं हैं। सत्येंद्र सिंह कहते हैं, सड़क जर्जर हाल में है। दो कमरों में मध्य विद्यालय चल रहा है। अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का सही लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिलता। सलेमपुर गांव के बाके बिहारी शर्मा कहते हैं, जिस हिसाब से आश्रितों का कल्याण होना चाहिए था, नहीं हुआ। गांव में विकास योजनाओं को अच्छी तरह से पहुंचाने की जरूरत है। वहीं, जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि बारा गांव में विकास योजनाओं की जांच कराकर उसे और बेहतर किया जाएगा।अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के प्रवक्ता सत्येंद्र शर्मा कहते हैं, हत्या के सभी अभियुक्तों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी, जो नहीं मिली। सत्येंद्र शर्मा घटना के साल में रांची में अपने मामा जी के यहां रहते थे। जिन चार लोगों को फांसी होनी थी । उसकी सजा उम्र कैद में बदल दी गई। अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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