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महाशिवरात्री पर विशेष :बिहार का सिंहेश्वर स्थान भगवान विष्णु ने स्वयं बनाया था महादेव का मंदिर


ऐसा भी कहा जाता है कि पांडवों ने विराटनगर नेपाल के भीम बांध क्षेत्र में शरण लेने के पश्चात सिंहेश्वर में शिव की पूजा की थी।
मधेपुरा/बिहार, ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 21 फरवरी,20 ) । बिहार के मधेपुरा जिला अंतर्गत सिंहेश्‍वर में महादेव का एक अति प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि सिंहेश्वेर के इस शिव मंदिर को किसी काल में स्वयं भगवान विष्णु ने बनाया था। अनुश्रुतियों के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्म के निमित्‍त पुत्रेष्टि यज्ञ भी यहीं हुआ था।
एक धारणा यह भी है कि शिव पुराण के रुद्र संहिता खण्ड में वर्णित महर्षि दधिचि और राजा ध्रुत के बीच अंतिम संघर्ष यहीं हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि पांडवों ने विराटनगर नेपाल के भीम बांध क्षेत्र में शरण लेने के पश्चात सिंहेश्वर में शिव की पूजा की थी।
मध्ययुग में मंडन मिश्र तथा शंकराचार्य का शास्त्रार्थ भी यहीं हुआ था। मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर स्थान शिव मंदिर को बिहारी बाबा धाम भी कहा जाता है। राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने वाले श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने की वजह से इस जगह का नाम सिंहेश्वर पड़ा। मंदिर काफी पुराना एवं ऐतिहासिक महत्व का है। मंदिर का नीचे का भाग किसी पहाड़ से जुड़ा हुआ है। शिवलिंग स्थापना के संदर्भ में कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है लेकिन इस बारे में कई किदवंती प्रचलित है। प्रचलित एक किदवंती के अनुसार कई सौ साल पहले यब क्षेत्र घने जंगल से घिरा हुआ था।यहां अगल-बगल के गोपालक अपनी गायों को चराने आते थे। एक कुंवारी कामधेनु गाय प्रत्येक दिन एक निश्चित जगह पर खड़ा होती तो स्वतः ही उसके थान से दूध गिरने लगती थी। एक दिन गोपालक ने यह दृश्य खुद देख लिया। सबों ने मिलकर खुदाई की तो शिवलिंग मिला।वहीं प्रचलित एक किदवंती के अनुसार एक बार भगवान शिवहिरण का वेष धारण कर पृथ्वी लोक चले आए। इधर सभी देवी देवता उन्हें ढूंढने लगे इसी बीच पता चला कि भगवान शिव पृथ्वीलोक पर हैं। भगवान ब्रह्मा एवं बिष्णु उन्हें ले जाने पृथ्वीलोक आ गए जहां हिरण तो मिला लेकिन हिरण रूपी भगवान शिव जाने को तैयार न हुए।इसपर भगवान ब्रह्मा एवं बिष्णु ने जबरन ले जाने चाहा लेकिन हिरण गायब हो गए और आकाशवाणी हुई कि भगवान शिव आपको नहीं मिलेंगे। बताया जाता है भगवान बिष्णु के द्वारा स्थापित सिंग ही बाबा सिंहेश्वर नाथ है।
◆मंदिर की विशेषता  
मंदिर मरम्मती के लिए एक बार जब अभियंताओं के दल ने खुदाई की तो देखा गया कि कुछ मीटर नीचे कोई ठोस चीज है। इस वजह से खुदाई नहीं हो पा रही थी।अभियंताओं के दल ने कहा कि शिवलिंग किसी पहाड़ के अग्रभाग पर स्थित है। बताया जाता है कि इसी पहाड़ की वजह से ही कोसी के रौद्र रूप के वावजूद मंदिर को कभी कोई नुकसान नही पहुंचा है।
◆कहा- मंदिर के वरीय पंडा ने 
बाबा सिंहेश्वर धाम की काफी अधिक महत्व है। श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने में कारण पहले इसका नाम शृंगेश्वर था। जो बाद में सिंहेश्वर हो गया। श्रृंगी ऋषि द्वारा किए गए यज्ञ से ही अयोध्या के राजा दशरथ को राम समेत अन्य पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। 
विश्वेन्द्र ठाकुर, वरीय पंडा, सिंहेश्वर मंदिर कहा- पंडा ने
सिंहेश्वर मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है। राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था इसीलिए संतान को चाहत लिए काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा के पास आते हैं।
अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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