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बिहार प्रान्त के सीतामढ़ी जिले का यह लाल पूरे देश के नवोज्ज्वल भाल पर अपनी प्रतिभा की अरुणाई बिखेर रहा है


तरुणाई में ही वस्तु शिल्प के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा लेने वाले डॉ. अरुणोदय सहृदय व्यक्ति और भावुक साहित्यकार होने के साथ ही डॉ0 कुमार अरूणोदय अत्यंत लगनशील और समर्पित समाज-सेवी हैं।

अनूप नारायण सिंह

पटना/सीतामढ़ी, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 06 फरवरी,20 ) । बिहार लेखक, कवि और समाज-सेवी डॉ. कुमार अरुणोदय ने अपने दृढ संकल्प और अथक प्रयास से राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं, समाज के पिछड़े वर्ग के बच्चों तथा वृद्धों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। बिहार प्रान्त के सीतामढ़ी जिले का यह लाल पूरे देश के नवोज्ज्वल भाल पर अपनी प्रतिभा की अरुणाई बिखेर रहा है। तरुणाई में ही वस्तु शिल्प के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा लेने वाले डॉ. अरुणोदय सहृदय व्यक्ति और भावुक साहित्यकार होने के साथ ही अत्यंत लगनशील और समर्पित समाज-सेवी हैं। साहित्य-सृजन, वास्तुशिल्प, रंगमंच, क्रीड़ा, शिक्षा, संगीत और समाज-सेवा आदि में उनकी खास लगन है और ये ही उनके अध्ययन, मनन, अनुसंधान एवं सृजन के क्षेत्र हैं। इन विविध क्षेत्रों में उनकी इस क्रियाशीलता के केंद्र में उनकी वह सघन भावुकता है, जो एक ओर उन्हें अपनी परंपरा से जोड़े रखती है और दूसरी ओर स्वयं के उच्चादर्शों के अनुरूप सुनहरे समाज के निर्माण की ओर प्रेरित करती है।
यदि तटस्थता पूर्वक कहा जाए तो डॉ. अरुणोदय वास्तव में समाज-सेवी से कहीं अधिक समाज-शिल्पी हैं। उनके भीतर किसी कोने में उनकी सोच और कल्पना का एक वर्ग-विहीन, भेदरहित, स्वतंत्रता,समता और बन्धुत्वमय समाज अवस्थित है, जिसे वे वस्तुतः साकार करना चाहते हैं और यहीं से उनके चिंतन, सृजन और क्रियात्मकता की त्रिवेणी फूटती है। उनके व्यक्तित्व और साहित्य के अनुशीलन से ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने स्वप्न को सच में तब्दील करना चाहते हैं और इसके लिए हर वह मार्ग, जो उन्हें समीचीन प्रतीत होता है, उसे अपना लेते हैं। 
कमंडल का बोझ ढोने से यदि अंजुरी गंगाजल से भर जाए तो इससे ज्यादा खुशनसीबी भला क्या हो सकती है ! कदाचित अपनी इसी मंशा के कारण कुमार अरुणोदय जवाबदेहियों से बोझिल होने पर भी सदैव तरोताजा दिखते हैं। वर्तमान में वे आचार्य सुदर्शन फॉउन्डेशन (पटना) के प्रबंधकीय न्यासी, कविवर गोपाल सिंह नेपाली फाउंडेशन के अध्यक्ष, 'आत्मकल्याण-केंद्र' (गुड़गाँव) के न्यासी, 'हमें भी पढ़ाओ' के सचिव, ‘कृष्णा निकेतन' (पटना) के उपाध्यक्ष, 'अनहद' (पटना) के अध्यक्ष, 'बिहार न्यूनतम मजदूरी परामर्शदातृ परिषद' (बिहार सरकार) तथा 'बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन' (पटना) के उपाध्यक्ष एवं 'सिनेयात्रा' के संरक्षक के रूप में अपनी तमाम जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह करने में प्राणपण से जुटे हुए हैं। 
इनमें 'आचार्य सुदर्शन फाउंडेशन' ग्रामीण बच्चों की शिक्षा को समर्पित संस्था है, जो बिहार के ग्रामीण क्षेत्रो में विद्यालय खोलकर गाँव के बच्चो को शिक्षित करने का महत कार्य करती है, जबकि'आत्मकल्याण केंद्र ' का मूल उद्देश्य दलित और पिछड़े वर्ग के स्त्री -पुरुषों को आत्मजागरित करना तथा उन्हें नशा और गरीबी के दलदल से बाहर निकालना है। इस कड़ी में 'हमें भी पढ़ाओ' निःशुल्क शैक्षिक आन्दोलन का अपना अलग महत्व है, क्योंकि यह संस्था गरीब एवं उपेक्षित वर्ग के बच्चों को शिक्षा के माध्यम से समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का भगीरथ प्रयास कर रही है। 'कृष्णा निकेतन' बिहार का लब्धप्रतिष्ठ बालिका विद्यालय है, जो +2 स्तर तक सी. बी. एस. ई. (दिल्ली) से संबद्ध है और पिछले दो दशकों से बालिकाओ की शिक्षा और संस्कार के विकास को समर्पित है। 'अनहद' का उद्देश्य पुरातन भारतीय लोककला व संस्कृति के पुनरुत्थान में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित कराते हुए प्राचीन कलाओं एवं संस्कृति का संरक्षण है, तो'सिनेयात्रा' सकारात्मक चलचित्रों के निर्माण और प्रदर्शन के माध्यम से युवाओं में साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक सजगता का अलख जगाने हेतु संकल्पित है। 'बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन' राज्य की साहित्यिक प्रतिभाओं को समुचित मान-सम्मान दिलाने की दिशा में संकल्पित है।
डॉ. अरुणोदय बिहार सरकार के 'न्यूनतम मजदूरी परामर्शदात्री पर्षद' के सदस्य के रूप में बिहार के श्रमिकों के कल्याण-कार्य में सेवारत हैं। अपनी अछुण्ण समाज-कल्याण-कामना और सेवा भावना के कारण डॉ. कुमार अरुणोदय जहाँ एक ओर निरंतर चर्चित रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुरस्कृत और प्रशंसित भी होते रहे हैं। अगस्त 2017 को इन्हें दुबई में आयोजित समारोह में हमें भी पढ़ाओ संस्था के द्वारा उत्कृष्ट कार्य के लिए बेस्ट इनोवेटिव प्रोग्राम श्रेणी में रॉयल परिवार के बड़े राजकुमार हिस एक्सीलेंसी अल सुहैल जरुनी के हाथों इंटरनेशनल इंडियन बिज़नेस अवार्ड प्रदान किया गया। 2017 में ही न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हमें भी पढ़ाओ के माध्यम से गरीब एवं उपेक्षित बच्चों के शिक्षा हेतु किये गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए विश्वप्रसिद्ध नृत्यांगना पद्म विभूषण सोनल मान सिंह के द्वारा सम्मानित किया गया। 2016 में इन्हें 'लार्ड बेडेन पॉवेल राष्ट्रीय पुरस्कार-2016' दिया गया है। 'स्काउट्स एवं गाइड्स आर्गेनाइजेशन' की ओर से दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार बिहार राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए 22 फ़रवरी 2016 को दिल्ली में दिया गया। गरीब एवं उपेक्षित बच्चों के कल्याण हेतु उत्कृष्ट कार्य करने पर 'इंटरनेशनल ओपन यूनिवर्सिटी', कोलम्बो द्वारा इन्हे डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है और यह उपाधि डॉ. अरुणोदय को श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. डी. एम. जयरत्नेकी अध्यक्षता में आयोजित दीक्षांत समारोह में प्रदान की गयी। कुमार अरुणोदय इससे पूर्व 30 जुलाई, 2011 में नेपाल के उप प्रधानमंत्री के हाथों काठमांडू में भी सम्मानित हो चुके हैं। इस अवसर पर इन्हें'गोल्ड स्टार एशिया इंटरनेशनल अवार्ड -2010 प्रदान किया गया।
झुग्गी -झोपड़ी में गुजर करने वाले बच्चों की शिक्षा के प्रति डॉ. कुमार के मन में रूचि तब पैदा हुई, जब वे नेतरहाट में शिक्षा हासिल कर रहे थे। तब से अब तक वे इस दिशा में पूरे मनोयोग से समर्पित हैं। 'हमें भी पढ़ाओ' मुफ्त शैक्षणिक अभियान के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण के फलस्वरूप “ऑल इंडिया बिजनेस एंड कम्युनिटी फाउंडेशन” ने अप्रैल 2011 में इन्हें शिक्षा-भारती अवार्ड से सम्मानित किया और उससे पूर्व अपने इस अवदान के कारण जनवरी 2005 में वे दिल्ली में 'एक्सीलेंस अवार्ड ऑफ पर्सनल अचीवमेंट' से पुरस्कृत किये गये। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों को ध्यान में रखकर 'कविवर गोपाल सिंह नेपाली फाउंडेशन‘ द्वारा इन्हें युवा साहित्यकार की उपाधि से सम्बोधित करते हुए पटना के आई. आई. बी. एम. सभागार में 'साहित्य भूषण' सम्मान से विभूषित किया जा चूका है। 
शिक्षा को सामाजिक विकास का मुख्य आधार मानकर इन्होंने देश के कई शहरों में युवाओं एवं शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु कार्यशाला एवं गोष्ठियों का आयोजन किया है इनके इस विश्वास एवं कार्यशैली से प्रभावित होकर केंद्रीय विद्यालय संगठन मुंबई द्वारा आयोजित शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में इन्हे मुख्य प्रेरक वक्ता के रूप में आमंत्रित कियागया था, जहाँ सात विभिन्न राज्यों से आये शिक्षक प्रशिक्षण प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह ' भावाशेष' इनकी अत्यंत ख्यात रचना है, जिसमें इन्होंने अपनी दिवंगत माता के नाम श्रद्धांजलि में अपने अशेष एवं अपूर्ण भावों को व्यक्त किया है। इनकी लिखी एक अन्य पुस्तक 'राग अशेष' का अभी हाल ही में दिल्ली में विमोचन हुआ। इनकी लिखी कई पुस्तकें अभी प्रकाशन हेतु प्रतीक्षा में है। इन्होंने कई चैनलों यथा दूरदर्शन, ज़ी टी. वी., न्यूज़ वर्ल्ड इंडिया, आज तक और डी. डी.बिहार पर सामाजिक सरोकार से जुड़े मामलों पर अपने विचार रखे हैं। सिर्फ देश ही नहीं वरन विदेशों में भी साहित्य से सम्बंधित कई कार्यक्रमों में आपने अतिथि वक्ता के रूप में अपने विचार रखे हैं। शिक्षकों एवं युवाओं को सामाजिक एवं राष्ट्रीय संसाधन के रूप में विकसित एवं प्रोत्साहित करने से जुड़े राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में इनकी सक्रिय सहभागिता रही है।
सामाजिक विकास में युवाओं के योगदान एवं उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने एवं उनसे संवाद स्थापितकरने हेतु इन्होंने देश -विदेश की यात्राएं की हैं। वस्तुतः डॉ. अरुणोदय एक आस्थावान व्यक्ति हैं। घर-द्वार, पूर्वज और परिवार उनके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, किन्तु मित्र और सहयोगी, कलाकार और शिक्षाविद, साहित्यकार और समाजसेवी, बच्चे और विद्यार्थी भी उनके लिए कतिपय कम महत्व के नहीं। सबों के लिए यथासंभव समय और साधन उनके पास उपलब्ध हैं। हर किसी को यथेष्ट सम्मान और उचित अवसर उनके चिंतन और सृजन के केंद्र बिंदु हैं। हमारी युवा पीढ़ी आज जिस द्रुत गति से विपथगामी हो रही है, जिस प्रकार अपनी संस्कृति और परंपरा से उनका दुराव है, यह इस युवा रचनाकार के लिएअत्यंत वेदनाजनक और असहय है। कहते हैं कि यदि किसी राष्ट्र को तोड़ना है, उसे पराधीनता की बेड़ियाँ पहनानी है, तो उसकी संस्कृति पर चोट करनी चाहिए। आज पुनः हमारे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, हम अपनी संस्कृति और परंपरा को भुलाकर मानसिक रूप से विदेशी सभ्यता के गुलाम हो रहे हैं। हम अपने पर्व-त्योहारों, रीति-रिवाजों को भूलकर दिग्भ्रमित हो रहे हैं। डॉ. अरुणोदय ने हमारे इस अवमूल्यन को ठीक-ठाक पहचाना है और प्रान्त के कोने-कोने में 'अनहद' के माध्यम से अलख जगाने का प्रयास किया है। 'अनहद' के युवा कलाकार अपने पारम्परिक भारतीय वाद्यों और पारम्परिक लोकनाट्यों के माध्यम से प्रान्त और देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए जो सद्प्रयास कर रहे हैं, उसके पीछे डॉ. अरुणोदय की परंपरा-रक्षण सम्बन्धी सकारात्मक और परिपक्व सोच ही कार्यरत है।
कहते हैं इतिहास अपनी पुनरावृत्ति के लिए परिस्थिति का निर्माणकरता है। यदि हम पचास के दशक के भोजपुरी फिल्मों को देखें तो हमें अपनी भाषा और परंपरा पर गर्व होगा, परन्तु वर्तमान में भोजपुरी फिल्मों में द्विअर्थी संवादों और गानों से जो अश्लीलता आयी है, वह किसी से छिपी नहीं है। डॉ. अरुणोदय इसे निर्माताओं की नासमझी और साग्रह अपनायी गयी विवशता के रूप में विवेचित करते हैं। उनके अनुसार फिल्मों का उद्देश्य महज मनोरंजन नहीं बल्कि मार्गदर्शन भी होना चाहिए। अपनी इस सोच को रूपायित करने के लिए उन्होनें 'सिनेयात्रा' नमक एक संस्था गठित की है, जो भोजपुरी सिनेमा के कायापलट और पुनर्संस्कार के लिए कृतसंकल्प है। इस संस्था के तहत इन्होनें वैसे नामचीन कलाकारों को समाज के समक्ष पुनः प्रतिष्ठित और सम्मानित करने का बीड़ा उठाया है, जो अब समय के अंतराल वश गुमनामी के अँधेरे में खोते जा रहे हैं। डॉ. अरुणोदय साहित्य, कला और फिल्म को समाज-परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। यही कारण है कि पुस्तक-रचना के साथ-साथ वे ललित कलाओं और चलचित्रों के स्तर और उत्थान के प्रति भी सजग और सक्रीय रहते हैं। इस हेतु वे विविध पत्र-पत्रिकाओं में अपने आलेख नियमित भेजते हैं। कहना तो यह ठीक होगा कि डॉ. अरुणोदय की प्रतिभा बहुवस्तु-स्पर्शिनी है, जिसमें कर्म और भाव का मणिकांचन सुयोग है। वे जितने बड़े कलानुरागी हैं उतने ही सुचिन्त्य विचारक और शिक्षानुरागी । उनका मानना है कि जब तक समाज के गरीब और निराश्रित बच्चों को शिक्षित नहीं किया जायेगा, तब तक रुचिसम्पन्न, समतामूलक, कलाप्रिय, सुसंस्कृत और समुन्नत समाज की कल्पना बेमानी है। अतः कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि डॉ. अरुणोदय एक ऐसे कलाप्रेमी, साहित्यकार और समाजशिल्पी हैं, जिनके पोर पोर में परम्परा की मिठास, वर्तमान की कड़वाहट का एहसास और भविष्य-निर्माण की कसक मौजूद है। अनूप नारायण सिंह की रिपोर्टिंग को समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित ।

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