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कोरोना को लेकर मुख्यमंत्री के राहत पैकेज से पत्रकार क्यों हुए वंचित,



राजेश कुमार वर्मा/ संजीव मिश्रा

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 30 मार्च,20 ) । देखा जाय तो लगभग पूरा देश लॉक डाउन की स्थिति में है।देश के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हुआ है,जब पूरा देश एक वायरस की वजह से थम गया है।बिहार के मुख्यमंत्री ने भी प्रदेश में कुछ आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर करीब-करीब लॉक डाउन की घोषणा कर चुके हैं।सड़कें सूनी हैं, कार्यालयों में ताले लटके हैं,स्कूल, कॉलेज,प्रतिष्ठान,चाहे गैर सरकारी हो या सरकारी सब के सब बंद हैं।विश्व के करीब सौ करोड़ लोग आज कोरोना की चपेटे में हैं।
पूरी मानव जाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।शुरुआती दौर में जहां हिंदुस्तान में इस संकट के फैलने की रफ्तार काफी धीमी थी,आज कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़कर पाँच सौ के करीब पहुंच चुकी है।मृतकों की संख्या भी हर दिन बढ़ती जा रही है।जिनकी संख्या मंगलवार तक 9 पहुँच गयी है ।
याद कीजिये चमकी बुखार जो यूपी के गोरखपुर से होते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर पहुँची थी।चमकी बुखार ने लगभग 300 लोगों को लील लिया था।उस वक्त भी प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था बेबस और लाचार नजर आई थी।प्रदेश की सरकार मौत का तांडव देखती रही।इतनी ज्यादा संख्या में बच्चों के मौत को लेकर सरकार की भूमिका संतोषजनक नहीं रही थी। 
कोरोना संक्रमण की विकराल स्थिति को देखते हुए सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ राहत पैकेज की घोषणा की है।उन्होंने डॉक्टरों और अन्य चिकित्साकर्मियों को एक माह का मूल वेतन अलग से प्रोत्साहन राशि के तौर पर देने का ऐलान किया है।
सरकार ने सभी राशन कार्डधारी परिवारों को एक महीने का राशन मुफ्त देने एवं प्रति परिवार 1000 रुपए देने की भी घोषणा की है।
साथ ही साथ सभी प्रकार के पेंशन धारी मसलन दिव्यांग पेंशन,विधवा पेंशन और वृद्धावस्‍था पेंशन के तहत सभी को तीन माह का पेंशन अग्रिम रूप में तत्काल दी जाएगी।ये राशि सीधे उनके खाते में डाली जाएगी।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या पत्रकारों को इसमें शामिल नहीं करना चाहिए था ? क्या ये किसी से छिपा है कि चंद पत्रकारों को छोड़ दें तो पत्रकार मुख्यतः गरीब की श्रेणी में ही आते हैं।क्या बेहतर नहीं होता कि सभी मीडिया हाउसों के प्रमुख से उनके हर जिले में मौजूद चाहे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या वेब मीडिया से हो उनके संवाददाताओं की लिस्ट मंगवाते और उन्हें भी जहाँ तक संभव होता राहत पैकेज में शामिल करते।
आखिर मीडया कर्मियों को राहत पैकेज से वंचित क्यों रखा गया है ? ये मीडिया कर्मी भी अपने व अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर दिनभर रिपोर्टिंग करते हैं और राष्ट्र हित में प्रदेश के लोगों तक खबर उपलब्ध करवाते हैं।परन्तु अफसोस मीडियाकर्मी हमेशा ही सरकार की उपेक्षा के शिकार रहे हैं।सभी जानते हैं कि मीडियाकर्मियों का वेतन कितनी होती है और काम का दवाब कितना ज्यादा होता है।कितने मीडिया बंधु तो मुफ्त में भी सेवा देते हैं।कहने का अर्थ यही है किसी तरह से सभी पत्रकार भाई अपना जीवन यापन करते हैं।भगवान ना करें किसी मीडिया कर्मी भाई यदि रिपोर्टिंग के दौरान कोरोना के शिकार हो जाते हैं तो इसकी जवाबदेही कौन तय करेगा।
ऐसा संभव है क्योंकि रिपोटिंग करने के लिये मीडियाकर्मी को बाहर निकलना ही है।जैसा कि प्रदेश सरकार ने भी दिशा निर्देश जारी किया हैं कोरोना वायरस मीडिया कर्मी के रिश्तेदार तो नहीं लगते,जो मीडियाकर्मियों को संक्रमित नहीं करेंगे।ऐसी विकट घड़ी में उनको देखने वाला आखिर कौन होगा।प्रदेश सरकार कितना अच्छा सोंच रख रही मीडियाकर्मी के लिए ये किसी से छिपा नहीं है।
आज हर किसी की जुबान पर एक सवाल है,आखिर ये कब तक चलने वाला है।एक तरफ कोरोना से मौत का भय,दूसरी ओर पत्रकारिता करने का दवाब।अभी जब हमने पटना के संवाददाता,पत्रकार मित्र आशीष विकास से बात की तो उन्होंने बताया कि जो चावल दो दिन पहले 900 रुपये बोरी ली थी वही मंगलवार को 1100 रुपये बोरी बिक रही है।वही स्थिति सब्जी की है,किराने के समान की भी यही स्थिति है।साथ ही साथ बाजार में मास्क,सेनेटाइजर की ब्लैक मार्केटिंग जोरों पर चल रही है।केवल कागजों पर मास्क व सेनेटाइजर की कीमत तय की गई है किंतु हकीकत में क्या कीमत है सभी जान रहे।बेहतर होता मास्क व सेनेटाइजर सरकार मुफ्त कर देती या कम से कम दवा दुकानों को जीएसटी फ्री कर देती। स्थिति यह है कि ये चिकित्सकों को भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है।जबकि दिन रात वो अपनी जान को जोखिम में डाल कर लोगों की सेवा में लगे हैं।
हर चीज के दाम आसमान छूने लगे हैं।ऐसे में पत्रकार अपना जीवन यापन करे तो कैसे करे।बिहार सरकार को शीघ्र इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए,नहीं तो बहुत जल्द एक नई समस्या उत्पन्न हो सकती है।अगर प्रदेश के सारे पत्रकार एक साथ सामूहिक अवकाश लेते हैं जो कि संभव भी है।आखिर अपनी जान अपने परिवार की चिंता किसे नहीं सताती है।मीडिया को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है,ऐसे में प्रदेश की सरकार इसी वर्ग की उपेक्षा कर रही है ।ये भी खाना खाते हैं,इनका भी परिवार है,ये बात सही है कि इनकी नैतिक जवाबदेही होती है समाज को सत्य दिखाने की।परन्तु सरकार की क्या कोई नैतिक जवाबदेही नहीं होती मीडिया कर्मियों को लेकर।
बरहाल प्रदेश की सरकार को मीडिया कर्मियों के लिए गंभीरता से विचार करना होगा। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश ने वर्मा द्वारा संजीव मिश्रा की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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