पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 26 मार्च,20 ) । सामान्यतया ग्राम देवता का कोई नाम नहीं होता, उन्हें डीह बाबा, काली माई, बरहम बाबा के नाम से जानते हैं। इनका न कोई स्वरूप होता है और न ही इन्हें छत के नीचे रखा जाता है। गाँव के बाहर बड़ या पीपल के पेड़ के नीचे इनका निवास होता है। मिट्टी के लिपे पिण्ड या एक बड़े पत्थर को प्रतीक मानते हुए इनकी पूजा होती है। ब्रह्म बाबा गांव के चौकीदार देव होते हैं। हर शुभकार्य में उनका आशीर्वाद लिया जाता है। बचपन की मस्ती से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक ब्रह्म बाबा का वास जिस पीपल के पेड़ में होता है उसकी डालियों तक से जुड़ी होती है स्मृतियां। उस देवत्व पेड़ की छांव में काफी सुकून मिलता है.उसकी शीतल छाया मानो आशीष देती हो.समय के साथ सबकुछ बदल गया.गाँव अब अपनापन खो चुका.समय चक्र ने सबकुछ बदल दिया पर आज भी जो खास है जो अपने सम्मोहन से अपनी ओर खिंचते है वह है ब्रह्म बाबा. इनके दर से कोई खाली नहीं जाता यहां सबकी मुरादें पूरी होती मिट्टी में लोटते इंसान की किस्मत कैसे पलट जाती है यह हर वह इंसान देख चुका है जिसका जुड़ाव गांव से है व गांव के सबसे शक्तिशाली देवता ब्रह्म बाबा से भी.गर्मी की छुट्टियों में जब मैं गांव जाता था तब सोते वक्त मेरी दादी मुझे घर के पिछवाड़े लगे एक विशाल पीपल का पेड़ दिखाकर कहती कि बरहम बाबा यहीं बैठते हैं...झूठ बोलोगे तो बरहम बाबा बीमार कर सकते हैं...आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ोगे तो पटक सकते हैं.....ठंड में जब आग जलती है तो तापते भी थे बरहम बाबा...और कभी गर्मी की दोपहरिया में अपने गंवई दोस्तों के साथ जब उस पीपल पेड़ के नीचे जाता तो सांय..सांय की आवाज के साथ मन में एक डर समा जाता कि गलत करुंगा तो बरहम बाबा यहीं पटक देंगे.यह सिर्फ़ अनुभूति नही है.पुराने यादों को फ़िर से ताज़ा करने का बहाना भर नही है . मन रुआंसा हो जाता है । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित ।