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बिहार जहां विरासत में मिलती है गरीबी भूख और बेरोजगारी.....??


 बिहार में विकास का मानचित्र गरीबी, भूखमरी और बेरोज़गारी से खींचा हुआ हैं।

अपना श्रम बेचकर पूरे देश दुनिया में इज्जत की रोटी खाने वाले बिहारियों को लेकर कल से तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे है ।

बिहारी लोगों को अपना श्रम बेचने के लिए दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और विदेशों तक में जाना पड़ता है। 

अनूप नारायण सिंह

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 29 मार्च,20 ) । अपना श्रम बेचकर पूरे देश दुनिया में इज्जत की रोटी खाने वाले बिहारियों को लेकर कल से तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे है.सवालों को उठाने वाले लोग यह नही जानते की बिहार की साठ फीसदी जनता को विरासत में भूख गरीबी और बेरोजगारी मिलती है. प्रति वर्ष बाढ़ सुखार राज्य नियति ह.कल कारखानों के नाम पर जहां कुछ नहीं .लोगों को अपना श्रम बेचने के लिए दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और विदेशों तक में जाना पड़ता है. जहां प्रतिवर्ष चमकी बुखार से हजारों बच्चे मौत के आगोश में चले जाते हैं सरकारें घोषणा करती है पर ढंग का एक अस्पताल तक नहीं बन पाता. डेंगू, मलेरिया, हैजा जैसी रोगों से हजारों लोग प्रतिवर्ष मरते हैं । इसलिए नहीं मरते कि रोग से ग्रसित होते हैं इसलिए मर जाते हैं की उनका इलाज नहीं हो पाता । इसी कारण यहां के लोग मौत से नहीं डरते मौत तो इनकी नियति में है. 
   बिहार में विकास का मानचित्र गरीबी, भूखमरी और बेरोज़गारी से खींचा हुआ हैं। जो यहां पढ़ जाते हैं वे आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती देने वाले नासा तक को अपनी विद्वता का लोहा मनवाने वाले महान गणितज्ञ डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह बनते हैं पर ऐसे लोगों को भी अपने राज्य में मरने के बाद एक अदद एंबुलेंस के लिए घंटों स्ट्रेचर पर पड़ा रहना पड़ता है. घर परिवार की खुशहाली दो जून पेट भरने के लिए सपरिवार दिल्ली में दिन रात मेहनत करने वाले बिहारी जब लाचार व बेबस होकर भेड़ बकरियों की तरह बसों में ठूसाकर वापस लौट रहे है तो उपहास का कारण बन रहे है । अगर इस समस्या का समाधान बिहार में होता तो उन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल गया होता तो आज दूध मुँहे बच्चों को अपने कंधे पर लेकर मौत का सामना करते हुए हजारों कमासुत बिहारियों को अपने जन्म भूमि की तरफ नहीं लौटना पड़ता । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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