पप्पू कुमार पूर्वे
लोक आस्था के महापर्व छठ का अनुष्ठान नहाय-खाय के दूसरे दिन रविवार को व्रती दिनभर उपवास रहने के बाद शाम में स्नान कर भगवान भाष्कर का ध्यान करेंगे। रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर सूर्य देव और छठी मईया को अर्पित करेंगे। उसके बाद वे स्वयं प्रसाद के रूप में खीर और रोटी ग्रहण करेंगे। इस पूजा को ‘खरना’ कहा जाता है। अगले दिन चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर व्रतियां शाम को बांस से बने दउरा में ठेकुआ, फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब या अन्य जलाशयों में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। अगले दिन यानी सप्तमी तिथि की सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण होगा।
इस बार घाट पर नहीं जाएंगे व्रती :
इस बार कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन को देखते हुए व्रती घाट पर नहीं जाएंगे। घर की छतों अथवा आंगन में बने कृत्रिम घाट पर ही यह पर्व मनाया जाएगा। फल व पूजा सामग्री की खरीदारी में भी लोगों को काफी मुश्किलें हो रही हैं। कई जगह भटकने के बाद किसी तरह लोग सामान खरीद रहे हैं।
पर्व का इतिहास :
ब्रह्मापुरा स्थित बाबा सर्वेश्वरनाथ मंदिर के आचार्य संतोष तिवारी बताते हैं कि इस पर्व को स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से मनाते हैं। छठ महापर्व के विषय में पौराणिक मान्यता है कि रामायण अथवा महाभारत काल में ही छठ पूजा का आरम्भ हो चुका था। एक मान्यता यह भी है कि सर्वप्रथम महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव का पूजन किया था, जिसके बाद से यह परंपरा चल पड़ी।