समाज की रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए तमाम बाधाओं को तोड़ अपनी मातृभूमि की सेवा करने भारत लौटी हैं। बिहार के दरभंगा ज़िले की पुष्पम प्रिया चौधरी
पटना/दरभंगा, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 08 मार्च,20 ) । तमाम सामाजिक बाधाओं को लाँघते हुए भारत की बेटियों ने अलग-अलग पेशेवर क्षेत्रों में असाधारण उपलब्धियों को हासिल कर अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है। भारत में नारी शक्ति और महिला सशक्तिकरण का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। इन महिलाओं ने अपने जीवन की विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प को परिचय दिया है। चाहे वो ढिंग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर धावक हिमा दास हों, आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ हों, डब्लूएचओ में डिप्टी डायरेक्टर जनरल के पद पर कार्यरत सौम्या स्वामीनाथन हों या जर्मन बेकरी ब्लास्ट में ज़ख़्मी हुईं आम्रपाली चव्हाण हों, ये सभी महिलाएँ सशक्तीकरण, साहस और दृढ़-निश्चय का पर्याय हैं।
इसी सूची में अगला नाम है बिहार के दरभंगा ज़िले की पुष्पम प्रिया चौधरी का, जो समाज की रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए तमाम बाधाओं को तोड़ अपनी मातृभूमि की सेवा करने भारत लौटी हैं।
पुष्पम दुनिया के प्रख्यात कॉलेज, लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से उच्च-अध्ययन करने के बाद भारत लौट आई हैं। उन्होंने इस विश्व प्रसिद्ध कॉलेज से वर्ष 2019 में 'मास्टर्स ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन' की पढ़ाई की और 2016 में इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, ससेक्स विश्वविद्यालय में 'डेवलपमेंटल स्टडीज ’में एमए भी किया है।
पुष्पम बिहार के दबे-कुचले और आर्थिक रूप से हाशिये पर खड़े लोगों के लिए आगे आना चाहती हैं और उनकी आवाज़ बनकर एक बदलाव लाने के लिए सतत प्रेरित हैं।
पुष्पम कहती हैं, “मैंने बिहार के स्वरूप को बदलने के लिए बिहार लौटने की शपथ ली थी। आज बिहार को एक नई दिशा की ज़रूरत है, बिहार को बदलाव की ज़रूरत है, क्योंकि यह बदलाव सबसे बेहतर विकल्प है। हम मौजूदा राजनेताओं की कार्यकुशलता में नाकामी से शर्मिन्दा होते-होते थक चुके हैं। किसी भी विकाशील समाज के लिए यह अस्वीकार्य है कि आम लोगों के नीति बनाने वालों को नीतियों के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं है। इन नीति-नियंताओं ने बिहार को हमेशा उपेक्षित रखा है। हमें गरीबी, कुपोषण और अपराध से लड़ना है और बिहार को एक मॉडल स्टेट के रूप में स्थापित करना है। बिहार के भविष्य की बागडोर युवाओं की हाथ में हैं।”
32 साल की पुष्पम बिहार के दूर-दराज़ इलाक़ों में यात्रा कर किसानों से मिल रही हैं और खेती से जुड़ी मूलभूत समस्याओं को दूर करने के लिए एक संवाद क़ायम कर रही हैं। वो खेती में तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए उचित संसाधन व समाधान लाने की कोशिश कर रही हैं। प्रवासी श्रमिकों के दर्द को उजागर करने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर कई मुहिम चलाई है। इसमें बुनकर और पारंपरिक कारीगरों और श्रमिकों के लिए कई कल्याणकारी अभियान चलाए गए हैं।
पुष्पम का मानना है कि जब इतिहास आम जनमानस को एक सम्माजनक जीवन नहीं दे सके, तो यह बोझ बन जाता है। “बिहार हर गुज़रते दिन इस कथन को साबित करता है। हम जानते हैं कि बिहार गौतम बुद्ध की पावन धरती है। भगवान महावीर ने यहाँ उपदेश दिए थे। लेकिन आज उनकी शिक्षा महज़ कागजों में मिथ्या बनकर गई हैं। पिछले साल हमने देखा कि कैसे राजधानी पटना जो विकास के आधुनिक मॉडल पर खड़ा होने का दावा करता था, बाढ़ के कारण ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। मुज़फ़्फ़रपुर के सरकारी अस्पतालों में चमकी बुख़ार से 200 बच्चों ने दम तोड़ दिया और किसी की जवाबदेही तय नहीं हो सकी। इन सब मूलभूत चुनौतियों से निपटने के लिए हमें सशक्त नीतियों और ईमानदार नीति निर्धारकों की ज़रूरत है। इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा।"
पुष्पम आगे कहती हैं कि आज बिहार में रेशम का उद्योग संघर्ष कर रहा है। उनका मानना है कि युवा बुनकरों में अभी भी 'नेपुरा टसर सिल्क’ उद्योग को पुनर्जीवित करने की क्षमता है। इन ज़मीनी स्तर के उद्यमियों को नीति-निर्धारण की मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिये।”
पुष्पम बिहार में मौजूदा राजनीतिक हालात और इससे पनपे यथास्थिति को चुनौती दे रही हैं जिससे करोड़ों आम लोगों की आजीविका में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके। वह कहती हैं कि अब बिहार के भाग्य को बदलने समय आ गया है। पुष्पम के मुताबिक, बिहार से पलायन पर शीघ्र अंकुश लगना चाहिए और यहाँ के मानव संसाधनों का उपयोग बिहार के निवासी अपने जीवन स्तर को सँवारने के लिए उपयोग में ला सकें। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित ।