बुढ़वा होली के दिन भी पूरी तरह लोग अबीर-गुलाल में डूबे रहते हैं। स्त्रियां भी बुढ़वाहोली के दिन घर के बाहर निकलकर होली खेलती हैं। बुढ़वा होली के दिन गांव में झुमटा (स्त्रियों का नृत्य) निकलता है, जबकि पुरूषों की टोली अलग निकलती है और पूरा गांव फाग के रंग में डूब जाता है। ये बिहार के कुछ जिलों में ही होता है। लेकिन जहां होता है वाकई बहुत मजेदार होता है।
यहीं नहीं बिहार में कुर्ताफाड़ और कीचड़ होली भी जमकर खेली जाती है। पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की भी पसंदीदा रही है ये कुर्ताफाड़ होली। इस होली की खासियत ये होती है कि युवा पहले तो अपने दोस्तों के चेहरों को रंग देते हैं वहीं उसके बाद शरीर को रंगने के लिए उनके कुर्ते फाड़ देते हैं। दिन भर रंगों का दौर चलता रहता है। शाम होते ही अबीर होली का दौर शुरू हो जाता है। लोग एक दूसरे के घरों में जाकर बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं, फिर मंदिर पर इकठ्ठे होते हैं। मंदिरों में फाग गीत गाए जाते हैं उसके बाद गांव में घूम-घूम कर सभी के घरों के सामने गाने की परम्परा है।
गाने की ये परंपरा भी काफी अनोखी है। बिहार का ये फाग गायन कोई छोटा-मोटा गायन नहीं होता है, बल्कि इसे एक वृहत पैमाने पर गाया जाता है। वाकई ऐसा गायन शायद ही कहीं होता होगा। सैकड़ों की संख्या में एक साथ होली गीत का गाना एक अजूबा सा होता है। पूरा गांव गूंजने लगता है इस फाग गायन से।
मंदिरों से गाने के बाद जब लोग गांव में लोगों के घरों के सामने गाते हैं तो वो क्षण और मजेदार होता है। लोग जहां फाग गीतों के साथ जोगीरा कहते हैं, वहीं इस दौरान उस घर की भौजाई पूरे गांव की भौजाई भी बन जाती है।
वाकई एक पर्व को मनाने के इतने तरीके भारत जैसे बहुसंस्कृती वाले देश में ही संभव है। जहां एक ओर बरसाने की होली, तो दूसरी ओर बुढ़वा होली की परम्परा है। होली के ये विविध रूप सही मायने में अनूठा है।