गाड़ी मोटर की आवाज नही है,
पंछियों की आवाज से सवेरा हो गया है।
सड़को के दर्द को महसूस कर रहा हूँ।
पेड़ पौधों को सुकून की सांस दे रहा हूँ।
दौड़ भाग भरी जिंदगी मे सुकून हो गया है।
*सुनो शहर मेरा आज गाँव हो गया है।*
वो कूकर की सीटियां सुन रहा हूँ
वो छत पे झगड़ते बच्चो को देख रहा हूँ।
पेड पे हिलते पत्तों की आवाज सुन रहा हूँ।
बहती हवाओं का भी एहसास हो गया है।
शहर मेरा आज गाँव हो गया है।
आज समझ आ रहा है दो निवाले ही बहुत थे।
गाड़ी बंगला सब फिज़ूल ही तो है
देखा देखी मे क्या क्या जाने जोड़ दिया है।
यार शहर मेरा आज गाँव हो गया है।
समझूँगा बैठ कर विज्ञान ने क्या जिंदगी आसान बनायी है ?
पसीना बहाना छोड़ कर पसीना आना सिखाया है।
कुदरत से कहीं खिलवाड़ ज्यादा तो नही हो गया है
यार शहर मेरा आज गाँव हो गया है।
महामारी से निपटने को सब साथ खड़े हो गये है।
हम सब खुद को भूल आज अपनो के लिये लड़ रहे है।
*ये अपनापन दिल को आज सुकून दे गया है*
*यार शहर मेरा आज गाँव हो गया है*
Produced by Rajiv ranjan kumar verma
Published by Rajesh kumar verma Samastipur Bihar