जीरादेई प्रखण्ड क्षेत्र के तीतिरा टोले बुद्ब नगर बंगरा गांव में स्थित तीतिर स्तूप पर विरासत बचाओ अभियान के अध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंह ने सोशल डिस्टनसिंग का पालन करते हुए विश्व दाय दिवस को मनाया
सीवान,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 18 अप्रैल,20)। जिले के जीरादेई प्रखंड अपने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लगाव रखने व इनके संरक्षण को लेकर शनिवार को जीरादेई प्रखण्ड क्षेत्र के तीतिरा टोले बुद्ब नगर बंगरा गांव में स्थित तीतिर स्तूप पर विरासत बचाओ अभियान के अध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंह ने सोशल डिस्टनसिंग का पालन करते हुए विश्व दाय दिवस को मनाया ।श्री सिंह ने बताया कि 18 अप्रैल को पूरी दुनिया में 1982 से हीं ‘विश्व दाय दिवस’ मनाया जाता आ रहा है । संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा ‘यूनेस्को’ के अधीन ‘आईकोमोस’ अर्थात् ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ मोनुमेंट्स एंड साइट्स’ द्वारा इस वर्ष ‘साझा संस्कृति व साझा विरासत तथा साझा जिम्मेदारी’ विषय के साथ इस दिवस को दुनिया को मनाने के लिए अभिप्रेरित किया गया है ताकि अपने सांस्कृतिक व प्राकृतिक धरोहरों के प्रति सबका सामान रूप से जिम्मेदारी की प्रेरणा प्राप्त हो सके । उन्होंने बताया कि इस वैश्विक महामारी नोवेल कोरोना के वर्तमान खतरे के मद्देनजर आरती सिंह के साथ सोशल डिस्टनसिंग का ख्याल रखते हुए इस देय अंतर्राष्ट्रीय दिवस एवं साझा जिम्मेदारी दिवस को मनाकर लोगों प्रेरित किया गया । श्री सिंह ने बताया कि वर्तमान में सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति पनपने वाले ‘विषमता, प्रतिस्पर्धा व प्रतिरोध’ से सम्बंधित भावनाओं पर अपना-अपना विचार व जिम्मेदारी प्रकट हो सके, शायद इसी सोंच से ‘साझा उत्तरदायित्व’ निभाने का यह विषय इस वर्ष पूरे दुनिया में चुना गया हैं ताकि अपने सार्वभौमिक व सांस्कृतिक विरासत के प्रति व्यक्ति को इसके संरक्षण के प्रति अपने उत्तरदायित्व को साझा तौर पर निभाए जाने का अभिप्रेरणा प्राप्त हो सके ।
इस साझा जिम्मेदारी का निर्वहन का विषय का चयन करना व उसे दुनिया को अमल में लाने का यह विचार शायद इसलिए भी रहा हो कि ऐतिहासिक व सांस्कृतिक मूल्यों के स्मारकों व स्थलों के प्रति जिस प्रकार से वैश्विक जनसंख्यात्मक बदलाव तथा इसके परिणामस्वरूप पनपते संघर्ष व पर्यावरण की अनिश्चित्तता से विश्व के सांस्कृतिक पहचान पर पड़ने वाले किसी भी प्रकार के दुस्प्रभाव को कम किया जा सके ताकि इन वैश्विक महत्त्व के स्मारकों व सांस्कृतिक स्थलों से दुनिया को परोक्ष व अपरोक्ष रूप से प्राप्त होनेवाली लाभों को और गति प्राप्त हो सके तथा उनके महत्वपूर्ण विशेषताओं तथा उनके मूल स्वरुप की अक्षुन्नता बनी रहे और यह तभी संभव होगा जब साझा प्रयास किया जा सकेगा ।
क्यूंकि साझा प्रयास व एक दूसरे के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति विश्वास का न होना ही शायद विभिन्न समुदायों में सांस्कृतिक स्तर पर प्रतिरोधात्मक भावनाएं प्रकट करती हैं जिसके कारण एक दूसरे के सहअस्तिव को स्वीकारना भी कठिन हो जाता है एवं इसी के नकारात्मक प्रभाव में धार्मिक, सामुदायिक व वर्गीय संघर्ष प्रस्फुटित हो जाता है और इसी कड़ी में वैश्विक व मानवीय मूल्यों व उनके संवेदनाओं से जुड़े धरोहरों को हम क्षति पंहुचा जाते हैं । और ये सभी वैचारिक सहिष्णुता और सहअस्तित्वता के कमी के कारण होते हैं । श्री सिंह ने बताया कि यही कारण था कि बुद्ध के विशालकाय मूर्ति जो अफगानिस्तान के बामियान में है उसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया और इसी प्रकार संसार के न जाने कितने हीं धरोहर इस धार्मिक असहिष्णुता व वैचारिक मतभेद का शिकार हो गया ।अभी भी समय है कि यदि हम सभी समुदाय मिलकर अपने सांस्कृतिक विरासतों के प्रति साझा लगाव के साथ उनके संरक्षण, संवर्धन व मूल प्राकृतिक स्वरुप की सुदृढ़ता को बनाये रखने व करने की चेष्टा करें तो ऐतिहासिक मूल्यों की पहचान खोने से बच जाएगी तथा वैश्विक स्तर पर इससे किसी भी प्रकार से ह्रास होने वाली मानवीय मूल्यों को भी बचाने में सफलता मिलेगी । उन्होंने बताया कि सिवान भी
अपने विपुल सांस्कृतिक एवम ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है । अति प्राचीन काल से हीं गौरवशाली संरचनात्मक कार्यों को करने के लिये यह राज्य व देश के लिए उदाहरण रहा है | यंहा की अद्भूत कलात्मक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक मूल्यों व उसकी विशालता को लेकर संजोये हुए स्थापत्यिक संरचनायें जिन्हें आज पूरे जिले के विरासत की सूची में शामिल किया गया है न सिर्फ उन्हें संरक्षित करने व वरण कई राष्ट्रीय व स्थानीय इतिहास से अभिप्रेत स्मारकों व स्थलों को भी उनके युग-युगान्तर तक अक्षुण बनाये रखने की आवश्यकता है । और यह तभी संभव है जब हम सब मिलकर चाहे हम किसी भी धर्म से, क्षेत्र व भाषा से जुड़े हों सामूहिक तौर पर प्रयास करेंगे । श्री सिंह ने बताया कि जिले के पपौर व तीतिर स्तूप तीतिरा के प्राचीनता को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भी स्वीकार कर चुका हैं तथा देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक आवास, मेंहदार मंदिर व सोहगरा धाम तो बिहार सरकार के पर्यटन स्थल के सूची में दर्ज है । वही दरौली के जैन मंदिर ,अमर पुर केवटलिया के बौद्ध बिहार,दोन के द्रोण स्तूप , तारा देवी के मंदिर, जीरादेई के मुइया गढ़, मीठा कुंआ, हिरण्यवती व ककुत्था नदी आदि की ऐतिहासिक पहचान दिलाने की आवश्यकता है ।
जबकि जानकारी के आभाव तमें न जाने कितने सांस्कृतिक धरोहर हमारी जानकारी से परे हैं और किस अवस्था में होंगे कुछ भी नहीं कहा जा सकता ।
यदि साझा व सामुदायिक जिम्मेदारी हों तो हम अपने स्मारकों को अपने भावी पीढ़ियों को उसके मूल स्वरुप में सौंप सकते हैं तभी विश्व धरोहर दिवस मनाये जाने की सार्थकता फलीभूत होगी । आज इस वैश्विक महामारी के कारण भले हीं ऐतिहासिक व प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों पर पर्यटकों का आना जाना बंद हो, पर उम्मीद है कि इससे अतिशीघ्र हीं छुटकारा मिलने के बाद ये स्थल फिर से देशी विदेशी व क्षेत्रीय बौद्ध उपासकों से गुलजार होंगे। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा कृष्ण कुमार सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma