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बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह की कलम से पढ़िए फुर्सत के क्षण

आदत इंसान के जीवन का एक अनसुलझी रहस्य है।कुछ अपवाद छोड़ दिया जाए तो जीवन के अंतिम पल तक इंसान से जूड़ा रहता है।

बचपन में जो इंसान कुछ अच्छी या बुरी ज्ञान, आचरण , व्यवहार , शब्द अपने जीवन में जोड़ता है वो सभी इंसान की दिनचर्या आदत में शामिल हो जाती है।

मानवों में कई तरह की आदत दृष्टिगोचर होती है।

एक बार किसी चीज़ का आदत लग लाने पर उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है अतः अनजाने में हमें बुरा आदत ना लगे इसी लिए हमें जान बूझ कर अच्छी आदत डालनी चाहिए।

अनूप नारायण सिंह की प्रस्तुति
पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 27 अप्रैल,20 ) । आदत इंसान के जीवन का एक अनसुलझी रहस्य है।कुछ अपवाद छोड़ दिया जाए तो जीवन के अंतिम पल तक इंसान से जूड़ा रहता है।आदत किसी प्राणी के उस व्यवहार को कहते हैं जो बिना सोच के बार-बार दोहराया जाये।जिससे वो अनभिज्ञ होता है।बचपन में जो इंसान कुछ अच्छी या बुरी ज्ञान, आचरण , व्यवहार , शब्द अपने जीवन में जोड़ता है वो सभी इंसान की दिनचर्या आदत में शामिल हो जाती है। जीवन सफ़र के किसी भी पड़ाव में कुछ ऊपर लिखित आदतें इंसान से जुड़ जाती है।कुछ दिन पहले कुछ मित्रों के साथ बैडमिंटन सचिवालय में जाकर खेलना प्रारम्भ किया जो आदत में बदल गई। खेलने जाने एवं खेलते समय सब कुछ भूल कर शरीर के अंदर , मन में क्रियाए क्रियात्मक रूप में कुछ आदतें आभास कराने लगती है।मानवों में कई तरह की आदत दृष्टिगोचर होती है।खेलने के बाद लौटते समय धूम्रपान की आदत हम अपने मित्रों में देखते है।हम बोलते है कि सिगरेट पीना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है नही पीना चाहिए पर वो नही मानते और बोलते है आदत पड़ गई है।जानवरों में भी आदतें बहुत देखी जाती हैं।मसलन किसी कुत्तें को घंटी बजते ही दुम हिलाने की आदत पड़ सकती है क्योंकि उसका मालिक घर आकर घंटी बजाता है।किसी भी कार्य को अगर लगातार किया जाए तो वह कार्य हमें आसान, मनोरंजक और लुभावना लगने लगता है।उसे करना पसंद आने लगता है जिसे हम आदत कहते है, चाहे वह कार्य हमें अच्छे मार्ग पर ले जाता हो या बुरे मार्ग पर।एक बार किसी चीज़ का आदत लग लाने पर उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है अतः अनजाने में हमें बुरा आदत ना लगे इसी लिए हमें जान बूझ कर अच्छी आदत डालनी चाहिए।एक कहानी आपको बताता हु जो गहरा ज्ञान का दर्शन कराएगा। एक नदी में बाढ़ आती है।छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा एक चूहा कछुवे से कहता है मित्र क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो मेरे बिल में पानी भर गया है?। कछुवा राजी हो जाता है तथा चूहे को अपनी पीठ पर बैठा लेता है। तभी एक बिच्छु भी बिल से बाहर आता है कहता है मुझे भी पार जाना है मुझे भी ले चलो। चूहा बोला मत बिठाओ ये जहरीला है ये मुझे डंक मार देगा।तभी समय की नजाकत को भांपकर बिच्छू बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है “भाई कसम से नही डंक मरूँगा बस मुझे भी ले चलो”। कछुआ चूहे और बिच्छू को लेकर तैरने लगता है।तभी बीच रास्ते मे बिच्छु चूहे को डंक मार देता है।चूहा चिल्लाकर कछुए से बोलता है "मित्र इसने मुझे डंक मार दिया अब मैं नही बचूंगा”। थोड़ी देर बाद उस बिच्छू ने कछुवे को भी डंक मार दिया। कछुवा मजबूर संस्कारवान था जब तक किनारे पहुंचा चूहा मर चुका था।कछुआ बोला मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया मगर तुमने मुझे क्यों डंक मार ?। बिच्छु उसकी पीठ से उतरकर जाते जाते बोला मूर्ख तुम जानते नही मेरा तो “ आदत “ ही है । गलती तुम्हारी है जो तुमने मुझ पर विश्वास किया ठीक इसी तरह कोरोना की इस बाढ़ में मोदी जी ने भी अपने राष्ट्र, कर्तव्य धर्म निभाते हुए कोरोंना महामारी रूपी नदी पार करवाने के लिए सभी को पीठ पर बिठा लिया है।कुछ लगातार डंक मार रहे है।इसी तरह एक नदी किनारे पानी में बिछु बहता जा रहा था।एक ऋषि कुछ शिष्यों के साथ नदी किनारे थे।जब बिछु को पानी में बहते एवं निकलने का असफल प्रयास देख कर उसे अपने हाथ से निकालने लगे तो बिछु ऋषि को लगातार डंक मार देता था।इस दृश्य को देख कर शिस्यगण अपने गुरु से बोले कि बार बार आपको डंक मार रहा है और आप लगातार इसे निकाल कर बचाने की कोसिस कर रहे है।ऋषि अपने शिष्यों से बोले की जब बिछु अपना आदत को नही छोड़ रहा तो हम अपनी बचाने की आदत को कैसे छोड़ दूँ ।उसी तरह सरकार भी अपने कर्तव्य, न्याय , जन कल्याण, इन्सानियत विकास की खातिर आदत से कर्तव्यरत हैं।कुछ आदत से बेचारे निर्दोष डॉक्टर, पुलिस और स्वास्थ्यकर्मी पर हमला कर रहे है और वे सभी हमला की पीड़ा को देखते सहते अपने कर्तव्य धर्म पर दृढ़ प्रतिज्ञा के तहत सपथ के साथ संकल्पित होकर गतिमान है । हर मनुष्य का अपना-अपना आदत व्यक्तित्व में शामिल हो जाता है।कई लोगों को आप आदत सुधारने के लिए बोलिएगा तो वे आश्वासन देने के बाद भी वे मानते नही है।किसी से बोलिए की फ़ेसबूक , वात्सप या मसेंजर पर चैट से दूर रहिए तो वे आदत से दूर नही हो पाते है।कुछ इंसान लोग कहते थे कि पुलिस चौराहो पर कमाई के लिए खड़ी होती है।पुलिस आज अपने संकल्प कर्तव्य शपथ रूपी आदत से सारे वीरान चौराहे , हर स्थान पथ पर सत्य निष्ठा से खड़ी रहती है।आज इसे देखकर इंसान अपनी कुछ आदतों में मन शब्द में बदलाव लाते हुए पुलिस की छवि,कार्य की सराहना कर रही है। पुलिस और जनता के बीच भावनात्मक जुड़ाव दिख रहा है।पुलिस का मानवीय एवं सवेंदन कार्य लोगों में चर्चा एवं आपनत्व को मज़बूत किया है।ए इसी तरह सदैव बना रहे।अगर इंसान के सफल जीवन की चाहत आदत में शामिल हो तो जीवन से लाख चाहने पर भी अच्छी आदत नहीं बदलता है।कुछ इंसान भीड़ में भी वह अपने निराले आदत के कारण पहचान बनाए रखते है, यही इंसान की आदत पहचान एवं विशेषता बन जाती है। यही उसका व्यक्तित्व है।प्रकृति का यह नियम है कि एक मनुष्य की आदत दूसरे से भिन्न होती है।प्राकृति का यह जन्मजात भेद भाव प्राकृति तक ही सीमित नहीं है।इंसान की कुछ आदतें स्वभाव, संस्कार और प्रवृत्तियों में भी दिखती रहती है।मनोविज्ञान ने यह पता लगाया है कि प्रत्येक इंसान कुछ आदतों के साथ जन्म लेता है।ये स्वाभाविक, जन्म-जात आदत ही मनुष्य की प्रथम पहचान होती हैं।इसके बाद उम्र के सफ़र में कुछ आदतें इंसान से जुड़ती रहती है।मनुष्य होने के नाते प्रत्येक मनुष्य को इन आदतों की परिधि में ही अपना कार्यक्षेत्र सीमित रखना पड़ता है।इन आदतों का सच्चा रूप क्या है,ये इंसान के जीवन में कितनी प्रकार की होती हैं, इनका संतुलन इंसान स्वयं में किस तरह बैठता है, ये इंसान के जीवन का रहस्य है।एक बार किसी चीज़ का आदत लग लाने पर उसे छोड़ना बहुत मुश्किल हो जाता है।व्यवहार , संस्कार, आचरण जीवन में बोलती है।लाख छुपाये इंसान, लेकिन ए आदत इंसान के शख्सियत की निशाँ छोड़ती हैं।अतः अनजाने में हमें बुरा आदत ना लगे इसी लिए हर इंसान को सावधान और सतर्क रहना चाहिए।परन्तु जीवन में कुछ जाने, अनजाने में आदत जीवन से जुड़ जाता है तो उससे निकलना काफ़ी कठिन होता है।परंतु दृढ़ संकल्प के साथ कुछ आदतो में इंसान अच्छे ज़िंदगी के लिए बदलता है तो उसका जीवन काफ़ी सुंदर हो जाएगा।और अंत कहूँगा की:-खेल ताश के हो या ज़िन्दगी की अपनी आदत का इक्का तभी दिखाओ जब सामने वाला बादशाह हो। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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