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"स्वाभिमानी अन्नदाता क्यों मजबूर है फांसी पर लटकने को"


आखिर आजादी की 72 साल बीत जाने के बाद भी आज भी अन्नदाता की हालात में सुधार क्यों नहीं हुआ आखिर क्यों जो सबका पेट भरता है अन्नदाता वह फांसी पर चढ़ने को मजबूर है

देश के 50% से ज्यादा किसान खेती के साथ-साथ अन्य छोटे-मोटे काम करते हैं जिनसे उनका घर चलता है लेकिन आज उनका यह हिस्सा अब बिल्कुल बंद हो चुका है l
आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? 

आज तक केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम बयानों में भरोसा नहीं दिखा क्योंकि एक भी अभी तक किसान की मदद के लिए बहुत कारगर कदम नहीं उठा पाए आज तक अगर' किसान क्रेडिट कार्ड'के माध्यम से ही लोन मांगने जाए बैंक से तो वहां भी बैंक मैनेजर 10 % उनसे दलाली मांगता है इसी को लेकर मेरे से खुद कई बार नोकझोंक हुआ लेकिन मजबूरी के कारण 10 % देकर लोन लेना पड़ा

     लेखक कवि विक्रम क्रांतिकारी 

नई दिल्ली,भारत ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 28 अप्रैल,20 ) । आखिर आजादी की 72 साल बीत जाने के बाद भी आज भी अन्नदाता की हालात में सुधार क्यों नहीं हुआ आखिर क्यों जो सबका पेट भरता है अन्नदाता वह फांसी पर चढ़ने को मजबूर है सोमवार को शाम 7:30 बजे उन्नाव जिले के निवासी अन्नदाता ने आर्थिक तंगी के कारण फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है आए दिन हमारे अन्नदाता आर्थिक तंगी फसलों का सही कीमत नहीं मिलने के कारण अपनी जीवन लीला को समाप्त करते आ रहे हैं यह सच है कि किसानों को लॉकडाउन में छूट दिया गया है लेकिन दोस्तों देश के 50% से ज्यादा किसान खेती के साथ-साथ अन्य छोटे-मोटे काम करते हैं जिनसे उनका घर चलता है लेकिन आज उनका यह हिस्सा अब बिल्कुल बंद हो चुका है l
आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? मुझे लगता है सबसे बड़ी वजह किसानों के लागत का सही मूल्य नहीं मिलना बढ़ता कर्ज और उनकी छोटी होती जोत और मंडियों में बैठे साहूकारों द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज की ऊंची दरें है आज हम सब जब घरों में बंद हैं फिर भी हमारे अन्नदाता खेतों में काम कर रहे हैं ताकि हम सब का पेट भर सके चाहे किसी भी तरीके का आपातकाल हो वैश्विक महामारी हो फिर भी किसान अपने कार्यों में लगे रहते हैं कभी अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाते हैं आज तक केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम बयानों में भरोसा नहीं दिखा क्योंकि एक भी अभी तक किसान की मदद के लिए बहुत कारगर कदम नहीं उठा पाए आज तक अगर' किसान क्रेडिट कार्ड'के माध्यम से ही लोन मांगने जाए बैंक से तो वहां भी बैंक मैनेजर 10 % उनसे दलाली मांगता है इसी को लेकर मेरे से खुद कई बार नोकझोंक हुआ लेकिन मजबूरी के कारण 10 % देकर लोन लेना पड़ा वही नाबार्ड द्वारा संचालित फार्मर क्लब के साथ भी काम करने का मौका मुझे मिला लेकिन वहां भी व्यापक रूप से भ्रष्टाचार दिखा l
आज कोरोना वायरस जैसे वैश्विक महामारी के वक्त जिस तरह से चिकित्साकर्मी पुलिसकर्मी सफाईकर्मी मीडियाकर्मी निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं उसी प्रकार से हमारे अन्नदाता किसान भी लगे हुए हैं इसलिए किसानों के लिए भी अब जरूरत है सुरक्षा कानून बनाने की आखिर कितने हमारे किसान आए दिन फांसी लगाते रहेंगे ऐसा ही रहा तो फिर क्या हम सब खाएंगे l जरूरत है इस पर भी बहस करने के लिए टीवी चैनलों को आखिर हिंदू मुस्लिम के साथ-साथ अन्य मुद्दों को भी उठाने वाले टीवी चैनल 70% आबादी जो सभी का पेट भरता है उसका मुद्दा क्यों नहीं उठाते?
दोस्तों नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 10349 किसानों ने आत्महत्या की आखिर जो अन्नदाता सभी का पेट भरता है उसके लिए सरकार कोई पहल क्यों नहीं करती? आज कोरोना वायरस के कारण सभी बड़े- बड़े फैक्ट्री, उद्योग धंधे सब बंद है फिर भी हमारे ईश्वर तुल्य किसान खेतों में दिन रात लगे हुए हैं अपने जिंदगी के प्रवाह किए बिना ऐसे ईश्वर तुल्य अन्नदाता के लिए हमें आवाज उठाने की जरूरत है मैं कई बार राज्यसभा टीवी व अन्य चैनलों पर प्रयास किया आवाज उठाने का लेकिन जिस तरीके से और मुद्दों को इनको उठाने में मजा आता है किसानों के लिए इनका रुचि कम होती है मैं खुद एक दर्देधरतीपुत्र होने के कारण अपने गांव और घरों में अक्सर बचपन से इनके पीड़ा को देखते आया हूं लेकिन किसानों के दर्द को नजरअंदाज कर दिया जाता है अन्नदाता तो खुद स्वाभिमानी होता है और उनके बच्चे भी हम कहते हैं कि इनके लागत का सही बस मूल्य मिलना शुरू हो जाए तो हमारे अन्नदाता फांसी पर लटकने को मजबूर नहीं होंगे l
कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया)
दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता 
लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं-लेख स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित है । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशन हेतू सम्प्रेषित ।
 Published by Rajesh kumar verma

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