धर्म इस संसार को जानने व समझने वाले मार्ग की ओर ले जाता है। व्यक्ति की पहचान उसके धर्म से नहीं अपितु कर्म से होती है परंतु धर्म ही कर्म का निर्धारण करता है
यदि धर्म को व्यापक रूप में समझें तो धर्म शक्ति संपन्न लोगों के हाथ में ताकतवर हथियार बन गया है तथा इसका प्रयोग वे सांप्रदायिक संबंधों को बनाने बिगाड़ने में कर रहे हैं
यदि व्यक्ति किसी धर्म में आस्था रखता है तो संकटकाल में चाहे अनचाहे रूप में उसे एक मनोवैज्ञानिक आश्रय मिल जाता है।। श्री कृष्ण के अनुसार कर्म करो फल की इच्छा ना करें अर्थात फल मनुष्य के नियंत्रण में नहीं हैं
श्री कृष्ण के अनुसार कर्म करो फल की इच्छा ना करें अर्थात फल मनुष्य के नियंत्रण में नहीं हैं।। धर्म व्यक्ति को अवसाद मुक्त रखता है और इससे लोग आत्महत्या नहीं करेंगे
मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 26 अप्रैल,20 ) ।
धर्म इस संसार को जानने व समझने वाले मार्ग की ओर ले जाता है। व्यक्ति की पहचान उसके धर्म से नहीं अपितु कर्म से होती है परंतु धर्म ही कर्म का निर्धारण करता है।। धर्म मनुष्य को ईश्वर से जोड़ता है।। धर्म इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जिसने हमें भेजा या जिसने सृष्टि बनाई उसकी इच्छा को धारण करने के लिए एक पाठ्यक्रम भी जरूरी था इसलिए धर्म की आवश्यकता पड़ी होगी ।। यदि धर्म को व्यापक रूप में समझें तो धर्म शक्ति संपन्न लोगों के हाथ में ताकतवर हथियार बन गया है तथा इसका प्रयोग वे सांप्रदायिक संबंधों को बनाने बिगाड़ने में कर रहे हैं।। किसी देश में जन्म लेने पर हमें उस देश के नागरिक के रूप में पहचान मिल जाती है ठीक उसी प्रकार एक विशेष धर्म किसी व्यक्ति को विशिष्ट पहचान प्रदान करता है।। यदि व्यक्ति किसी धर्म में आस्था रखता है तो संकटकाल में चाहे अनचाहे रूप में उसे एक मनोवैज्ञानिक आश्रय मिल जाता है।। श्री कृष्ण के अनुसार कर्म करो फल की इच्छा ना करें अर्थात फल मनुष्य के नियंत्रण में नहीं हैं।। धर्म व्यक्ति को अवसाद मुक्त रखता है और इससे लोग आत्महत्या नहीं करेंगे क्योंकि परिणाम उनके नियंत्रण में नहीं है लेकिन इसे नकारात्मक रूप में भी ले सकते हैं जैसे कोई व्यक्ति कह सकता है कि वह किसी भी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं हैं क्योंकि फल जो मिल रहा है उसका कारण ईश्वर है वह नहीं ।।इस तरह धर्म का यदि सकारात्मक उपयोग करें तो हमें बहुत फायदा हो सकता हैll धर्म के आयाम उपासना, जीवन में नैतिक व चारित्रिक मूल्यों का समावेश, अध्यात्म का अवतरण हैll लेकिन आज लोग 'आचरण शून्य उपासना' की तरफ बढ़ रहे हैं इसका अर्थ है कि लोगों ने सिर्फ उपासना को ही धर्म मान लिया हैll धर्म हमें जीवन के लक्ष्यों की जानकारी देता है और बहुत विस्तृत प्रश्नों के जवाब भी इसी के द्वारा हमें मिलते हैं जैसे हम क्यों पैदा हुए हैं, जन्म लेने से पहले हम कहां थे या मरने के बाद हम कहां जाएंगेll धर्म के नियम हमें कुछ हद तक गलत या सही का एहसास कराते हैं वरना निजी स्वार्थों में व्यक्ति अंधा बनकर एक दूसरे का जीवन समाप्त कर देगाll यदि हम धर्म के नकारात्मक पहलुओं पर नजर डालें तो धर्म एक बंधन है जिसमें हम बंध चुके हैंll एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के 52% लोग नास्तिक हैं इसका मतलब उनका कोई धर्म नहीं है लेकिन वह अपने कार्य को ही अपना धर्म समझते हैं इसका अर्थ यह निकलता है कि हमारे जीवन में धर्म ही सब कुछ नहीं है।। कार्ल मार्क्स के शब्दों में यदि हम धर्म को समझें तो धर्म एक अफीम है।। धर्म का नकारात्मक पहलू यह भी है कि विभिन्न सरकारें जनता को धर्म तक ही सीमित रखती हैं और उन्हें तार्किक जीवन से दूर रखती हैं।। मैं लेखक होने के नाते अपने लेख के माध्यम से यह समझाने का प्रयास करना चाहता हूं कि उपासना को ही हम धर्म ना समझे।। हमें आचरण की महत्ता को भी समझना होगा और मेरा मानना यह है कि धर्म में व्यक्ति तार्किकता रखें अन्यथा यह अंधविश्वास का रूप धारण कर लेगा क्योंकि धर्म एक विश्वास भी है और यदि विश्वास में तार्किकता को हटा दें तो वह अंधविश्वास बन जाता है ।।मैं अपने लेख के माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि हमारे विश्वास में तार्किकता अवश्य होनी चाहिए तभी हम धर्म के पहलुओं को समझ सकते हैं। लेखक अक्षय कुमार वत्स पता-4/1ब्रह्मपुरी ,मुज़फ्फरनगर योग्यता --बीएससी ऑनर्स रसायन विज्ञान, बीटीसी, एमएससी ,फ़ोन नंबर-8171584219 के द्वारा वाट्सएप माध्यम से प्रकाशन के लिए कार्यालय को दिया गया। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma