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लालफीताशाही ने छीन ली बिहार के पीतल नगरी परेव की पहचान


सूक्ष्म लघु उद्यम मंत्रालय की कोशिश नाकाम 

बिहटा का परेव पीतल नगरी के रूप में जाना जाता है. परेव की पहचान राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में पीतल बर्तनों के बेहतर निर्माण के कारण रही है,

सुनील कुमार,पीतल व्यवसायी, परेव कहते है अगर सरकार पहल करे, तो यह उद्योग राज्य में फिर से क्रांति ला सकता है ।

अनूप नारायण सिंह 

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 18 अप्रैल,20 ) ।
पटना से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिहटा का परेव पीतल नगरी के रूप में जाना जाता है. परेव की पहचान राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में पीतल बर्तनों के बेहतर निर्माण के कारण रही है, लेकिन आज यह उद्योग सरकार की उदासीनता के कारण संकट में है. परेव की पहचान परंपरागत तरीके से पीतल, कांसा, जस्ता, एल्युमिनियम, तांबा आदि के बर्तनों के निर्माण के रूप में रही है. इस व्यवसाय से गांव के करीब दस हजार परिवारों व मजदूरों का पेट भरता है, लेकिन सरकार ने कभी इस उद्योग पर नजर नहीं डाली. इस कारण यह उद्योग समुचित संसाधन के अभाव में दम तोड़ रहा है. दस वर्ष पूर्व भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय ने पहल शुरू की थी. पीतल नगरी की पहचान के लिए तब दो करोड़ की लागत से यहां सामान्य सुविधा केंद्र का निर्माण कराया था, लेकिन उससे व्यवसायियों को कोई सुविधा नहीं मिली. रहनुमाओं व प्रशासनिक अधिकारियों की उपेक्षा के कारण यहां का उद्योग दिन-पर-दिन बंदी के कगार पर है. यहां के कारीगर दूसरे शहरों में अपना ठिकाना बनाने के लिए विवश हो गये हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई राजनेताओं के वादे के बावजूद परेव की तस्वीर नहीं बदली और यहां बसे हजारों व्यवसायी व कारीगरों के परिवारों को फजीहत का सामना करना पड़ रहा रहा है. सूक्ष्म लघु उद्यम मंत्रालय की कोशिश नाकाम अन्य प्रदेशों से आये लोग व स्थानीय कुशल कारीगर इस उद्योग में वर्षों से लगे हैं. उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ी, लेकिन सरकार की उपेक्षा से यहां के व्यवसायी अपनी व्यवस्था में कोई माकुल परिवर्तन नहीं ला सके.चीन द्वारा नेपाल को सस्ती दर पर कच्चे माल की आपूर्ति के कारण नेपाल ने फैंसी बर्तन बनाने के कारखाने खोल लिये और बर्तनों को भारत भेजना शुरू कर दिया, जिससे परेव में बने पीतल के बर्तन की मांग कम होने लगी. परेव में बने बर्तन मजबूत तो हैं, लेकिन देखने में नेपाल के बर्तनों जैसे चमकदार नहीं दिखते, जिससे नेपाल के बर्तनों की बिक्री ज्यादा होने लगी. दस वर्ष पूर्व परेव के व्यवसायियों के नुकसान को समझते हुए भारत सरकार के सूक्ष्म लघु मध्यम उद्यम मंत्रालय ने दो करोड़ की लागत से यहां सामान्य सुविधा केंद्र का निर्माण कराया ताकि कारीगर अपने हाथों से बनाये बर्तन को भी नेपाल के बने बर्तनों जैसी चमक दे सकें. 18 जुलाई, 2008 को इसका उद्घाटन नीतीश कुमार ने किया था, लेकिन सरकार की अव्यवस्था के कारण आज तक उस कारखाने का पहिया तक नहीं हिल पाया है. आज तक यह सुविधा केंद्र परेव के व्यवसायियों को कोई सुविधा नहीं दे पाया. आज स्थिति यह है कि बिजली कार्यालय ने दो लाख पचास हजार बिजली बिल बकाया होने के कारण बिजली भी काट दी है. संसाधनों का रोना रो रहे व्यवसायी व कारीगर यदि सरकार व प्रशासन का समुचित सहयोग मिले, तो परेव पीतल के बर्तन उद्योग में मिर्जापुर-मुरादाबाद को पीछे छोड़ देगा. परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व केनरा बैंक की शाखा खोली गयी. अब यहां के लोग उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा की ओर आकृष्ट हो रहे हैं. सुनील कुमार,पीतल व्यवसायी कहते है परेव को अगर सरकार पहल करे, तो यह उद्योग राज्य में फिर से क्रांति ला सकता है. सबसे बड़ी समस्या अनवरत बिजली नहीं मिलनी है. साथ ही नेपाल की तरह अनुदानित दर पर कच्चा माल मिले, तभी जाकर हम लोग इस प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर सकेंगे. नोटबंदी व जीएसटी के चलते उनका कारोबार ठप हो गया है. दिलीप कुमार पीतल व्यवसायी कहते हैं परेव सरकार अगर कारीगरों के परिवार को विशेष सुविधा के साथ-साथ सुविधा केंद्र में अच्छी व्यवस्था हो, तो हम नेपाल के बर्तनों से अच्छी चमक और मजबूत वाले बर्तनों का निर्माण कर सकते हैं. सुविधा केंद्र में बड़ा रोला, प्रेस डाई, समय से बिजली मिले. कच्चा माल समय से उपलब्ध हो, तो परेव के बने बर्तनों का कोई टक्कर नहीं ले सकता. कल्लू कुमार, पीतल बर्तन कारीगर एक वक्त था जब परेव के सभी घरों में पीतल के बर्तन बनते थे. अन्य प्रदेशों से कुशल कारीगर यहां आते थे. समय बीतने के साथ-साथ पीतल उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ती गयी, लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण यहां के व्यवसायी अपनी व्यवस्था में परिवर्तन नहीं ला सके. विनोद साव, पीतल बर्तन कारीगर समुचित संसाधन का अभाव परेव की पहचान परंपरागत तरीके से पीतल, कांसा, जस्ता, एल्यूमिनियम और तांबे के बर्तन निर्माण केंद्र के रूप में रही है. इस व्यवसाय से इस गांव में करीब दस हजार लोगों को रोजी-रोटी मिलती है. सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. पुराने ढर्रे पर चल रहा यह उद्योग समुचित संसाधन के अभाव में दम तोड़ने लगा है । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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