सीय राममय जब जग जानी। करउं प्रणाम जोरि जुग पानी
गोस्वामी तुलसीदासजी के उपर्युक्त पद संसार को यह सन्देश देते हैं कि पूरा संसार सीता-राम का ही स्वरूप है, अर्थात सबमें भगवान का वास है।
रामायण में सीता स्वयंवर, राम-वनवास, सीता हरण, जटायु का रावण से संघर्ष, हनुमान द्वारा सीता की खोज, लंका-दहन, समुद्र में सेतु निर्माण, इन्द्रजीत-कुम्भकर्ण-रावण वध, लंका विजय के बाद विभीषण को लंकापति बनाना, श्रीराम का अयोध्या आगमन, राम-भरत मिलन आदि सबकुछ अद्भुत और अद्वितीय प्रसंग है। अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य तथा अनीति पर नीति का विजय का प्रतीक रामायण भारतीय इतिहास की गौरवमय थाती है।
समस्तीपुर, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 03 अप्रैल,20 ) । हिन्दू पुत्र संगठन के वरिष्ठ सदस्य भाई आनंद कुमार बजरंगी ने प्रभु श्री राम के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुऐ कहा कि सीय राममय जब जग जानी। करउं प्रणाम जोरि जुग पानी। गोस्वामी तुलसीदासजी के उपर्युक्त पद संसार को यह सन्देश देते हैं कि पूरा संसार सीता-राम का ही स्वरूप है, अर्थात सबमें भगवान का वास है। अतः हाथ जोड़कर सबमें समाए सियाराम को प्रणाम करना चाहिए। ईश्वर को संसार के कण-कण में अनुभव करना, सचमुच कितनी उदात्त कल्पना है यह! वास्तव में इसे कल्पना कहना उचित नहीं होगा क्योंकि अपने देश में ऐसे अनेक संत-भक्त हुए हैं जिन्होंने ईश्वर की अनुभूति की है और वे स्वयं ईश्वरमय हो गए।
भगवान श्रीराम के बारे में भला कौन वर्णन कर सकता है? वाल्मीकि रामायण में कहा गया है - “रामो विग्रहवान् धर्मः।” राम धर्म के मूर्त स्वरूप हैं। लक्ष्मण सुरि ने अपनी रचना ‘पौलस्त्य वध’ में श्रीराम का वर्णन करते हुए कहा है, “हाथ में दान, पैरों से तीर्थ-यात्रा, भुजाओं में विजयश्री, वचन में सत्यता, प्रसाद में लक्ष्मी, संघर्ष में शत्रु की मृत्यु – ये राम के स्वाभाविक गुण हैं।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने “गोस्वामी तुलसीदास” नामक अपनी पुस्तक में कहा है, “राम के बिना हिन्दू जीवन नीरस है – फीका है। यही रामरस उसका स्वाद बनाए रहा और बनाए रहेगा। राम ही का मुख देख हिन्दू जनता का इतना बड़ा भाग अपने धर्म और जाति के घेरे में पड़ा रहा। न उसे तलवार काट सकी, न धन-मान का लोभ, न उपदेशों की तड़क-भड़क।”
श्रीराम भारतीय जनमानस में आराध्य देव के रूप में स्थापित हैं और भारत के प्रत्येक जाति, मत, सम्प्रदाय के लोग श्रीराम की पूजा-आराधना करते हैं। कोई भी घर ऐसा नहीं होगा, जिसमें रामकथ से सम्बंधित किसी न किसी प्रकार का साहित्य न हो क्योंकि भारत की प्रत्येक भाषा में रामकथा पर आधारित साहित्य उपलब्ध है।
विश्व के अनेक भाषा में रामकथा :
भारत के बाहर विश्व के अनेक देश ऐसे हैं जहां के जन-जीवन और संस्कृति में श्रीराम इस तरह समाहित हो गए हैं कि वे अपनी मातृभूमि को श्रीराम की लीलाभूमि एवं अपने को उनका वंशज मानने लगे हैं। यही कारण है कि विश्व के अनेक देश ऐसे हैं जहां की भाषा में रामकथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। चीनी भाषा में राम साहित्य पर तीन पुस्तकें प्राप्त होती हैं जिनके नाम “लिऊ तऊत्व”, “त्वपाओ” एवं “लंका सिहा” है जिनका रचनाकाल क्रमशः 251ई., 472ई. तथा 7वीं शती है। इनमें से दो रचयिता क्रमशः किंग तथा त्वांगकिंग हैं, जबकि तीसरे ग्रंथ के रचयिता का नाम अज्ञात है।
तुर्किस्तान में तुर्की भाषा में “खेतानी रामायण” नामक ग्रंथ 9वीं शती में लिखा गया जबकि तिब्बत के तिब्बती भाषा में “तिब्बती रामायण” की रचना तीसरी शती में की गई। 10वीं शती में मंगोलियाई भाषा में “मंगोलिया की रामकथा” लिखी गई जबकि इसी सदी में जापानी भाषा में साम्बो ए कोतोबा ने “जापान की रामकथा” नामक ग्रंथ की रचना की। इसके बाद 12वीं शती में होबुत्सु ने भी “जापान की रामकथा” नामक ग्रंथ की रचना की। इसी तरह इंडोनेशिया में हरिश्रय, रामपुराण, अर्जुन विजय, राम विजय, विरातत्व, कपिपर्व, चरित्र रामायण, ककविन रामायण, जावी रामायण एवं मिसासुर रामकथा नामक ग्रन्थ लिखे गए। थाईलैंड में “केचक रामकथा”, लाओस में ‘फालक रामकथा’ और ‘पोम्मचाक’, मलेशिया में “हकायत श्रीराम, कम्बोडिया में “रामकीर्ति” और फिलीपिन्स में ‘महरादिया लावना’ नामक ग्रंथ की रचना की गई।
श्रीलंका में महर्षि कालिदास के समकालीन लंकपति कुमारदास ने “जानकी हरणम्” साहित्य लिखा। बर्मा में राम-साहित्य की 9 ग्रंथों की खोज की जा चुकी है। ये ग्रन्थ हैं – रामवस्तु, महाराज, रमतोन्मयो, रामताज्यी राम यग्रान, अंलोगराम तात्वी, थिरीराम पोंतवराम और पौन्तव राम लखन।
रूस में तुलसीकृत रामचरितमानस का रूसी भाषा में अनुवाद बारौत्रिकोव ने 10 वर्षों के अथक परिश्रम से किया, जिसे सोवियत संघ की विज्ञान अकादमी ने सन 1948 में प्रकाशित किया। उपर्युक्त देशों की भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, उर्दू, फारसी, पश्तों आदि भाषाओं में भी राम साहित्य की रचना की गई। कहने का तात्पर्य है कि भगवान राम सर्वव्यापक तो हैं ही, साथ ही उनपर लिखे गए साहित्य की व्यापकता भी विश्व की अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। यह श्रीराम चरित्र की विश्व लोकप्रियता को प्रतिबिंबित करता है।
हम राम को पढ़ते हैं, पूजते हैं। उनके जीवन, विचार, संवाद और प्रसंगों को पढ़ते-पढ़ते भावविभोर हो जाते हैं। उनका नाम लेते ही हमारा हृदय श्रद्धा और भक्तिभाव से सराबोर हो जाता है। हमारे सामने श्रीराम की धर्मपत्नी माता सीता का महान आदर्श है जो अद्वितीय है। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसा भाई, महावीर हनुमान और शबरी जैसी भक्ति, अंगद जैसा आत्मविश्वासी तरुण, भला और कहां दिखाई देता है! रामायण के प्रमुख पात्रों में जटायु, सुग्रीव, जाम्बवन्त, नल-नील, विभीषण जैसे नायक लक्ष्यपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं। वहीं रावण, कुम्भकर्ण, इन्द्रजीत मेघनाथ जैसे पराक्रमी असुरों का वर्णन भी विकराल है, जिनपर श्रीराम और उनके सहयोगी सैनिकों द्वारा विजय प्राप्त करना सचमुच अद्भुत है।
रामायण में सीता स्वयंवर, राम-वनवास, सीता हरण, जटायु का रावण से संघर्ष, हनुमान द्वारा सीता की खोज, लंका-दहन, समुद्र में सेतु निर्माण, इन्द्रजीत-कुम्भकर्ण-रावण वध, लंका विजय के बाद विभीषण को लंकापति बनाना, श्रीराम का अयोध्या आगमन, राम-भरत मिलन आदि सबकुछ अद्भुत और अद्वितीय प्रसंग है। अधर्म पर धर्म, असत्य पर सत्य तथा अनीति पर नीति का विजय का प्रतीक रामायण भारतीय इतिहास की गौरवमय थाती है। रामायण का हर पात्र अपनेआप में श्रेष्ठ हैं पर श्रीराम के साथ ही माता सीता, महावीर हनुमान, लक्ष्मण और भरत का चरित्र पाठक के मनःपटल को आलोकित करता है।
अपने भारत देश में जप के लिए “श्रीराम जय राम जय जय राम”, अभिवादन के लिए राम-राम, खेद प्रकट करने के लिए राम-राम-राम और अंत समय “राम नाम सत्य है” कहने का प्रचलन है। यानी जन्म से अंत तक राम का ही नाम अपने समाज में रच-बस गया है। अतः सब ओर राम ही राम है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जो स्वयं धर्म स्वरूप हैं; उनका वर्णन करनेवाले तुलसीदास ने स्वयं ही कह दिया -
“नाना भांति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।।
रामहि केवल प्रेम पियारा। जानि लेउ जो जाननिहारा।।”
अर्थात राम का जीवन अपरम्पार है, उसे समझना कठिन है। पर राम को जाना जा सकता है – केवल प्रेम के द्वारा। आइए, अंतःकरण के प्रेम से भगवान श्रीराम का स्मरण करें । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा आनंद कुमार झा बजंरगी की आलेख सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma