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अपनी संवेदनशीलता को कब जागृत करेंगे मुख्यमंत्री जी: शत्रुघ्न प्र० सिंह पूर्व सांसद


आखिर बिहार के मुखिया जी की नींद कब खुलेगी- अब तक 52 शिक्षकों की हो चुकी है हड़ताल के दौरान मौत

सरकारी मुलाजिमों के लगातार दमन के कारण अधिकांश आंदोलनकारी हड़ताली शिक्षक हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज तथा पैसे के अभाव में इलाज न कराने के कारण असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैं

सुदर्शन कुमार चौधरी की रिपोर्ट 

समस्तीपुर,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 17 अप्रैल,20 ) । 
बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव सह पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा कि अपनी संवेदनशीलता को कब जागृत करेंगे मुख्यमंत्री जी! आखिर और कितने शिक्षकों की शहादत के बाद आपकी नींद टूटेगी । जहाँ एक ओर पूरे विश्व मे कोरोना महामारी का प्रकोप अनवरत जारी है वहीं इस राज्य में इस महामारी की तुलना में कहीं अधिक तथा शिक्षक आंदोलन इतिहास की अब तक का सबसे बड़ी त्रासदी है। दूसरी तरफ आपके कैबिनेट के अति विद्वान शिक्षा मंत्री लगातार मीडिया में बयानवीर बने हैं और शिक्षकों को ही मानवता का पाठ पढ़ा रहे हैं।
 ये हड़ताली शिक्षक वर्षों से सरकार के नियोजनवाद के दंश को झेल रहे थे तथा अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत लोकतांत्रिक तरीके से अपनी वाजिब हक को लेकर विगत 25 फरवरी से हड़ताल पर हैं। मगर अपने को सुशासन की सरकार बताने वाली यह सरकार असंवैधानिक रूप से लगातार अल्प वेतनभोगी हड़ताली शिक्षकों का कार्य अवधि का भी वेतन बंद कर लगातार दंडात्मक और दमनात्मक कार्रवाई करती आ रही है। आपके सरकारी मुलाजिमों के लगातार दमन के कारण अधिकांश आंदोलनकारी हड़ताली शिक्षक हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज तथा पैसे के अभाव में इलाज न कराने के कारण असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैं। यदि इन शिक्षकों के परिवार की मृत्यु की संख्या को जोड़ी जाए तो यह बहुत बड़ी संख्या होगी। श्री सिंह ने कहा कि हड़ताल के पूर्व बिहार के सीएम नीतीश कुमार और शिक्षा मंत्री के साथ ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव का ध्यान लगभग 20 पत्रों के माध्यम से इस ओर आकृष्ट कराया गया था। लेकिन आपकी संवेदनहीनता के कारण किसी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई तो संघ को मजबूरन हड़ताल पर जाना पड़ा। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और कोरोना आपदा के कारण लॉकडाउन का प्रभाव पड़ा। सरकार ने कोई वार्ता नहीं की। सिर्फ समाचार पत्रों में आपके शिक्षा मंत्री का बयान आता रहा कि नैतिकता के आधार पर हड़ताल वापस ले लेनी चाहिए, हम संकट के बाद देखेंगे। लेकिन न आपने और न आपके शिक्षा मंत्री ने मानवीय दृष्टिकोण से विपरीत एक बार भी दंडात्मक कार्यवाही खेल रहे शिक्षकों पर कोई संवेदना नहीं दिखाई। विडंबना है कि सरकार ने 2015 से प्राथमिक और माध्यमिक नियोजित शिक्षकों को नियत वेतन से एक वेतनमान जो चपरासी से भी कम था देना स्वीकार किया। सबसे अहम बात की आपके बयानवीर शिक्षा मंत्री इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देते कि वर्ष 2015 मैं जब सरकार ने कबूल किया कि 3 महीने के अंदर नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त नियमावली बनाकर दे देंगे तो आज 5 वर्षों के बाद भी सेवा शर्त नियमावली क्यों नहीं बन पाई। इसके बाद वर्ष 2017 में हुई हड़ताल के दौरान 15 अप्रैल '2017 को प्रधान सचिव,शिक्षा विभाग की अध्यक्षता में हुई वार्ता में निदेशक (माध्यमिक शिक्षा) के पत्रांक- 1122 दिनांक-15-4-17 में नियोजित शिक्षकों के सेवा शर्त निर्धारण के लिए 30 जून'2017 तक का समय लिया गया था परंतु पुनः उस समझौते को भी विभाग ने ताक पर रख कर लगातार टालमटोल में आज तक लगी रही । साथ ही शिक्षा विभाग ने यह भी कबूल किया था कि स्कूलों को पंचायती राज से अलग करेंगे। शिक्षा मंत्री जी तो बेशर्मी की हद को पार करते हुए पुनः अपने अपील में यह भी कहते हैं कि सरकार नियोजित शिक्षकों के सेवा शर्त पर संवेदनशील रही है।यदि 5 वर्ष पूर्व सरकार और विभागीय आदेश के आलोक में शिक्षकों की सेवा शर्त नियमावली लागू हो गई रहती तो सूबे बिहार के नियोजित शिक्षकों का अपना भविष्य दिखाई पड़ता कि वह कहां खड़े हैं। इस आशय की जानकारी देते बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के सदस्य सह युवा नेता सिद्धार्थ शंकर ने महासचिव श्री सिंह के हवाले से बताया कि वर्ष 2006 में नियुक्त बहुत सारे नियोजित शिक्षक 14 वर्षों की सेवा उपरांत सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं और लगातार सेवानिवृत्त होते भी जा रहे हैं। लेकिन उन्हें अपना भविष्य पूरी तरह से अंधकार में दिख रहा है। सूबे बिहार में 6 हजार माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय है और उनमें सिर्फ लगभग 90 विद्यालयों में के हजारों विद्यालय प्रधानाध्यापक विहीन हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने बड़े पैमाने पर महिला शिक्षकों की बहाली की है मगर सेवा शर्त नियमावली आज तक नहीं बनने के कारण आज वे अल्प वेतनभोगी शिक्षिकाएं अपने परिवार से दूर रहने को विवश हैं तथा उनका पारिवारिक जीवन भी सही से बसर नही हो पा रहा है। शिक्षकों की नियुक्ति के 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो सदन के अंदर माननीय शिक्षा मंत्री जी ने सेवा शर्त नियमावली के बारे में कोई स्पष्ट आश्वासन दिया है और न ही मीडिया में।
सबसे अहम बात है कि राज्य सरकार ने राष्ट्र निर्माता अर्थात शिक्षक जैसे प्रतिष्ठित शब्द के आगे नियोजित लगाकर उन्हें हीन भावना से ग्रसित होने को मजबूर कर दिया और तो और शिक्षक के पद प्रतिष्ठा को कलंकित करने का काम भी हुआ। विगत कुछ महीने पूर्व माननीय उच्च न्यायालय,पटना ने बिहार के नियोजित शिक्षकों के लिए एक बार फिर फैसला दिया कि शिक्षकों के भविष्य निधि सरकार अविलंब लागू करे। इस संबंध में आदेश के महीनों बीत जाने के बाद भी सरकार आज तक स्पष्ट उल्लेख नहीं कर पा रही है।और ऊपर से सरकार के शिक्षा मंत्री जी उलटे मीडिया के माध्यम से बयान दे रही है कि शिक्षक मानवीय आधार पर हड़ताल से वापस आ जाएं। श्री सिंह ने स्पष्ट कहा कि शिक्षा मंत्री जी शिक्षकों को सम्मान देना चाहते ही नहीं हैं। वे न ही दंडात्मक कार्रवाई, न सेवा शर्त न वेतन विसंगति और न भविष्य निधि का लाभ देना चाहते है ? आखिर शिक्षक जाएं तो कहां जाएं। माननीय मुख्यमंत्री जी से अपील है कि शिक्षकों के वर्षों से लंबित इन सवालों पर गंभीरता पूर्वक विचार करें। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सुदर्शन कुमार चौधरी की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar Verma

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