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वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव के उपलक्ष्य में पढ़िए बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह की कलम से एक खास आलेख



सृष्टि वीरों को सदैव सम्मान करते हुए अपना प्रिय पुत्र मानी है।

  वीरता उम्र सीमा की बाधक नही होती 
             ( बाबू कुँवर सिंह ) 

बिहार के धरती के वीर योद्धा बाबू कुंवर सिंह सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे।

बाबू कुँवर सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर नामक गाँव में सन 1777 में हुआ था । इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजो में से थे ।

अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट 

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 23 अप्रैल,20 ) । सृष्टि वीरों को सदैव सम्मान करते हुए अपना प्रिय पुत्र मानी है। हर युग में असंख्य वीरों ने राष्ट्र, मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए अपने प्राणो की आहुति दी है।वैसे वीरो की गाथा हर काल खंड में प्रेरणा देकर राष्ट्र प्रेम के साथ शक्ति का संचार करती है।वीर योद्धाओं को वीरता दिखाने के लिए उम्र की सीमा बाधक नहीं बन सकती है।इतिहास इसका दर्पण प्रमाण है।बिहार के धरती के वीर योद्धा बाबू कुंवर सिंह सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक थे।बाबू कुँवर सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर नामक गाँव में सन 1777 में हुआ था | इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह प्रसिद्ध शासक भोज के वंशजो में से थे | उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उद्वंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह जाने-माने जागीरदार थे तथा अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिए हमेशा युद्ध करते रहे । सन 1846 में अंग्रेजो को भारत से भगाने के लिए बिहार के दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया।मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी।ऐसे वातावरण में अस्सी वर्ष की उम्र में बाबू कुंवर सिंह ने 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों,भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के सहयोग से आरा नामक शहर पर अधिकार कर लिया।जब अंग्रेज सिपाहियों ने आरा पर हमला करने की कोशिश की तो बीबीगंज और बिहिया के जंगलो में घमासान युद्ध हुआ और अंत में अंग्रेज सिपाहियों की विजय हुयी। आरा पर फिर से कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजो ने जगदीशपुर पर हमला कर दिया।बाबू कुंवर सिंह और अमर सिंह को अपनी जन्मभूमि जगदीशपुर को छोड़ना पड़ा । अमर सिंह अंग्रेजो से छापामार युद्ध करते रहे।सन 1857 की क्रांति के समय बिहारवासियों के मन में जोश उत्पन्न होने लगा और पटना के प्रसिद्ध क्रांतिकारी पीर अली को अंग्रेजो ने फांसी की सजा दे दी । उनकी फाँसी की खबर सुनते हे 25 जुलाई को दानापुर की तीन देशी पलटनो ने विद्रोह कर दिया और जगदीशपुर पहुचकर बाबू कुँवर सिंह से नेतृत्व करने की सिफारिश कीए क्रांति का नेतृत्व करने के लिए कुँवर सिंह तैयार हो गये।इस बात की जानकारी अंग्रेजो को भी लगी।उनके द्वारा वीर कुँवर सिंह को बंदी बनाने के उद्देश्य से उन्हें मेहमाननवाजी का न्योता दिया।कुँवर सिंह ने अंग्रेजो की इस चाल को समझ गये । उन्होंने आरा पर हमला किया और सरकारी खजाने को लुट लिया, अंग्रेजो के जेलखाने और कार्यालय को तहस-नहस कर दिया और अंग्रेजो का झंडा उखाडकर फेंक दिया।इस घटना की सुचना पाते ही ब्रिटिश सरकार ने दानापुर से कैप्टन डनबर के नेतृत्व में घिरे हुए अंग्रेजो की मदद के लिए भेजा।रात को जब वे चुपचाप आरा की ओर जा रहे थे तथा कुँवर सिंह के आदमियों से उनका आमना-सामना हो गया और अंग्रेज़ सैनिकों की हार हुई।इस पराजय के बाद ब्रिटिश प्रशासन कैप्टन आयर को विद्रोहियों को कुचलने के लिए भेजा। वह तीन तोपे और कुछ सिपाही लेकर बाबू कुँवर सिंह के घेरे को विनष्ट करने के लिए आया ।आयर ने पुन: आरा पर अधिकार कर लिया।इस प्रकार 08 दिन के बाद आरा हाउस में घिरे अंग्रेज बाहर निकल सके।कुँवर सिंह ने जगदीशपुर जाकर अपनी सैन्यशक्ति बढाना प्रांरभ कर दिया परन्तु आयर तुंरत जगदीशपुर की ओर अपने सैनिको के साथ चल दिया। उसके आने की सुचना मिलते ही कुँवरसिंह जगदीशपुर से हट गये और उन्होंने जंगल में जाकर छापामार युद्ध करना प्रारम्भ किया।वीर कुँवरसिंह के पास सैनिक बहुत कम थे अत: कुँवरसिंह ने छापामार युद्ध के जरिये उनपर आक्रमण करने का फैसला किया।वे अपनी सेना लेकर जंगल से निकलकर आजमगढ़ की ओर चल दिए।कुँवरसिंह को जब पूर्ण रूप से यह मालुम पड़ा कि अब हमारी हार सुनिश्चित है तो अपने सिपाहियों को कई टुकडियो में बंटने और एक निश्चित स्थान और समय पर आ मिलने का आदेश दिया। अंग्रेज़ कुँवरसिंह की गतिविधियों का पता लगाने के लिए आदमी भेज दिया। इधर निर्धारित स्थल पर एकत्रित होकर कुँवरसिंह की सेना पुन: आगे बढने लगी। दुश्मन को धोखा देने के लिए उन्होंने यह झूठी सुचना फैला दी कि नावो की कमी के कारण वे हाथियों से बलिया के पास गंगा पार करेंगे। डगलस यह समाचार पाकर बड़ा खुश हुआ और बलिया जाकर कुँवरसिंह के दल के आने का रास्ता देखने लगा । कुँवरसिंह के सैनिको ने बलिया से लगभग 07 मील दूर शिवपुर घाट से नावों में बैठकर गंगा पार करने लगे।डगलस सूचना पाकर जल्दी वहां पहुचा लेकिन। बाकी सेना या तो पार कर गयी थी या बीच नदी में पहुचे चुकी थी। हाथी पर बैठ कर गंगा पार करते समय कुँवरसिंह को डगलस ने देख लिया। उन पर एक हथगोला फेंका जो भुजा पर लगा।80 साल के इस वीर पुरुष ने दुसरे हाथ से तलवार निकाली और कुहनी से नीच काटकर गंगा माँ को समर्पित कर दिया। 22 अप्रैल 1858 को कुँवरसिंह ने जगदीशपुर पर आक्रमण अधिकार में कर लिया । यह समाचार पाते ही आरा का अंग्रेज सेनापति ले ग्रान्ड अपने सैन्यबलों के साथ 23 अप्रैल को जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। बीच के जंगल में ही कुँवरसिंह ने अपने सिपाहियों को लेकर उसे आ घेरा ब्रिटिश ग्रान्ड की हत्या कर दी गयी। जुलाई 1857 से 23 अप्रैल 1858 के बीच पंद्रह भयंकर लड़ाई लड़ी। 26 अप्रैल 1858 को वीर कुँवरसिंह का आज़ाद जगदीशपुर में देहांत हो गया। कुँवरसिंह के देहांत के बाद उनका छोटा भाई अमर सिंह ने वहां की बागडोर सम्भाली।
              बाबू कुंवर सिंह सर्वधर्म अनेकता में एकता के मूल स्तंभ थे।उनकी सेना में हिंदू मुस्लिम दलित और पिछड़ी जाती के लोग समर्पण भाव से शामिल थे ।अली क़रीब, बसावन महतो, वारिस अली,इब्राहिम ख़ाँ उनके सैन्य पदाधिकारी और विश्वासपात्र थे।जबकि किफ़ायत हुसैन, द्वारका माली,रंजीत गवाला, देवी ओझा जनता के प्रतिनिधि थे।और 23 अप्रैल 1858 को उन्होंने स्वतंत्र आरा में पहली बार वाहियात खां को कलेक्टर नियुक्त कर आज़ाद भारत का झंडा फहराया था। बाबू कुँवर सिंह ने क्षेत्र में सिंचाई के लिए अनेको बाँध बनवाए थे जो बाबू बाँध के नाम से आज भी प्रचलित है।सिंचाई हेती नहर का भी निर्माण करवाया । दो भूखे ब्राह्मणों के लड़के को जितना दौड़ सकता था उतना ज़मीन दान में दिए जो दूँब चरनी बधार के नाम से प्रचलित है । दूसाधि बधार की कहानी भी उनसे जुड़ी हुई है। कुँवरसिंह का नाम आज भी एक साहसी वीर के रूप में लिया जाता है।आज हम सभी भारतीए बाबू कुंवर सिंह के मार्ग पर चलकर अनेकता में एकता की बंधन को और मज़बूत करते हुए भारत को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का संकल्प लेकर विश्व के मानचित्र पर भारत को स्थापित करें।जो पूरे विश्व के देशों को दृष्टिगोचर हो। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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