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सती की याद में श्रद्धालु लोगों ने एक चौरा बनाया। महथिन माई की पूजा होने लगी। धीरे-धीरे वह पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गयी

श्रीधर महंथ की बेटी रागमती की डोली उसी रास्ते से सोन नदी के पास तुलसी हरीग्राम अपने ससुराल की ओर जा रही थी तो राजा के सैनिको ने डोली रोक दी। उसे महल की ओर चलने को कहा। इसका महंथ की बेटी ने जबरदस्त विरोध किया जब  सैनिकों के साथ राजा ने भी जबरदस्ती की तो महथिन ने क्रोधित होकर राजवंश के समूल नाश होने का शाप दे दिया। बताया जाता है की इस घटना के बाद महथिन की डोली में स्वतः आग लग गई।

इस घटना के बाद हरिहो राज वंश का भी नाश हो गया

अनूप नारायण सिंह 

आरा,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 07अप्रैल,20 ) ।आरा का बिहिया हमारे लिए भी तीर्थ रहा है। मेरा माथा तो बचपन से माता महथिन दाई के चरणों में झूकता रहा है। पहली बार माँ के साथ वहां गया। हर साल मेले में वहां असंख्य नर-नारी देवी माता से सुहाग और सुरक्षित जीवन का आशीर्वाद लेने जुटते हैं। माना जाता है कि इस इलाके का राजा रणपाल बहुत ही दुराचारी एवं घमंडी था। वह उधर से गुजरने वाली  हर नई-नवेली दुल्हनों की डोली पहले अपने पास मंगवा लेता था। बल प्रयोग कर अबला की इज्जत लुटता था। एक दिन जब सिकरिया गांव के श्रीधर महंथ की बेटी रागमती की डोली उसी रास्ते से सोन नदी के पास तुलसी हरीग्राम अपने ससुराल की ओर जा रही थी तो राजा के सैनिको ने डोली रोक दी। उसे महल की ओर चलने को कहा। इसका महंथ की बेटी ने जबरदस्त विरोध किया | जब  सैनिकों के साथ राजा ने भी जबरदस्ती की तो महथिन ने क्रोधित होकर राजवंश के समूल नाश होने का शाप दे दिया। बताया जाता है की इस घटना के बाद महथिन की डोली में स्वतः आग लग गई। वह सती हो गयी। इस घटना के बाद हरिहो राज वंश का भी नाश हो गया । बाद में सती की याद में श्रद्धालु लोगों ने वहां एक चौरा बनाया। महथिन माई की पूजा होने लगी। धीरे-धीरे वह पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गयी। वहां लोगों ने महथिन माई का एक भव्य मंदिर बना दिया। नियमित पुजारी रहने लगे। देवी की सुबह-शाम आरती होती है। यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां सालाना लगने वाले बड़े मेले के  अलावा हर सप्ताह दो दिन सोमवार एवं शुक्रवार को विशेष मेला लगता है | लोग अपनी मन्नते मांगने यहां दूर-दूर से आते हैं | महथिन माई को लेकर महिलाओं में गहरी आस्था है कि इनकी आराधना से सुहाग सुरक्षित रहता है | सुखी दाम्पत्य जीवन पर कोई संकट नहीं आता। माता उनकी मनौती पूरी करती हैं। मनौती पूरी होने पर विशेष पूजा और चुनरी चढ़ाने का रिवाज है। इस इलाके में मंदिर की मान्यता एक शक्तिपीठ जैसा है। लोगों को विश्वास है कि मां के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। मंदिर प्रागंण में लोग अपने परिवार के साथ नये जोड़ों का शादी-विवाह कराने भी जुटते हैं।यही कारण है कि महथिन माई सुहाग की देवी के रूप में इस क्षेत्र में विख्यात है | मंदिर के प्रवेश द्वार से अंदर परिसर में प्रवेश करते ही बायें तरफ शिव मंदिर तथा दाहिने तरफ राम जानकी मंदिर है।मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में एक चबूतरा है वहां एक चौमुखा दीप जलता रहता है। चबूतरे पर बीचोंबीच दो गोलाकार पीतल का परत चढ़ाया हुआ महथिन माई का प्रतीक चिह्न है | इसी तरह का दो गोला मुख्य गोले के अगल बगल स्थित है। जिसके बारे में बताया जाता है कि दो मुख्य गोला महथिन माई और उनके बहन का प्रतीक चिह्न और दायें-बायें तरफ वाला गोला महथिन माई के दो परिचारिकाओं का स्मृति चिह्न है | इन्हीं  के समक्ष महिलाएं अपना माथा टेकती हैं। मनौतियां मानती हैं।  सुहाग एवं संतान की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर चुनरी चढ़ाती हैं।लोगों का कहना है कि वर्षों पूर्व यहां महुआ के पेड़ के नीचे खुले आकाश में मिट्टी का एक चबूतरा बना था जिस पर महथिन माई की पूजा की जाती थी | मंदिर कब बना और किसने बनवाया, यह कोई नहीं बता पाता। इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती। गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर बोलचाल की स्थानीय भाषा में चौपाई दोहे लिखे हैं। महथिन माई के पुण्य प्रताप से संबंधित अनेक चमत्कारिक किस्से हैं। शादी ब्याह के मौसम में नव विवाहिता जोड़े यहां ‘कंकण’ छुड़ाने आते हैं। यहां प्रति वर्ष सैकड़ों जोड़े महथिन माई को साक्षी मानकर दाम्पत्य सूत्र में बंधते हैं | बिहिया का यह मंदिर लोक आस्था का एक मजबूत केंद्र माना जाता है। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट संप्रेषित।  Published by Rajesh kumar verma

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