बच्चों का संसार अनोखा,
हर पल रहते प्यार का भूखा,
पल में हँसना, पल में रोना,
मम्मी-पापा के नयनों का सोना,
बात-बात मे खेल-खिलौना,
जादू-ट़ोना श्याम सलोना,
अद्भुत-अनुपम यह प्यार अनोखा,
टाफी-बिस्किट का प्रेम अनोखा,
फूल सा कोमल निर्मल कल-कल,
बच्चों का संसार अनोखा,
हर.पल रहते प्यार का भूखा,
संभलोगे नहीं तो गिरते जाओगे,
ताश-पत्तों कि तरह बिखरते जाआगे,
कोरोना के डर से कोई रोना नहीं,
वरना् रोते-रोते मरते जाआगे,
परदेशी मजदूरों के हालात ठीक नहीं,
कब-तक मदद को आगे आओगे,
शहरों मे खटाल की सिसकियाँ सुन लो,
कब-तलक चारा भुखे गायों को भिजवाओगे,
कब तक लाठी-गोली की सियासत करवाओगे,
"वत्स"कब तक घोषणाअमलीजामा पहनाओगे..???
समस्तीपुर कार्यालय से प्रवीण प्रसाद सिंह की कविता राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma