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जनसंपर्क दिवस विशेष- जन से संपर्क!जनसम्पर्क का शाब्दिक अर्थ जनता से संपर्क अर्थात अपनी बात जनता तक और जनता की बात अपने तक पहुंचाना जनसम्पर्क का अहम हिस्सा कहा जाता है



बिना संपर्क के समाज की कल्पना असंभव है, क्योंकि संपर्क से ही सूचना का प्रसार होता है जिससे नये विचारों का निर्माण होता है और उसे गति मिलती है, इसके परिणामस्वरूप सामाजिकता का विकास होता है।

हालांकि आज विचारों व सूचनाओं के प्रसार का टीवी, रेडियो, अखबार व अन्य परंपरागत मीडिया के अलावे फेसबुक, ट्विटर व व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महत्वपूर्ण हो गए हैं।  इन माध्यमों पर  जन का जन से संपर्क अवश्य बढ़ रहा है लेकिन साथ ही सूचना-तंत्र के इन बेलगाम प्लेटफार्म पर  सकारात्मकता के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।

अजय कुमार स्वतंत्र पत्रकार 

पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 21 अप्रैल,20 ) । आज जब समूचे विश्व में आपसी कटुता बढ़ रही है और समाज अफवाहों के रडार पर है। आएं दिन लगातार मॉब लिंचिंग, साम्प्रदायिक तनाव  की स्थिति देखने को मिल रही है, ऐसे में  जनसंपर्क  की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। 
   जनसम्पर्क का शाब्दिक अर्थ जनता से संपर्क अर्थात अपनी बात जनता तक और जनता की बात अपने तक पहुंचाना जनसम्पर्क का अहम हिस्सा कहा जाता है। 
   बिना संपर्क के समाज की कल्पना असंभव है, क्योंकि संपर्क से ही सूचना का प्रसार होता है जिससे नये विचारों का निर्माण होता है और उसे गति मिलती है, इसके परिणामस्वरूप सामाजिकता का विकास होता है।   महात्मा गांधी के अनुसार ‛विचार जन्म तो लेता है लेकिन कभी मरता नहीं।’  बावजूद एक पहलू यह भी है कि बिना जनसंपर्क के विचार जीवित भी  नहीं रह सकता है। संचार माध्यमों के बिना जनसंपर्क कठिन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो पर ‛मन की बात’ इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जिससे पीएम देश के सुदूर गांवों में रहने वाले आमलोगों तक अपने संदेशों को पहुंचा पाते हैं। 
    हालांकि आज विचारों व सूचनाओं के प्रसार का टीवी, रेडियो, अखबार व अन्य परंपरागत मीडिया के अलावे फेसबुक, ट्विटर व व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महत्वपूर्ण हो गए हैं।  इन माध्यमों पर  जन का जन से संपर्क अवश्य बढ़ रहा है लेकिन साथ ही सूचना-तंत्र के इन बेलगाम प्लेटफार्म पर  सकारात्मकता के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।  इन माध्यमों के होने से आमलोग भी सूचना के प्रेषक व उपभोक्ता बन चुके हैं साथ ही यह सूचना का प्रसार भी शीघ्रता से होता है। लेकिन इस सर्वसुलभता ने सूचना को परमाणु बम से अधिक खतरनाक बना दिया है, हाल में राजधानी दिल्ली में भड़की हिंसा व पालघर की घटना इसका जीवंत उदाहरण है। इन घटनाओं के बाद स्थिति सामान्य करने में सरकारी जनसम्पर्क विभाग के द्वारा सूचनाओं की सक्रियता भी देखने को मिली लेकिन यह जरूरी है कि अफवाहों व फेक न्यूज को रोकने के लिए सशक्त उपाय किये जाएं। 
        कोरोना वैश्विक महामारी के खिलाफ युद्ध में जनसंपर्क के सभी माध्यम मानव के लिए सुरक्षा कवच बने हुए हैं, ससमय  सूचना मिलने से ही हम सावधान हो पाए हैं अन्यथा कोविड-19 का प्रकोप अपेक्षाकृत भीषण हो सकता था। स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा प्रतिदिन कोरोना महामारी के ताजा हालात पर प्रेस कांफ्रेंस  की जाती है जिसमें आंकड़ों के साथ-साथ बचाव के लिए दिशा-निर्देश व सलाह भी दी जाती है। 
     आज राष्ट्रीय जनसम्पर्क दिवस है ऐसे में यह विमर्श करना आवश्यक हो जाता है कि जनसम्पर्क के माध्यमों का सही प्रयोग कर हम वसुधैव कुटुम्बकम के अपने उच्च आदर्शों को पुनः स्थापित करें। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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