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ऐसा तस्कर जो पहली तारीख को सरकारी मुलाजिमों व अपने मददगार को सैलरी देता था


1930 में बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र के नयागांव में जन्मे कामदेव सिंह प्रारम्भ में बैलगाड़ी चलाते थे, गंगा के दियारा क्षेत्र में रहने वाले कामदेव सिंह का इसी दौरान डकैतों से निकटता हो गयी और उसके गुट में शामिल हो गए। 

ऐसा तस्कर जिसे कई लोग संजय गांधी के करीबी मानते हैं। ऐसा व्यक्तित्व जिसने 1 से 100 नम्बरवाले 100 नई सफेद एम्बेसडर कार को इंदिरा गांधी के बिहार दौरे में स्वागत के लिए उतार दिया था। 

बीबीसी के एक रिपोर्टर अपनी डायरी में लिखते हैं “कामदेव सिंह बॉलीवुड अभिनेताओं के इतने दीवाने थे कि मुलाकात के दौरान उन्होंने बॉलीवुड के बारे में चर्चा छेड़ दी लेकिन मैन बताया कि ट्रेन छूट जाएगी, तभी कामदेव सिंह ने कहा कि आप पूरी कहानी सुनाए आपकी ट्रैन नहीं छूटेगी।

हुआ भी ऐसा, बातचीत में दो घण्टे निकल गए तब तक ट्रेन बरौनी स्टेशन में रुकी रही।”

अजय कुमार द्वारा सम्प्रेषित 

बेगूसराय, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 20 अप्रैल,20 ) । 
ऐसा तस्कर जो पहली तारीख को सरकारी मुलाजिमों व अपने मददगार को सैलरी देता था। ऐसा तस्कर जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने भारत से यूरेनियम की चोरी कर नेपाल व पाकिस्तान को बेचा था। ऐसा तस्कर जिसे कई लोग संजय गांधी के करीबी मानते हैं। ऐसा व्यक्तित्व जिसने 1 से 100 नम्बरवाले 100 नई सफेद एम्बेसडर कार को इंदिरा गांधी के बिहार दौरे में स्वागत के लिए उतार दिया था। ऐसा तस्कर जिसने बर्चस्व स्थापित करने के लिए 40 कम्युनिस्टों की हत्या कर दी थी ।  
हां, आज हम बात कर रहे हैं बिहार के तस्कर सम्राट कामदेव सिंह की। 
1930 में बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा क्षेत्र के नयागांव में जन्मे कामदेव सिंह प्रारम्भ में बैलगाड़ी चलाते थे, गंगा के दियारा क्षेत्र में रहने वाले कामदेव सिंह का इसी दौरान डकैतों से निकटता हो गयी और उसके गुट में शामिल हो गए। 
यही से कामदेव सिंह के जीवन में परिवर्तन आया और उन्होंने गांजा की तस्करी शुरू कर दी और अपना अलग गुट बना लिया। 
गंगा का तट इनके तस्करी साम्राज्य के विस्तार में सहायक बना, धीरे-धीरे कामदेव गांजा, स्टील समेत सभी प्रतिबंधित पदार्थों की तस्करी शुरू कर दी।
    बीबीसी के एक रिपोर्टर अपनी डायरी में लिखते हैं “कामदेव सिंह बॉलीवुड अभिनेताओं के इतने दीवाने थे कि मुलाकात के दौरान उन्होंने बॉलीवुड के बारे में चर्चा छेड़ दी लेकिन मैन बताया कि ट्रेन छूट जाएगी, तभी कामदेव सिंह ने कहा कि आप पूरी कहानी सुनाए आपकी ट्रैन नहीं छूटेगी। हुआ भी ऐसा, बातचीत में दो घण्टे निकल गए तब तक ट्रेन बरौनी स्टेशन में रुकी रही।”
   कामदेव सिंह की बिहार में ऐसी पैठ बन चुकी थी कि 1980 के दशक में इंडिया टुडे में प्रकाशित एक लेख के अनुसार यह एक ऐसा व्यक्ति था जो चाहे तो चूहे को भी बिहार विधानसभा का सदस्य बना दें। 
    भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित सभी अधिकारी या तो कामदेव का लिफाफा पहली तारीख को स्वीकार करते थे अन्यथा उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी जाती थी।
कामदेव सिंह के साम्राज्य को खत्म करने के लिए बिहार के तात्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने रामचन्द्र खां को एसपी बनाया और इसकी घोषणा उन्होंने विधानसभा में की लेकिन तेजतर्रार एसपी रामचंद्र खां असफल रहें। 
कहा जाता है कि 1974 में नेपाल पुलिस के गिरफ्त में आने के बाद कामदेव सिंह ने वहां के सरकार से समझौता कर लिया और जब भारत की पुलिस वहां पहुंची तो कामदेव सिंह के स्थान पर कोई अन्य व्यक्ति जेल में मिला। 
      देश व विदेशों में कामदेव सिंह का आतंक इतना बढ़ गया था कि खुद तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने बिहार के राज्यपाल से जिंदा अथवा मुर्दा कामदेव भेंट स्वरूप मांगा। बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू था , राज्यपाल ने बिहार पुलिस को असमर्थ बताते हुए आपरेशन कामदेव के लिए सीआरपीएफ की मांग की । 
18 अप्रैल 1980 को कामदेव सिंह का इनकाउंटर हो गया। कहा जाता है कि एक निकटतम व्यक्ति की सूचना की वजह से ही कामदेव सिंह को पुलिस अधिकारी रणधीर वर्मा के नेतृत्व में सीआरपीएफ ने ट्रेस किया था,उसके गांव ‛नयागांव’ में ही पुलिस ने तीन तरफ से घेर लिया तो फिर तस्कर सम्राट गंगा की ओर भागे जिस दौरान उनके पीठ में गोली लगी। गोली लगने के बावजूद गंगा नदी की गोद में कूद गए जहां उन्होंने अंतिम सांस लिया। (कामदेव सिंह के बारे में स्थानीय लोगों से सुनी घटनाओं पर आधारित)। (लेख कामदेव सिंह के किसी भी कृत्य का समर्थन नहीं करता है)। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अजय कुमार 9110956393 द्वारा सम्प्रेषित मूल आलेख को प्रकाश्य हेतू सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar Verma

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