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लॉक-डाउन में नशा पीड़ित समझें विद्दड्रौवल के डंक : डॉ० मनोज कुमार


दुनिया में हर किसी को एक नशा हैं। किसी को दौलत पाने का जूनून ,कोई कम समय में बुलंदियो को छूना चाहता है। कोई एग्जाम में अच्छे मार्क्स की दरकार रखता है या कोई बंदा रिश्ते में कसावटपन को कम करने के लिए शराब जैसे जहर को दवा समझ हलक में उतारता है। इन सब दबावों से युवा मन बोझिल सा दिखता है।

इन सब दबावों से युवा मन बोझिल सा दिखता है।इन तनावों और दबावों को निकालने के लिए कभी लोग चाय-कौफी की चुस्कीयों को भी घूंट-घूंट सहारा लेते हैं तो कभी चंद कशमकश से निपटने के लिए कोई कभी सिगरेट के कश को ही खींच रहा होता दिख जाता है आम दिनों में 

किसी भी नशे से उबङना अब मुमकिन हो गया है। नशा पीङीत के आर्टीफिसीयल इच्छा शक्ति से यह संभव नहीं बल्कि उनके मजबूत इरादे उन्हें जरूर मदद कर सकते हैं। 

राजेश कुमार वर्मा की रिपोर्ट 

 पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 25 अप्रैल,20 ) । वह आजाद ख्याल और उदार व्यक्तित्व वाला लङका था। किसी का दुः ख देखा नही जाता था उससे।आजकल सबकुछ बंद है फिर भी वह एक अजीब बदहवासी में जी रहा था। शायद वह अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोच रहा होता है।शराब के लिए वह ३०० से अधिक किमी. तक कार चलाकर भी नही थकता था। पर आजकल खोया-खोया सा है। क्या वह अपने डूबते करियर के लिए परेशान है या उसके साथ जीने-मरने की कसमें खानेवाली छोड़ कर चली गयी है। पहले तो वह उसे घंटों शराब पीने से मना किया करती थी।अपनी कसमें खिलवाया करती थी।बङी-बङी आँखों वाली उसकी गर्लफ्रेंड गुलाबी ड्रेस में परीयों सी खूबसूरत थी।उसके दांत मोतियो से चमकते हुए मुस्कान सदैव अपने चेहरे पर रख कर ही सौरव(परिवर्तित नाम) को समझाया करती थी।क्या सच में नशे की आदत ने उसे अकेला कर दिया है। अब उसकी दोस्त नही आती मिलने।पङोसीयों का कहना है की इस लौक-डाउन में सौरव गुमसुम सा रहने लगा है। कभी-कभी अकारण चीखने चिल्लाने लगता है। लोगों से कभी शालीनता से पेश आता है तो कभी दुश्मनों जैसा बर्ताव करता है। माता-पिता घर में सौरव के व्यवहार से काफी विचलित हैं। इतना कहते हुए सौरव की शादी-शुदा बङी बहन मेघा सुबकने लगती है। मैंने काफी गंभीरतापूर्वक मेघा की यह व्यथा सुनी थी। दरअसल दुनिया में हर किसी को एक नशा हैं। किसी को दौलत पाने का जूनून ,कोई कम समय में बुलंदियो को छूना चाहता है। कोई एग्जाम में अच्छे मार्क्स की दरकार रखता है या कोई बंदा रिश्ते में कसावटपन को कम करने के लिए शराब जैसे जहर को दवा समझ हलक में उतारता है। इन सब दबावों से युवा मन बोझिल सा दिखता है।इन तनावों और दबावों को निकालने के लिए कभी लोग चाय-कौफी की चुस्कीयों को भी घूंट-घूंट सहारा लेते हैं तो कभी चंद कशमकश से निपटने के लिए कोई कभी सिगरेट के कश को ही खींच रहा होता दिख जाता है आम दिनों में । पर क्या आप जानते हैं की नशे के आदि लोगों को जब वह मादक पदार्थ नही मिलता तो बहुत तरह के विद्दड्रौवल लक्षण उभरने लगते हैं। इस लौक-डाउन में नशा न मिलने की वजह से उनमें तेजी से शारीरिक व मानसिक लक्षण उभरते हैं। इंसान बिछुओं का डंक बर्रदाश्त कर लेता है परंतु प्रत्याहार (विद्दड्रौवल) की यह पीङा उसके लिए असहनीय हो जाती है। नतीजतन रोगी बहुत सारे अमानवीय व्यवहार करने लगता है।
शारीरिक लक्षण
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नशे से पीड़ित लोगों को जब मादक पदार्थों से दूरी बन जाती है तो उनमें अपच,मांसपेशियों में खिंचाव, भूख नही लगना,चक्कर,दिल की ध़ङकन अनियंत्रित होने की शिकायतें देखने को मिलती है। बहुत सारे मामले में मैंने देखा हैं की रोगी के पुरे शरीर में खुजली और फुन्सी होने लगते है। नशे का रोगी घंटो मल-मूत्र के त्याग के लिए बैठा रह जाता हैं लेकिन वह शौच से निवृत नही हो पाता।
अक्रामक रूख।
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कोई भी नशा लेनेवाला चाहे वह कितने दिनों, महीने और सालों से नशा क्यो न ले रहा हो। नशा न मिलने के एवज में उसमें प्रत्यहार के मानसिक लक्षण उभरते ही है। कुछ लोगो में यह सिम्पटम जल्दी आ जाते हैं तो कुछ में समय लगता है। रोगी इसमें अक्रामक हो सकता हैं या वह निरुत्साहित होकर घुटने टेक सकता है। दोनो ही स्थितियों में वह खुद को और परिवार को धोखा देने में कामयाब हो सकता है। मनोवैज्ञानिक लक्षणों में चिङचिङापन,किसी भी काम में मन नही लगना,किसी काम को करते हुए तुरंत थक जाना देखा जा सकता है। ऐसे लोग नशे की खोज में सभी नियमों की धज्जियां उङा देते हैं। इनको घर में रखना मुश्किल होता है। बंदी के हालात में झूठे बहाने बनाकर नशे की खोज में निकल जाते हैं।अबतक देखा गया हैं की इस तरह के लक्षण से जूझ रहा व्यक्ति अपराध करने से भी गुरेज नही करता।
संभलने की क्यों हैं जरूरत ।
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अगर आप और आपके परिवार का कोई सदस्य किसी न किसी नशे से पीड़ित हैं तो आपको यह चैक करना होगा की क्या वह खुद के लिए या परिवार के लिए किसी तरह का परेशानी का सबब तो नही पैदा कर रहा हैं।उसके व्यवहार से पङोसीयों,कानून या सार्वजनिक नियमों की अवहेलना तो नही हो रही।सबसे जरूरी मसला इनसब के बावजूद कहीं नशा लेनेवाले के करियर ग्राफ में गिरावट तो नहीं देखी जा रही। 
संभव हैं समाधान।
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किसी भी नशे से उबङना अब मुमकिन हो गया है। नशा पीङीत के आर्टीफिसीयल इच्छा शक्ति से यह संभव नहीं बल्कि उनके मजबूत इरादे उन्हें जरूर मदद कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक चिकित्सा इसके लिए वरदान साबित होती है। कुछ मामले में रक्तशोधन किया जाता है। जो लोग नशा पीङीत है उनके उपचार में चार पीलर काम करते हैं पहला आपका काउंसलर दुसरा परिवार तीसरा समय पर दी जाने वाली दवाएं और चौथा अहम खंभा नशा पीड़ित खुद होता है। जब चारो में उचित तालमेल होगा तो नशा पीड़ित जल्दी स्वास्थ्य लाभ करता हैं।जो लोग नशा लेते हैं उनके परिवार के लोगों को यह याद रखना चाहिए की नशे से नफरत पालिए इसे लेने वाले इसके रोगियों से नहीं।इनको प्रेरित कर ही इस समस्या से छुटकारा दिलाना संभव हो सकता है।। (लेखक डॉ॰ मनोज कुमार क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक(मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ) हैं। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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