अनूप नारायण सिंह
मिथिला हिन्दी न्यूज :-शताब्दी वर्ष का सफ़र पुलिस एसोंसीएशन के अतीत, वर्तमान के साथ भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।मानव सभ्यता के इतिहास को दर्पण के रूप में देखगे है तो दृष्टिगोचर होगा कि मानव जाती में अपने अतीत को जानने एवं समझने की जिज्ञासा होती है।भारत ग़ुलामी के ज़ंजीरो में जकड़ा ब्रिटिश हुकूमत द्वारा अत्याचार बर्बरता को झेल रहा था।उस वक़्त देश में कनिय पुलिसकर्मियों में अधिकतर भारतीय थे जिनकी आर्थिक स्थिति काफ़ी ख़राब थी। उनके मूलभूत समस्या की अनदेखी हो रही थी। कुछ पुलिसकर्मी भारत के आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने लगे जिससे आज़ादी के आंदोलन को एक नई ऊर्जा मिली।इसकी जानकारी जब इंग्लैंड की सरकार को मिली तो चिंतित होकर बोली की पुलिसकर्मी एक संगठन बनाकर अपनी समस्या को रखे।विश्व के मंच पर जब पुलिस के इतिहास का पन्ने पलट्टे है तो भारत की धरती पर अनुशासन के इस विभाग में 20 मई 1920 कोलकाता के हावड़ा मैदान में देशभर से जुटे पुलिसकर्मियों द्वारा पुलिस एसोसिएशन की निव रखकर स्थापना की गई।प्रारम्भिक दौर में पुलिस के सभी पंक्ति के लिए पुलिसकर्मीयो के समस्या समाधान एवं कल्याणकारी कार्यों के लिए ए संगठन बना था।15 जनवरी 1921 को बिहार तथा उड़ीसा प्रान्त के कनीय पुलिस पदाधिकारियों की एक सभा पटना में आयोजित की गई।26 मई 1921 को पूरे भारत वर्ष के पुलिसकर्मियों की एक विशेष सभा का आयोजन किया गया।उस सभा में ब्रिटिश इंडिया पुलिस एसोसिएशन के गठन का संकल्प प्रस्ताव लिया गया।भारत के मद्रास प्रान्त को छोड़ कर सभी प्रान्त के प्रतिनिधि भाग लिए।सभा में यू पी पुलिस एसोंसीएशन के तत्कालीन अध्यक्ष अभियोजन निरीक्षक लाल सरयू प्रसाद को उस विशेष सत्र का अध्यक्ष चुना गया।बिहार तथा उड़ीसा पुलिस एसोंसीएशन के आरक्षी निरीक्षक आर गाडफ़े उस सत्र के उपाध्यक्ष चुने गए।महामंत्री और कोषाध्यक्ष पद मध्य भारत के पुलिस सदस्यों को दिया गया।वर्ष 1924 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा औपचारिक तौर पर पुलिस एसोंसीएशन की मान्यता प्रदान की गई । 1936 में उड़ीसा को अलग राज्य का दर्जा मिलने के बाद बिहार पुलिस एसोंसीएशन अस्तित्व में आया।समय के साथ एसोसिएशन के पद्धारक अपने सदस्यों के लिए कल्याणकारी कार्य करते रहे है। तेरह माह का वेतन , मकान भाता,वाहन, वर्दी भाता की बढ़ोतरी सहित अनेको उपलब्धि एसोंसीएशन के नाम है। एसोसिएशन के प्रति सदस्यों की निष्ठा संघ की मूल शक्ति है।आज भी पुलिस एसोसिएशन अपने सदस्य पूर्वजों जो समय के साथ पुलिस एसोंसीएशन को सींचते और मज़बूत बनाते रहे उन्हें ह्रदय से नमन और आभार व्यक्त करता है। साथ ही आज के वर्तमान वक़्त में पूरी देश के सभी राज्यों में पुलिस संगठन की माँग करता हु।पुलिस एसोंसीएशन में समय के साथ पदधारक की संख्या बढ़ती गई।वर्तमान में अध्यक्ष,महामंत्री के अलावा दो उपाध्यक्ष,दो संयुक्त सचिव, एक कोषाध्यक्ष का पद है।ज़िला इकाई में पाँच पद होता है।तीन वर्ष पर पारदर्शी रूप से चुनाव मंडल का गठन करके मतदान होता है।इस बार चार वर्ष के कार्यकाल का प्रस्ताव आमसभा से पास हूवा है।5 फ़रवरी 2011 से मैं ( मृत्युंजय कु सिंह) चुनाव में विजय होकर प्रदेश अध्यक्ष हु।
त्याग, बलिदान,संघर्ष , वीरता,योग्यता, कर्मठता, क़ानून की रक्षा, जनता की सुरक्षा,कर्तव्य धर्म के साथ धैर्य एवं सहनशीलता का कीर्तिमान रचयिता केवल कर्मयोगी पुलिसकर्मी है।आज के तारीख़ में पुलिसकर्मी पथर,गोली और गाली खाकर भी अपने कर्तव्य धर्म के पथ पर गतिमान है।इतनी सारी विशेषताए, गुण किसी दूसरे सरकारी विभाग के कर्मी में विद्यमान नही हो सकता है।पुलिस का औचित्य सरकार, न्यायालय और समाज के बीच समन्वय बनाकर सत्य निष्ठा के साथ कर्तव्य धर्म का पालम करना है। ए पुलिस की मूल कर्तव्य शैली है।आज देश में कुछ घटनाए होते ही पुलिस पर मीडिया हो या आम प्रबुद्ध लोग आवाज़ उठाने लगते है और पुलिस को कटघरे में खड़े कर देते है। घटनाएँ रोकना पुलिस का कर्तव्य है। परन्तु आवाज़ उठाने वाले का भी तो एक जवाबदेह भारतीय होने के नाते कुछ सूचना - सपोट पुलिस को करना चाहिए।घटना के उद्भभेदन होने पर पुलिस की पीठ ठपठपनाने की संख्याए कम दिखती है।हर घटना को रोकना लोग पुलिस का कार्य समझते है।हम भी कार्य मानते है। परन्तु बहादुरी के साथ जान को जोखिम में डाल कर कार्य करने वाले पुलिस का सम्मान तो होना चाहिए। देश में कभी - कभी दिखता भी है । परन्तु ए सचाई है की वीरता के साथ कार्य करते शहीद पुलिस वाले का परिवार पुलिस विभाग हो या समाज हो क़द्र प्रतिष्ठा की कमी और परेशानी महसूस करता है ।
ए सत्य है की पुलिस न्याय के लिए नहीं एक्शन के लिए है।एवं साक्ष्य इकट्ठा कर न्यायालय को सौंपने के लिए है।न्याय सुनिश्चित करना न्यायलय का काम है।हमारे बहुत सारे मित्र पुलिस उपाधिक्षक या थानाध्यक्ष होंगे या रहे होंगे इससे अवगत है। पुलिस की त्वरित करवाई अपराधियों में खौफ पैदा करता है।घटनायें रोकने में तथा साक्ष्य नष्ट होने से बचाने में मदद भी करता है।साथ ही साथ पीड़ित और जनता में विश्वाश को मज़बूती प्रदान करता है।आमजन को मालूम होना चाहिए कि पुलिस भगवान नहीं कि सभी घटनाओं को रोक ले, पर दमदार पुलिसिया करवाई अपराधीयो के ऊपर मजबूत छाप छोड़ता है जिसका प्रभाव अन्य अपराधियों पर पड़ता है। न्याय तो अंतिम पायदान है जो एक प्रक्रिया से गुजर कर ही पीड़ित को निश्चित एवं निर्णय से रूबरू करता है।परन्तु एक्शन प्रथम और सबसे दमदार क्रिया है।अब पुलिस का एक्शन सिर्फ फिल्मों में देखने को मिल रहा है।रील लाइफ में, रियल लाइफ में नहीं। इसके पीछे कारण क्या है ? समझना और सुधार करना ज़रूरी है।प्रश्न भी मुँह बाएँ खड़ा है की इसमें सुधार करेगा कौन पुलिस मुख्यालय या सरकार या दोनो ..? । पुलिस के निचले पंक्ति को मज़बूती के साथ कार्य करने का फ़्रीडम देना होगा।कुछ छोटी - मोटी ग़लती भूल को इग्नोर करना होगा। ए सचाई है की जो कार्य करेगा उसी से ग़लती होती है।परन्तु आज के तारीख़ में ग़लती छोटी भी हो तो वरीय अधिकारी अपने से कनिय पुलिस को सज़ा देने में अपनी शान समझते है।अतीत के वर्षों में ए बात नही थी।पुलिस के सुस्त होने का कारण चाहे जो भी हो दूर तो करना ही होगा।जिले में नीचे के पंक्ति के पदाधिकारियों में पुलिस अधीक्षक को एक बेहतर परिवार के अभिभावक का चेहरा दिखना चाहिए।साथ ही साथ किसी घटना या कर्तव्य के मुद्दे पर अंतिम परिणाम तक साथ देना होगा।कोई घटना हुई या हंगामा हूवा ,फिर दबाव बना तो तुरंत पुलिस अधीक्षक नीचे के पंक्ति के पुलिसकर्मी का साथ छोड़ कर करवाई कर देते है और बोलते है की हंगामा शांत होने पर सब ठीक कर देंगे इस धारा को बदलना होगा।यदि पुलिस वाला कर्तव्य पर सत्य के साथ या क़रीब है तो उसके साथ खड़ा होना पड़ेगा। पुलिस मुख्यालय हो या सरकार हो या मीडिया हो सत्य से हर परिस्थिति में खड़ा रहना होगा । यदि सपोट नहीं मिलेगा तो कुछ कार्य अभाव कनिय पुलिस में दिखेगा। वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर कुछ उस तरह के कार्यों से कनिय पुलिसकर्मी हिचकेगे।आज के तारीख़ में बिहार हो या देश के हर कोने में हज़ारों - हज़ार पुलिस वाले बिना ग़लती के भी वरीय पुलिस अधिकारीयों के अहम के चलते सज़ा के साथ गुनहगार हो जाते है।बहुत सारे बहादुर , कर्मठ कनिय पुलिस अधिकारी सरकार या पुलिस मुख्यालय के ग़लत आदेश पर दंड भोगते रहते है।वैसे आदेशों की धरातल पर उतरकर समीक्षा उपरांत बदलाव की ज़रूरत है ।इससे क़ानून और जनता के हित में पुलिसिंग बेहतर होगा। राजनेता की लोकप्रिय कितनी क्यों न हो ...जो जनता उनको चुनती है उसी जनता के बीच बिना पुलिस के नही घूम - फिर सकते है।वे भी पुलिस की पीड़ा या समस्या से अवगत होकर कभी भी पुलिस की मूलभूत समस्यायो में सुधार, समाधान, बदलाव के लिए सदन में प्रश्न उठाकर निदान नही करते।उनको भी आगे आने की ज़रूरत है।लोकतंत्र की मज़बूती , क़ानून की रक्षा और जनता की सुरक्षा के साथ एक विकसित गाँव, राज्य और देश के लिए आधुनिक रूप से सुसज्जित पुलिस की ज़रूरत है।कानून को इतना सख्त बनाओ की कोई तोड़ने की सोच न सके।यदि तोड़े तो सज़ा के बाद कभी सोचे नही।विकसित देश में न कोई रेडलाइट तोड़ता है न कोई गलत जगह गाड़ी पार्क करता है। घर कई- कई किलोमीटर तक नही होता फिर भी कोई किसी के घर में घुसकर लुटता नही है।कहीं पुलिस दिखाई नही देती फिर भी कानून का राज है।जानते है क्यों! क्योंकि वहाँ कोई कानून नही तोड़ता और यदि कानून तोड़ता भी है तो किसी कीमत पर बच नही सकता।और हमारे यहा हर पीड़ित हो या गुनाहगार हो पैरबी - जुगाड़ में लग जाता है।आज के तारीख़ में बिहार पुलिस एसोसिएशन हर पीड़ित परेशान पुलिस कर्मियो की आवाज़ है। काफ़ी सदस्यों को पुलिस एसोंसीएशन से लाभ प्राप्त होते रहता है।हर जिला , इकाई में एसोसिएशन के पद्धारक अपने सदस्यों की समस्या समाधान के लिए प्रयासरत रहते है।पुलिस एसोंसीएशन में सदस्य और पद्धारक एक दूसरे के कवच और शस्त्र है।आज भी बिहार पुलिस एसोंसीएशन का केंद्रीय कार्यालय 2 मेंगलस रोड ( शहीद सप्तमूर्ति सचिवालय मुख्य द्वार) में अतीत के यादों वर्तमान की चुनौती और भविष्य की योजनावो के साथ हिमालय की तरह आस्था विश्वास के एक भवन के रूप में विराजमान है।आए हम सभी ऊपर लिखे बातें को पढ़ कर अपनी सोच बदले और बेहतर पुलिस - पुलिसिंग का सकारात्मक सहयोगी बने ।