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सियासी ड्रामा बिहार में शुरु आखिर मिथिलांचल की बेटी ज्योति पर दावा किसका

अनूप नारायण सिंह 
मिथिला हिन्दी न्यूज :- कल दिनभर बिहार के सियासी ड्रामे के केंद्र में दरभंगा की साहसी ज्योति रही जो सुबह में भाजपा  की थी दोपहर होते-होते पर लोजपा की हो गई और देर शाम राजद ने भी इस पर अपना दावा ठोक दिया जदयू भी कहां पीछे रहने वाला था. वैसे गुड़गांव से दरभंगा तक साइकिल पर अपने लाचार पिता को लेकर लौटने वाली यह ज्योति आज मुद्दा नहीं होती अगर मीडिया की नजर उस पर नहीं पड़ी होती सबसे पहले मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव के तरफ से ज्योति को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई उसके बाद भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने आगे बढ़कर बिहार की इस बेटी को मदद किया इसी बीच उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ₹1लाख देने की घोषणा की. अमेरिकी राष्ट्रपति के पुत्री ने शनिवार को अपने ट्विटर पर बिहार की इस साहसी बेटी की गाथा को शेयर किया था उसके बाद पूरी दुनिया में ज्योति की चर्चा होने लगी.तब मदद के लिए कई सारे लोग सामने आने लगे. बिहार सरकार के एक मंत्री ने ज्योति के पढ़ाई का खर्चा उठाने की घोषणा की है। दोपहर में ज्योति ज्योति पासवान हो गई जब रामविलास पासवान ने इसकी कहानी को साझा किया. देर शाम बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के तरफ से एक वीडियो जारी किया गया जिसमें वह और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ज्योति से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बातचीत कर रहे थे तथा उसे हर संभव सहायता देने का वादा भी कर रहे थे. ज्योति के घर में छत नहीं और ना ही घर में बुनियादी सुविधाएं घर का एकमात्र कमासुत पिता लाचार है जिसे वह एक लंबा सफर तय कर साइकिल से लेकर वापस दरभंगा लौटी है. फिलहाल ज्योति जहां देश दुनिया के लिए साहस की जीती जागती मिसाल बनी है वहीं बिहार के लिए अब सियासी मुद्दा बन गई विपक्षी दल ज्योति के बहाने सत्तापक्ष को घेरने की तैयारी में है तो  सत्ता पक्ष ज्योति के रिसते जख्मों पर पहले ही मरहम लगाकर लोगों की सहानुभूति बटोरने की जुगत में है।पर ना सत्ता पक्ष और ना ही विपक्ष को उन हजारों लाखों बिहार की ज्योतियों का दर्द नजर आ रहा है जो हजारों किलोमीटर से गोद में बच्चे और माथे पर अपना आशियाना समेटे  हताश निराश अंजाम से बेखबर बिहार के तरफ वापस लौट रहे हैं. इतना तो तय है कि इस चुनावी साल में बिहार में करोना  काल में बदहाली का दर्द लिए वापस लौटने वाली बिहारी कमासुत ही सबसे बड़ा सियासी मुद्दा बनने जा रहे हैं. विपक्ष इसका पूरा दोष जहां सत्ता पक्ष पर उछाल रहा है वहीं सत्तापक्ष इस लाइलाज बीमारी के लिए बरसो तक बिहार पर राज किए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही है लाचार तो बिहार की जनता है. जिसे बिहार के सियासी लोगों ने पहले ही जात पात के ऐसे मकड़जाल में उलझा रखा है जिससे वे चाह कर भी बाहर नहीं निकल सकती। 

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