कोरोना वायरस (COVID-19) एक ऐसी बीमारी है, जो संक्रमण से फैलती है
डॉक्टरों का कहना है कि संक्रमित व्यक्ति जिस चीज को छू देता है तो परेशानी बढ़ सकती है
यह एक प्राकृतिक आपदा है। आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का प्रभाव है। मानव ने प्रकृति के साथ काफी छेड़छाड़ किया है, जिसका परिणाम मानव को ही भुगतना पड़ता है।
पटना, बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज कार्यालय 11 मई, 20 )। कोरोना वायरस (COVID-19) एक ऐसी बीमारी है, जो संक्रमण से फैलती है। इस बीमारी के जो लक्षण बताए गये हैं— खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ, जो लगभग लोग जानते ही हैं। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में कोई भी आता है तो उसे भी यह बीमारी हो जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि संक्रमित व्यक्ति जिस चीज को छू देता है तो परेशानी बढ़ सकती है। बार-बार बताया जा रहा है कि इससे बचने के लिए और समाज को बचाने के लिए बार-बार हाथ धोएं, अपने चेहरे को छूने से बचाने का प्रयास करें, दूसरे व्यक्ति से 3 फीट की दूरी बनाये रखें।
यह एक प्राकृतिक आपदा है। आपदा एक प्राकृतिक या मानव निर्मित जोखिम का प्रभाव है। मानव ने प्रकृति के साथ काफी छेड़छाड़ किया है, जिसका परिणाम मानव को ही भुगतना पड़ता है। मानव ने पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। 'आपदा' शब्द ज्योतिष शास्त्र से आया है, जिसका अर्थ है जब तारे बुरी स्थिति में होते हैं तब कोई न कोई बुरी घटनाएँ घटती हैं। जब प्रकृति अपना विकराल रूप में आ जाती है तो पूरे विश्व को भारी मूल्य चुकाने पड़ते हैं। कभी-कभी यह आपदा देश तक ही सीमित रह जाती है और जब प्रकृति काफी भयानक रूप ले लेती है, तो पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लेती है। आज 2020 में कोरोना ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है।
एक चीज बड़ी हैरान कराने वाली है कि 400 वर्ष के इतिहास को देखा जाए तो प्रत्येक 100 वर्ष में कोई न कोई महामारी आयी है, जिसकी चपेट में पूरा विश्व आ गया है। 1720 में दुनिया में एक महामारी आयी थी—The great plague of Marseille से पूरी दुनिया में लगभग 1 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसका असर 2 वर्ष तक रहा था। इसकी शुरूआत फ्रांस के शहर Marseille से हुई थी। इस प्लेग से भारत भी अच्छी तरह परिचित है। धीरे-धीरे पूरे यूरोप को भी अपनी चपेट में ले लिया। इसके पूर्व भी 1347 तक चार वर्षों तक प्लेग का प्रकोप था। पूरी दुनिया में चार वर्षों मेें 3 करोड़ लोग मर गये थे। यह इतनी तेजी में फैला था कि जबतक लोग समझते तबतक मौत हो जाती थी। प्लेग चूहों से फैला था। 19वीं शताब्दी में प्लेग पुनः पलटवार किया था। 1820 मं एशियाई देशों में हैजा फैला जिसमें 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। हैजा ने और भी तबाही मचायी थी। जापान, भारत, अरब, बैंकाक, मनीला, जाबा मॉरिशस आदि देशों में जबरदस्त हैजा फैला था। सिर्फ जावा में 1 लाख लोगों की जान गयी थी। इसके बाद थाइलैंड, इंडोनेशिया में ज्यादा मौतें हुई थी। फिर 100 वर्ष बाद 1918-20 के बीच स्पेनशि फ्लू (Spanish flu) कहर मचाया, जिससे 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए, जिनमें लगभग 5 करोड़ लोगों की मौत हो गयी थी।
आज 2020 है, जिसमें 'कोरोना' पूरी दुनिया में कहर बरषा रही है। एक जानकारी के अनुसार इसकी शुरुआत दिसम्बर, 2019 के पहले सप्ताह से वुहान, चीन से होती है, जब वहाँ के कई लोग अचानक बुखार से पीड़ित हो जाते हैं। दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में वहाँ के डॉ० लीवेन लियांग (Liwen liang) को समझ में आ गया था कि यह जानलेवा वायरस है। उन्होंने कई डॉक्टरों और कई लोगों को भी इसकी जानकारी दी। जनवरी माह से यह वायरस खतरनाक रूप से फैलना शुरू हो गया, जिसे चीन ने छिपा लिया। आज चीन से निकलकर पूरी दुनिया तक फैल गयी है। लीवेन लियांग केवल लोगों को आगाह ही नहीं कर रहे थे, बल्कि आइसोलेशन वार्ड में रखकर इलाज भी कर रहे थे। अंत में चीन को भी मानना पड़ा। पहली बार जानकारी देने वाले लीवेन लियांग की मौत भी हो गयी। आश्चर्य की बात यह है कि विनाश के लिए प्रकृति '20' अंक को ही क्यों चुनती है?
1978 में लिखी गयी पुस्तक, "An essay on the principles of population" में माल्थस ने लिखा है कि यदि मानव स्वयं अपने विवेक से जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया तो बीमारी, महामारी, युद्ध जैसी प्राकृतिक आपदाओं से अधिक जनसंख्या नष्ट हो जायेगी। एक बार पुनः यह बात सत्य प्रतीत होता हुआ दिख रहा है।
विश्व के सक्षम देशों ने अर्थव्यवस्था पर विशेष ध्यान देने का प्रयास किया, लोगों की जान की परवाह नहीं की। वहाँ समय से लॉकडाऊन नहीं की गयी जिस कारण हजारों लोगों की मौत हो गयी और अभी थमने का नाम भी नहीं ले रहा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी बहुत समय से जीविका की अपेक्षा जीवन का महत्व देते हुए लॉकडाऊन कर दिया। यदि ऐसा नहीं होता तो शायद अन्य विकसित देशों की तरह यहाँ लाखों लोगों की मौत हो जाती, क्योंकि चीन के बाद जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा देश है। तभी तो आज पूरे विश्व में मोदी जी के उस कदम की सराहना की जा रही है।
कोरोना से अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हो रही है और क्यों न हो सुस्ती (Recession) तो आ ही चुकी है। मंदी का यह दस्तक है, जो वर्तमान परिस्थिति में स्वाभाविक दिख रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार को दोषी ठहराना सवर्था गलत है। हो सकता है कि हमारी अर्थव्यवस्था नीचे जाये और नीचे जाकर स्थिर हो जाये तो अर्थव्यवस्था 'L' आकार की हो सकती है। ऐसा क्यों न हो? हमारी सरकार का पहला उद्देश्य है जीवन को बचाना। यदि जीवन बच गया तो जीविका भी कहीं न कहीं सुरक्षित है। सारे उघोग, व्यवसाय ठप पड़ गये हैं। यदि जीवन बच गया तो अर्थव्यवस्था पर फिर एक बार जोर दिया जायेगा और अर्थव्यवस्था उन्नत हो जायेगी तो वह 'U' आकार की बन जाएगी। सरकार के लिए भी यहाँ बड़ी चुनौती है कि जीवन की रक्षा करते हुए जीविका की भी रक्षा की जाए। प्रभाव पर ज्यादा ध्यान न दिया जाये नहीं तो नकारात्मकता आ जाएगी। चूँकि प्रभाव हर क्षेत्र में दिख रहे हैं, बस आवश्यकता है जीवन और जीविका दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की। सामाजिक वर्ग को हम तीन भागों में बांट सकते हैं—(i) निम्न आय वाले जिसे गरीब वर्ग की श्रेणी में रख सकते हैं। (ii) मध्यम आय वाले और (iii) उच्च आय वाले वर्ग। गरीब वर्ग को तो सरकार मदद कर ही रही है और करना भी चाहिए। उच्च आय वाले भी परेशान हैं, किन्तु जिन्दगी को चलाने के लिए नहीं बल्कि आगे विकास के लिए जिनपर बहुत सारे लोग निर्भर हैं, मध्यम वर्ग तो कहीं का नहीं है न तो उन्हें सरकार द्वारा मदद मिलती है न ही खुद सक्षम है और न ही दूसरों के समक्ष अपनी व्यथा बता सकते हैं। वे तो खुद संघर्ष करते दिखते हैं। 5 लाख तक की आय वाले भी रिटर्न फाइल अवश्य भरते हैं, किन्तु आय निश्चित नहीं है। बहुत ऐसे लोग हैं, जो सरकार की नजर में रिटर्न फाइल करने वाले हैं वर्तमान में उनकी आय लगभग समाप्त हो चुकी है। उनकी परेशानी को कौन देख रहा है?
अभी हमें क्या करना चाहिए ? हमारे देश में एक ओर जिन्दगी को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। दूसरी ओर कोरोना के प्रभाव से गिरनेवाली अर्थव्यवस्था के कारण कई जिन्दगियाँ और भी संकट में न पड़ जाये इसके लिए भी सरकार, रिजर्व बैंक के साथ-साथ बड़े-बड़े पूंजीपतियों को भी प्रयास करना चाहिए। सम्मिलित सहयोग के द्वारा कई प्रयास किये जाने चाहिए—
प्रथम, वर्तमान परिस्थिति में लोगों की क्रयशक्ति काफी कम होती जा रही है। अतः यदि रुपये की कमी हो तो नये नोटों का भी निर्गमण किया जाना चाहिए। द्वितीय, गरीब वर्ग के हाथों में बिना चिंता किए DBT के माध्यम से पैसे बाँटना चाहिए। सरकार ऐसा कर भी रही है। इस दिशा में मध्यम वर्ग के लिए भी कुछ सोचना चाहिए क्योंकि वह अपनी विवशता किसी को कह भी नहीं सकता। तृतीय, छोटे और मध्यम उघोगों को भी न्यूनतम ब्याज दर पर लोन देना चाहिए और स्थिति ठीक हो जाये तो EMI के माध्यम से वापस लेना चाहिए। कितने बड़े लोग तो लोन लेकर भाग गये, किन्तु छोटे और मध्यम उद्योग वाले ऋणी पैसा लेकर भागेंगे नहीं। चौथा, कृषि और सेवा क्षेत्र विकास दर को अवश्य बढ़ायेंगे। कृषकों को खेती करने के लिए अभी बिना ब्याज का लोन देना चाहिए, ताकि कृषि अर्थव्यवस्था को ठीक रखा जा सके। इसे सामाजिक दूरी बनाये रखने के नियम का पालन भी आसानी से हो जायेगा।। पांचवाँ, छोटे-छोटे व्यापारियों को व्यवसाय चलाने, उद्योग चलाने के लिए बिजली बिल चार्ज में छूट दी जानी चाहिए ताकि उनका मनोबल बढ़ सके और उत्पादन भी हो सके। छट्ठा, शराब बनाने वाली कंपनियों को अभी सेनेटाइजर बनाने का आदेश दिया जाए, ताकि वर्तमान जरूरत को भी पूरा किया जा सके। सातवां, किसान, मजदूर को रोजगार बढ़ाने के लिए निवेश बढ़ाने पर बल दिया जाए। आठवां, अभी बैंकों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, Repo Rate, Reverse Repo Rate, CRR आदि में कमी की जानी चाहिए ताकि बाजार में Liquidity (तरलता) बनी रहे। RBI ने भी ऐसा ऐलान किया है, जिससे अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी। नौवां, सड़क नहर, पुल जैसे निर्माण कार्य में निवेश करने से मजदूरों को क्रयशक्ति बढ़ेगी। इन सब बातों पर बल देने से सामाजिक दूरी का नियम का पालन करते हुए बाजार में तरलता बनी रहेगी, ताकि अर्थव्यवस्था रूपी बाजार का चक्का घुमता रहे। अभी प्रत्येक नेता, प्रत्येक जनता को सरकार द्वारा उठाये गये कदम में सहायता करनी चाहिए, तभी हम जीवन और जीविका के बीच संतुलन बनाये रख सकते हैं। समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अनूप नारायण सिंह की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma