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विश्व स्वतंत्र पत्रकारिता दिवस विशेष:-आमजन भी पत्रकार की तरह ही सोचें तो फिर पत्रकार क्या सोचेगा.!


अजय कुमार का आलेख

आज विश्व स्वतंत्र पत्रकारिता दिवस के दिन इस बात को याद दिलाना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि पत्रकारिता का मतलब समाज व जन की समस्याओं को उजागर करना है और उस समस्या के समाधान के बाद फिर उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को आगाह करना होता है

उदाहरण के तौर पर ‛लॉकडाउन के बाद अप्रवासी मजदूरों की समस्या उठाना और उन्हें घर ना पहुंचाना’ इस सम्बंध में सरकार से प्रश्न करना जरूरी था लेकिन जब मजदूर को उनके राज्य तक पहुंचाया जा रहा है तो प्रश्न उठाना आवश्यक हो जाता है कि लॉकडाउन के दौरान कल-कारखानों को खोला जा रहा है उनके लिए मजदूर कैसे उपलब्ध होंगे. ?

भारत में पत्रकारिता का क्रांतिकारी उदय हुआ जब हेस्टिंग्स के दमनकारी नीति और अय्यासी क विरोध में सर जेम्स अगस्टस हिक्की ने 1780 में बंगाल गजट का प्रकाशन शुरू किया गया

शुरुआत तो बाजारभाव बताने से हुई लेकिन आयरिश हिक्की ने इस समाचार पत्र के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा निजी व्यापार चलाने तथा गवर्नर हेस्टिंग्स और उसकी पत्नी व तत्कलीन न्यायाधीश इम्पी के अय्याशियों को उजागर करने लगें

 स्वाभाविक था, बंगाल गजट बन्द हुआ और अंग्रेज अधिकारी हिक्की को पहले जेल, बाद में इंग्लैंड भेज दिया गया

भारत का पत्रकार सच लिखने के कारण मार दिया गया।

पटना/बेगूसराय,बिहार ( मिथिला हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 03 मई,20 )।भारत में पत्रकारिता का क्रांतिकारी उदय हुआ जब हेस्टिंग्स के दमनकारी नीति और अय्यासी क विरोध में सर जेम्स अगस्टस हिक्की ने 1780 में बंगाल गजट का प्रकाशन शुरू किया। शुरुआत तो बाजारभाव बताने से हुई लेकिन आयरिश हिक्की ने इस समाचार पत्र के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा निजी व्यापार चलाने तथा गवर्नर हेस्टिंग्स और उसकी पत्नी व तत्कलीन न्यायाधीश इम्पी के अय्याशियों को उजागर करने लगें। स्वाभाविक था, बंगाल गजट बन्द हुआ और अंग्रेज अधिकारी हिक्की को पहले जेल, बाद में इंग्लैंड भेज दिया गया। कुछ लोग कहते हैं कि इंग्लैंड ले जाने के क्रम में उसे समंदर में मारकर फेंक दिया जिससे हेस्टिंग्स के कारनामें महारानी तक ना पहुंचें यानी भारत का पत्रकार सच लिखने के कारण मार दिया गया।
    आज विश्व स्वतंत्र पत्रकारिता दिवस के दिन इस बात को याद दिलाना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि पत्रकारिता का मतलब समाज व जन की समस्याओं को उजागर करना है और उस समस्या के समाधान के बाद फिर उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को आगाह करना होता है। उदाहरण के तौर पर ‛लॉकडाउन के बाद अप्रवासी मजदूरों की समस्या उठाना और उन्हें घर ना पहुंचाना’ इस सम्बंध में सरकार से प्रश्न करना जरूरी था लेकिन जब मजदूर को उनके राज्य तक पहुंचाया जा रहा है तो प्रश्न उठाना आवश्यक हो जाता है कि लॉकडाउन के दौरान कल-कारखानों को खोला जा रहा है उनके लिए मजदूर कैसे उपलब्ध होंगे. ? ऐसे प्रश्न आज के दौर में इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि आमजन को यह लगता है कि मीडिया ने जो समस्या उठाया उसपर सरकार ने तो काम कर दिया फिर काम के बाद भी पत्रकार प्रश्न क्यों कर रहा है ? 
         आमजन साधारण पाठक , दर्शक अथवा श्रोता है वह भी पत्रकार की तरह ही सोचें तो फिर पत्रकार क्या सोचेगा.. ? 
खैर, आवाज उठाने का परिणाम हिक्की को तो मिला ही लेकिन उसके बाद से विश्व के तमाम देशों की तरह भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर विमर्श चलता रहा है । 
अंग्रेजों ने दमनकारी वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम लाया लेकिन तिलक, लाला लाजपतराय, गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबू राव विष्णु पराड़कर, दादा माखनलाल चतुर्वेदी जैसे महापुरुषों ने पत्रकारिता को ना केवल एक उद्देश्य पूर्ति के लिए हथियार बनाया बल्कि लोगों को एहसास दिलाया कि आजाद होना क्यों जरूरी है! 
आजादी के बाद का भी पत्रकारिता की स्वतंत्रता को लेकर हमारे संविधान में अलग से कोई विवरण नहीं है, पत्रकारों के पास उतने ही अधिकार हैं जितने की एक आमलोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। शायद इसी का परिणाम है जिससे या तो पत्रकार को सत्ता से आशिकी करनी पड़ती है अन्यथा ‛ठुकरा के मेरा प्यार, इंतकाम देखोगे’ झेलना पड़ता है।
स्वतंत्रता के पहले दो दशक को छोड़ दें तो पत्रकारिता सत्ता के अनुसार चलाने की कोशिश होने लगी। देश में जब-जब पूर्ण बहुमत की सरकार रही, प्रेस की स्वतंत्रता पर काले बादल घिरते गए।
    रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डर्स के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2018-19 में 180 देशों में भारत का स्थान 140 वां है जबकि 2018 में काम के दौरान कुल 6 पत्रकारों की मृत्यु हुई है। हालांकि देश में सशक्त सरकार है और भले ही मोदी सरकार पर प्रेस पर नियंत्रण का आरोप लगाते रहें हैं लेकिन सत्य यह भी है कि विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में प्रेस कहीं अधिक स्वतंत्र है। कई मीडिया प्रतिष्ठान लगातार सरकार की आलोचना करते रहें हैं।सीधे तौर पर देखें तो इसके बावजूद भी वह किसी तरह के दमन के शिकार नहीं हुए। 
   बाजारवाद और वैश्वीकरण के बाद ज्यादातर मीडिया प्रतिष्ठान बिजनेसमैन के हाथों में आ गए है जिससे पत्रकारिता में निवेश होने लगें हैं। अब यह सेवा क्षेत्र नहीं रहा है, यह पेशा है और पेशे में कमाई जरूरी है। अपनी संस्था को कमा कर नहीं देंगे तो वह हमें सैलरी कहाँ से देगी ? और कमाई के लिए सत्ता का आशीर्वाद आवश्यक है। लोकतंत्र के चौथे खम्भे को भी फंड की जरूरत होती साहब! फिर भी जनभावना का ख्याल रखने के प्रयास जारी रखा जाए.. विश्व स्वतंत्र पत्रकारिता दिवस मनाया जाए.! समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा अजय कुमार
स्वतंत्र पत्रकार की रिपोर्ट सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma

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