नई दिल्ली, भारत ( मिथिला हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 10 मई,20 )। आज कोविड -19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस विश्व के लगभग सभी देश इसकी चपेट में है कहीं ना कहीं मानव जीवन के अस्तित्व पर गहरा संकट है आज हम अपने देश की बात कर रहे हैं अपना देश भौगोलिक रूप से एक यह देश अपने आप में तीन भिन्न-भिन्न देशों से मिलकर बना है हां दोस्तों सोच रहे होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूं दोस्तों 'इंडिया'जो महानगरों की अट्टालिकाओ मे बसा करता है और अब तेजी से छोटे शहरों में भी दिखने लगा है दोस्तो 'इंडिया विकसित है'और इसी के बगल में भारत रहता है जो इंडिया की रोजमर्रा की जरूरतों की आपूर्ति करता है भारत के पास अक्सर अपना कहने के लिए ना जमीन होती है ना अपना छत वे झुग्गियों में रहते हैं और फिर हिंदुस्तान दोस्तों हिंदुस्तान को आप अपने गांव में रहने वाले लोगो से पहचान सकते हैं दोस्तों मैं कई बार टेलीविजन चैनलों पर परिचर्चा देखा और सुना जिनमें लोग कुछ यूं कहते पाए गए की "ठीक है इंडिया प्रगति कर रहा है और तेजी से करेगा भी पर भारत का क्या होगा और जो हिंदुस्तान सभी का पेट भरता है अन्नदाता उसका क्या होगा?"दोस्तों पिछले दिन मालगाड़ी से कुचल जाने के कारण 18 से अधिक प्रवासी मजदूरों की मौत यह वही मजदूर थे जो इंडिया को बनाने के लिए दिन रात एक किए एक सर्वे रिपोर्ट में बताया गया कि कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान सड़क हादसों में व भूख , खुदकुशी इलाज ना मिलने और डर से ना जाने कितनी मौत हुई जो सब गरीब मजदूर प्रवासी ही हैं इन प्रवासी मजदूरों के पास कोई काम नहीं रहा पैसे पर्याप्त नहीं रहे गांव घरों तक पहुंचने के साधन भी नहीं ऐसे में मजदूरों ने अपने घर को लौटना शुरू किया हजारों किलोमीटर पैदल ही चल दिए भूखे प्यासे सेवा लाइफ फाउंडेशन की सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों की माने तो इस लॉकडाउन के समय 42 प्रवासी से अधिक मजदूर सड़क हादसों के शिकार हुए हैं और पिछले दिनों लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन की बात करते हुए बेंगलुरु पुलिस दो लोगों को इस कदर पीटा कि जान चली गई गुड़गांव से उत्तर प्रदेश लौटे एक युवक ने कहा कि कोरोना टेस्ट नेगेटिव रहा लेकिन पुलिस ने इतना मारा बदसलूकी की उस युवक ने खुदकुशी ही कर ली दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के ही एक युवक ने फांसी लगा ली क्योंकि वह अपनी खराब आर्थिक हालात और परिवार के भविष्य की चिंता से ग्रस्त था दोस्तों"" यह प्रवासी मजदूर अचानक आसमान से नहीं टपके हैं शहरो के मुहाने निचली बस्तियों या झुग्गियों में हमेशा मौजूद रहे हैं अमीरों ने जान बुझकर दरकिनार और अदृश्य रखा है"जब संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी के लिए बराबरी की बात कही गई है देश के संसाधनों पर सभी का बराबर का अधिकार है तो फिर इतना भेदभाव क्यों? दोस्तों 90 फ़ीसदी देश के संपत्ति पर 10% लोगों के पास कब्जा है वहीं 10% संपत्ति 90% लोगों के पास है आप समझ सकते हैं कि कितना भेदभाव है जबकि देश की संपत्ति पर सबका बराबर का अधिकार है फिर क्यों इतना भेदभाव? दोस्तों -अमीर गरीब के बीच की खाई के मामले में भारत अमेरिका से काफी आगे हैं वहीं इस वैश्विक महामारी में जहां गांव में रहने वाले हमारे किसान ही इस गिरती अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाएंगे अन्नदाता ही सभी का पेट भरेंगे उनका भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है और उनके बच्चे दूसरे देशों में जाकर छोटे-मोटे काम धंधे करते हैं किसान और मजदूर किसी शहर में फंसा है उसके लिए जिस तरह की पहल करने की जरूरत है वैसा नहीं किया जा रहा है नहीं तो 18 प्रवासी मजदूर ट्रेन के चपेट में मारे नहीं जाते और अमीरों के बच्चों को विदेशों से जिस प्रकार लाया जा रहा है उसी तरह गरीब किसान मजदूर और प्रवासी लोगों को और उनके बच्चों को भी लाने की जरूरत है नहीं तो इंडिया भारत और हिंदुस्तान तीनों में भेदभाव आखिर कब तक होता रहेगा??
कवि विक्रम क्रांतिकारी(विक्रम चौरसिया-अंतरराष्ट्रीय चिंतक)
दिल्ली विश्वविद्यालय/आईएएस अध्येता
लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहे हैं व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं- लेख स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित । समस्तीपुर कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा द्वारा सम्प्रेषित । Published by Rajesh kumar verma