(मिथिला हिन्दी न्यूज) वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म को मानने वाली स्त्रियों के लिए बेहद खास है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है. यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं. सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं. इस दिन सावित्री (Savitri) और सत्यवान (Satyavan) की कथा सुनने का विधान है. मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी. वट सावित्री व्रत कब है
‘स्कंद' और ‘भविष्योत्तर' पुराण' के अनुसार वट सावित्री का व्रत हिन्दू कैलेंडर की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि पर करने का विधान है. वहीं, ‘निर्णयामृत' इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर की जाती है. उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही किया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह व्रत हर साल मई या जून महीने में आता है. पंडितों के अनुसार, इस वर्ष यह पर्व 22 मई दिन शुक्रवार को कृतिका नक्षत्र और शोभन योग में पड़ रहा है, जो ज्योतिषीय गणना के अनुसार उत्तम योग है। ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ 21 मई दिन गुरुवार को रात्रि 09 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है, जो 22 मई को रात्रि 11 बजकर 08 मिनट तक रहेगी।