पंकज झा शास्त्री
मिथिला हिन्दी न्यूज :- वंश वृद्धि काम का मुलभूत प्रायोजन है। जिसे ज्योतिष शास्त्र जन्मांग के सप्तम भाव सप्तमेश एवं शुक्र के माध्यम से अभिव्यक्त करता है।
संतान का कारक कुंडली का पंचम भाव, पंचमेश तथा चंद्र, शुक्र, सूर्य, गुरु एवं मंगल है। चंद्र और मंगल स्त्री के मासिक धर्म और अंड निर्माण के कारण बनते हैं तथा गुरु और चंद्रमा पुरूष के वीर्य और शुक्राणुओं के कारक है। स्त्री के अंड एवं पुरुष के शुक्राणु के सहयोग से गर्भ धारण होता है। अतः इनका बलवान एवं ऊर्जावान होना परमावश्यक है।
भारतीय ज्योतिष में ग्रहों और राशियों को भी स्त्री और पुरुष वर्गों में बांटा गया है। मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुंभ को पुरुष राशि और वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशियों को स्त्री राशि कहा गया है। इसी प्रकार चंद्रमा और शुक्र जहां स्त्री स्वभाव ग्रह है वहीं सूर्य, मंगल और गुरु पुरुष ग्रह हैं। स्त्री जातकों में स्त्री राशि और स्त्री ग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर स्त्रैण गुण अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होंगे। ऐसा देखा गया कि जिन मामलों में पुरुष जातकों की तुलना में स्त्री जातकों का विश्लेषण किया जाता है, उनमें स्त्री जातकों के लिए अलग नियम दिए गए हैं। शेष योगायोगों के मामले में स्त्री और पुरुष जातकों को कमोबेश एक ही प्रकार से फलादेश दिए जाते हैं।