मिथिला हिन्दी न्यूज :-प्राचीन काल मे पति पत्नी के मिलन या रति क्रिया के सन्तान उत्पति लिए ऊद्द्श्य होता था परंतु आज बहुत बदलाव हो चुका है और विवाह से पहले संबंध बनाने पर विशेष बल युवा वर्ग मे देखा जा रहा है जिसे हमारे भरतीय सभ्य समाज को कभी भी स्वीकार नही कर सकती ।हमारे सभ्य समाज विवाह से पहले संबंध को अनैतिक मानती है ।आज हम अपने सभ्य समाज को खोते जा रहे है जिसका मुख्य कारण पश्च्मि संसकृति ने हमारे देश और समाज पर हावी होकर अपना जगह बना लिया है ।जो आनेबाले भविष्य के लिये अच्छी संकेत नही है । शास्त्रों के अनुसार विवाह से पहले सरिरिक संबंध गलत तो है ही साथ ही विवाह के बाद भी इन संबंध पर विशेष समय निर्धारित किया गया है ।विष्णुपुराण में कुछ दिन और कुछ प्रहर बताए गए हैं जो रतिक्रिया के लिए उचित नहीं है। संतान का निर्धारण भी रतिक्रिया के समय पर निर्भर करता है। ऐसे में पति-पत्नी के लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि यौन संबंध बनाने का सही वक्त क्या होना चाहिए।
धर्मशास्त्रों में रात्रि के प्रथम प्रहर को रतिक्रिया के लिए उचित बताया गया है। रात्रि के प्रथम प्रहर में संबंध बनाने पर जो संतान प्राप्त होती है वह भाग्यवान होती है।
रात्रि का प्रथम प्रहर रात 12 बजे तक माना गया है। इस वक्त तक बनाए गए संबंध से उत्पन्न हुई संतान धार्मिक, सात्विक, अनुशासित, संस्कारवान, माता-पिता से प्रेम रखने वाली, धर्म का कार्य करने वाली, यशस्वी एवं आज्ञाकारी होती है। संतान दीर्घायु एवं भाग्यशाली होती है।
प्रथम प्रहर के बाद राक्षसगण पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकलते हैं। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि मध्यरात्रि से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। वैसा इसक वैज्ञानिक तथ्य कितना है यह नहीं कहा जा सकता है। लेकिन शास्त्रों की मानें तो इस दौरान रतिक्रिया से पैदा होने वाली संतान में अवगुण आने की आशंका अधिक रहती है।
अमावस्या, पूर्णमासी, संक्रांति और चतुर्थी, अष्टमी तिथि पर भी कामेच्छा का त्याग करते हुए स्त्री-पुरुषों को भगवत भजन में मन लगाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार रविवार का दिन भी संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से यौन संबंध के लिए अच्छा नहीं माना गया है। ऐसा करने से स्त्री-पुरुष और होने वाली संतान को मृत्यु लोक में कष्ट प्राप्त होता है।
महिला और पुरुषों को पितृपक्ष और व्रत के दिन भी यौन संबंध से परहेज रखना चाहिए।
नोट-हमरा उद्श्य किसी के भावना को ठेस पहुचाना नही है बल्कि शास्त्रो के अनुसार जागृत करना है ।