मिथिला हिन्दी न्यूज :-वैसे तो गर्भ न ठहरने के कई कारण हो सकते है।गर्भ ठहरने के लिए स्त्री के रज और पुरुष के वीर्य दोनों को निर्दोष होना आवश्यक है। दोनों में से किसी एक दोष से गर्भाधान नही हो सकता है। यह कोई जरूरी नही की संतान न होने के कारण सिर्फ स्त्री ही दोषी हो, दोषी पुरुष भी हो सकता है। कमी दोनों में से किसी में भी हो सकता है या फिर कमी दोनों में भी निकलना संभव है।
अनेक बार पुरषों के दोष अर्थात उपदंश, प्रमेह, शुक्र निकालने वाली राह का रुकना, शिश्न का पतलापन या बहुत मोटापन, क्षय-कास आदि कारणों से भी स्त्रियों के संतान नही होते।
इस विषय में खुलकर किसी योग्य से बात करना उचित होगा जिससे सही कारण का पता लगाया जा सकता है और उचित सामाधान भी निकल सकता है ।
वैसे हम आप सभी के सामने कमी का पता करने के लिए साधारण उपाय प्रस्तुत कर रहे है।
"नानुलगुर्बा "में लिखा है कि दो मिट्टी के बर्तन से भरे हुए गमलों में गेहूं या जव के साथ दाने डाल दें। फिर उस गमलों में स्त्री-पुरुष अलग अलग सात दिन तक मूत्र त्याग करें। जिसके गमले में दाने उग आए, वों बांझ नहीं है और जिसमें न उगे, उसे बांझ समझना चाहिए।
या,
संगम के समय शुक्र के बाहर निकल जाने की स्थिति में भी गर्भ नही ठहरता। अर्थात गर्भ स्थिर नहीं होता। ऐसी स्थिति में योनि द्वार में शुक्र के प्रवेश करते ही सावधानी से नितंब देश ऊंचा कर जांघ छाती की ओर झुका रखने पर शुक्र बाहर निकालना रुक जाता है और गर्भ ठहर जाता है।
ध्यान रहे कि किसी भी प्रकार से नशीली प्रदार्थों एवं अल्कोहल युक्त दबाओं से बचे। बिना हिचक के आप किसी योग्य चिकित्सक से भी प्रामर्श ले सकते है। एवं आयुर्वेद पद्धति भी अपना सकते है, पहले कारण की जानकारी होनी चाहिए तभी सटीक आयुर्वेद से समाधान संभव है। यह कोई जरूरी नहीं कि सभी आयुर्वेद सभी पर कार्य करे। अतः संकोच त्याग कर दम्पत्ति आगे बढ़े। आशा के साथ सफलता की प्रवलता बढ़ जाती है।