अपराध के खबरें

बिहार के राजनीति में भारी उठा पटक की संभावना, 'चिराग' बुझाने के चक्कर में 'मांझी' की पार हो जाएगा नौका!

अनूप नारायण सिंह 

 मिथिला हिन्दी न्यूज :-तीन महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसको लेकर राजनीतिक समीकरण बनाने तथा गठबंधन की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दांवपेच आरंभ हो गया है। राजग तथा महागठबंधन बिहार के इन दोनों प्रमुख राजनीतिक केंद्र में आंतरिक खींचातानी अभी चरम पर है। इसमें जदयू तथा राष्ट्रीय जनता दल दोनों अपने अपने गठबंधन में अपने कद को अधिक बढ़ाने के लिए साथ चल रहे राजनीतिक दलों का कद को छोटा करने के प्रयास में लगे हुए हैं। जिसके चलते बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं की बात सामने आने लगी है। केन्द्र के सत्ता के लिए भाजपा बिहार में जदयू के प्रस्तावों के सामने झुकती नजर आए तो यह भी कहीं से आश्चर्य की बात नहीं होगी।
  दरअसल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी के युवा नेता चिराग पासवान जब वर्ष 2025 विधानसभा चुनाव में खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करते हुए नीतीश सरकार के कई नाकामियों पर सवाल खड़े किए तो नीतीश कुमार को यह काफी नागवार लगा है और लोजपा को सबक सिखाने के लिए राजनीतिक दांवपेंच शुरू कर दिए है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार जल्द ही वे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल कर चिराग पासवान को झटका देने वाले हैं। नीतीश कुमार की रणनीति यह है कि जीतन राम मांझी को साथ में लाकर दलित नेता चिराग पासवान को राजग में ही चुनौती दी जाए। उनका योजना है कि जदयू तथा भाजपा बिहार के कुल विधानसभा सीटों में आधा-आधा बटवारा करे और यह बात नीतीश कुमार राजग गठबंधन में रखेंगे कि लोजपा को भाजपा अपने आधे सीटों में जितना चाहे हिस्सेदारी दे। औ हम एक दलित नेता जीतन राम मांझी को अपने हिस्से क सीटों में से शेयर देंगे।
  इतना तो तय है करीब 3 दर्जन से कम सीटें लेने के लिए लोजपा तैयार नहीं होगी। जबकि जीतन राम मांझी 4 से 5 सीटों पर भी समझौता कर सकते हैं। मांझी को अपने कब्जे में लेने के लिए नीतीश कुमार उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद में भेजने का मन भी बना रहे हैं। ऐसी स्थिति में लोजपा और भाजपा के बीच खींचातानी पढ़ने की। पूरी संभावना है। और हो सकता है कि सीटों पर बात नहीं बनी तो लोजपा एक नए तीसरे मोर्चे के लिए बड़ा विकल्प बनकर सामने आ जाए, जिसमें लोजपा कांग्रेस तथा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा प्रमुख घटक बन सकते हैं। इस गठबंधन के बनने के बाद उपेंद्र कुशवाहा चिराग पासवान को मुख्यमंत्री उम्मीदवार मानने से भी पीछे नहीं हटेंगे, क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा को महागठबंधन में राजद वैसा तरजीह नहीं दे रही है जैसा कि वे अपेक्षा रखते है। बिहार में इस अंतरिक्ष राजनीतिक उबाल के बीच छोटे-छोटे राजनीतिक समूह जैसे पप्पू यादव,अरुण सिंह गुट, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह आदि लोगों की भी पैनी नजर है तथा वे विधानसभा चुनाव में तीसरे विकल्प की तलाश में माथा पेंची करना आरंभ कर दिए हैं। इसी का नतीजा है कि शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिन्हा को आगे करके एक माहौल बनाने का प्रयास किया गया। 
 ऐसे तो राजनीति संभावनाओं का खेल है, तथा कब कौन दल और नेता किसके साथ चला जाए, यह कहा नहीं जा सकता है! लेकिन इतना तय है कि विधानसभा चुनाव के दौरान बिहार में सक्रिय सभी प्रमुख राजनीतिक दल छोटे-छोटे सहयोगी दलों को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, और इसी रणनीति में कुछ छोटे दलों को लाभ मिल जाने की भी संभावना है।

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live