अपराध के खबरें

पुण्यतिथि विशेष: धोखे की राजनीति दौर में दोस्ती-वचन निभानेवाले नेता थे चंद्रशेखर सिंह

अनूप नारायण सिंह 
मिथिला हिन्दी न्यूज :-श्री चन्द्र शेखर (Chandra Shekhar) ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल (पदयात्रा) तय की थी।आज उनकी 13वीं पुण्यतिथि है। उनके निधन से एक राजनीतिक युग का अंत हो गया है। एक प्रखर और स्पष्टवक्ता चंद्रशेखर पहले पूरे देश में “युवा – तुर्क” के नाम से जाने गए और बाद में विचारोंवाली राजनीतिक धारा के अंतिम राजनेता बनकर उभरे। ठेठ गवई अंदाज, धोती, कुर्ता, पैर में चप्पल, साधारण लिवास, बिन सवारे बाल, बेढंगी दाढ़ी, अलमस्त चाल, मजबूत कद – काठी, आकर्षक व्यक्तित्व, आम और खास दोनों से बगैर बनावटी औपचारिकता बातचीत की बेवाक शैली… देशवासियों , खासकर ग्रामीण भारत से जुड़ाव उनकी विशिष्टता थी। वे भारतीय राजनीति के उन पुरोधाओं में थे, जिन्होंने राजनीति अपनी शर्तों पर की, शुद्ध बलियावी ठसक के साथ।

श्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) अपने छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे और क्रांतिकारी जोश एवं गर्म स्वभाव वाले वाले आदर्शवादी के रूप में जाने जाते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1950-51) से राजनीति विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री करने के बाद वे समाजवादी आंदोलन में शामिल हो गए। उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकट से जुड़े होने का सौभाग्य प्राप्त था। वे बलिया में जिला प्रजा समाजवादी पार्टी के सचिव चुने गए एक साल के भीतर वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के संयुक्त सचिव बने। 1955-56 में वे उत्तर प्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने।1962 में वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। वे जनवरी 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया। संसद के सदस्य के रूप में उन्होंने दलितों के हित के लिए कार्य करना शुरू किया एवं समाज में तेजी से बदलाव लाने के लिए नीतियाँ निर्धारित करने पर जोर दिया। इस संदर्भ में जब उन्होंने समाज में उच्च वर्गों के गलत तरीके से बढ़ रहे एकाधिकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाई तो सत्ता पर आसीन लोगों के साथ उनके मतभेद हुए।

वे एक ऐसे ‘युवा तुर्क’ नेता के रूप में सामने आए जिसने दृढ़ता, साहस एवं ईमानदारी के साथ निहित स्वार्थ के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे 1969 में दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘यंग इंडियन’ के संस्थापक एवं संपादक थे। इसका सम्पादकीय अपने समय के विशिष्ट एवं बेहतरीन संपादनों में से एक हुआ करता था। आपातकाल (मार्च 1977 से जून 1975) के दौरान ‘यंग इंडियन’ को बंद कर दिया गया था। फरवरी 1989 से इसका पुनः नियमित रूप से प्रकाशन शुरू हुआ। वे इसके संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे।

श्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) हमेशा व्यक्तिगत राजनीति के खिलाफ रहे एवं वैचारिक तथा सामाजिक परिवर्तन की राजनीति का समर्थन किया। यही सोच उन्हें 1973-75 के अशांत एवं अव्यवस्थित दिनों के दौरान श्री जयप्रकाश नारायण एवं उनके आदर्शवादी जीवन के और अधिक करीब ले गई। इस वजह से वे जल्द ही कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बन गए।

25 जून 1975 को आपातकाल घोषित किये जाने के समय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जबकि उस समय वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष निकायों, केंद्रीय चुनाव समिति तथा कार्य समिति के सदस्य थे।

श्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) सत्तारूढ़ पार्टी के उन सदस्यों में से थे जिन्हें आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।

वह हमेशा सत्ता की राजनीति का विरोध करते थे एवं लोकतांत्रिक मूल्यों तथा सामाजिक परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता की राजनीति को महत्व देते थे।

आपातकाल के दौरान जेल में बिताये समय में उन्होंने हिंदी में एक डायरी लिखी थी जो बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से प्रकाशित हुई। ‘सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता’ उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन है।

श्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) ने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक दक्षिण के कन्याकुमारी से नई दिल्ली में राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक लगभग 4260 किलोमीटर की मैराथन दूरी पैदल (पदयात्रा) तय की थी। उनके इस पदयात्रा का एकमात्र लक्ष्य था – लोगों से मिलना एवं उनकी महत्वपूर्ण समस्याओं को समझना।

उन्होंने सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा सहित देश के विभिन्न भागों में लगभग पंद्रह भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की थी ताकि वे देश के पिछड़े इलाकों में लोगों को शिक्षित करने एवं जमीनी स्तर पर कार्य कर सकें।

1984 से 1989 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़ कर 1962 से वे संसद के सदस्य रहे। 1989 में उन्होंने अपने गृह क्षेत्र बलिया और बिहार के महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा एवं दोनों ही चुनाव जीते। बाद में उन्होंने महाराजगंज की सीट छोड़ दी।

श्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) का विवाह श्रीमती दूजा देवी से हुआ एवं उनके दो पुत्र हैं – पंकज और नीरज। चंद्रशेखर जी का निधन 8 जुलाई 2007 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में हुआ। 

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के हीरक जयंती समारोह पर अपने उदगार में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल जी ने ठीक ही कहा – अपने पांच दशकों के संसदीय जीवन में मैंने लोकतंत्र के दो ही पक्ष देखे – ‘सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष’ लेकिन चंद्रशेखर की मौजूदगी ने भारतीय लोकतंत्र को तीसरा मजबूत पक्ष दिया – ‘निष्पक्ष’ …! सच, आनेवाली पीढ़ी चंद्रशेखर को एक निर्भीक और निष्पक्ष नायक के रूप में याद करेगी ।

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live