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क्या बिहार ने कमाल दिखा पाएंगे थर्ड फ्रंट वाले यशवंत सिन्हा

अनूप नारायण सिंह 
मिथिला हिन्दी न्यूज :-पटना:सत्तर-बहत्तर साल की उम्र में यशवंत सिन्हा फिलहाल बिहार की राजनीति क़ी अंतर्दिशा बदलने निकले हैं.उनकी नज़र भारतीय राजनीति पर है.बिहार विधानसभा चुनाव में मज़बूत दख़ल के रास्ते राष्ट्रीय मोर्चा का गठन भी मुमकिन है.आज जब कोरोना वायरस से सियासी गलियारे भी ग्रसित है तो बूढ़ी हड्डी सरपट दौड़ रही है.यह पहला मोर्चा है बिहार के दौरे पर निकल चुका है.हालांकि,अपने नेतृत्व में बना मोर्चा को थर्ड फ्रंट मानने को वह तैयार नहीं हैं.उनका दावा है कि यह भविष्य बतायेगा कि वो तीसरा मोर्चा हैं या पहला फ्रंट.पूर्व केंद्रीय मंत्री कल से बिहार में जन संवाद यात्रा पर हैं.रात्रि विश्राम के बाद बोधगया से यह यात्रा सासाराम को निकलने वाली है.यशवंत ने बिहार की जातीय गणित को ध्यान में रख कर मोर्चा तो तगड़ा बनाया है मगर क्या वे अपने जाति समूह में स्वीकार्य भी हैं?यदि मोर्चा में शामिल नेताओं को स्वजातीय सपोर्ट मिलता है तो फिर इस मोर्चा को रोक पाना किसी भी गठबंधन के लिए संभव नहीं होगा.
बिहार की राजनीति में जाति का गणित काफी अहम है और एक कड़वी सच्चाई है कि विकास पर जाति का समीकरण भारी पड़ता है.यही कारण है कि विकास पुरुष और सुशासन बाबू के तमग़ा लगने के बावजूद नीतीश कुमार विकास के मुद्दे को दरकिनार कर अतिपिछड़ा की राजनीति को आत्मसात करने में दिन-रात जुटे हैं.बिहार की राजनीति का विशलेषण करने वालों के मुताबिक हर दशक में अलग-अलग जातियां चुनावी दिशा को तय करती रही हैं.यशवंत के नेतृत्व वाला मोर्चा के पास कुल जमा पूंजी जाति ही है,ख्याति भी है.अब ज़रा मोर्चा में शामिल नेताओं के जातीय समीकरण पर नज़र डालते हैं.
यशवंत सिन्हा कायस्थ जाति से आते हैं.यह जाति बिहार में भाजपा के साथ है.कायस्थ आम तौर पर भाजपा का कोर वोटर माना जाता है.यशवंत पहले भाजपा में थे.क़द्दावर नेता रहे हैं.वित्त मंत्रालय संभालते थे.अर्थशास्त्र के जानकार हैं.उनकी छवि भी मिलाजुला कर ठीक-ठाक है.सवाल यह उठता है इस बार बदलो बिहार में अपने स्वजातीय का मन-मिज़ाज भी बदल पायेंगे?सबसे पहले नेतृत्वकर्ता को ही उदाहरण सेट करना पड़ता है.पूंजी से पूंजी बनता है.पहले ख़ुद की पूंजी शो करनी होती है तब कोई मदद को तैयार होता है.यशवंत सिन्हा के लिए यह चुनौती भरा सवाल होगा.यदि अपनी बिरादरी को उन्होंने जोड़ लिया तब तो यह गाड़ी चल निकलेगी.मोर्चा में भूमिहार जाति से डा.अरुण कुमार दमदार नेता हैं.कह सकते हैं कि भूमिहार नेताओं में सर्वमान्य हैं.मगर दिक़्क़त यह है कि इनकी जाति भी कहां सुनने को तैयार है.ऊंची जातियों की एक बड़ी संख्या अभी भी उस गठबंधन को वोट देने के लिए तैयार नहीं है जो पिछड़ी जातियों का समर्थन करता है.सच्चाई तो यही है ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत यानी जो उच्च जाति के वोट बैंक थे आज की तारीख़ में वह सारा का सारा भाजपा समर्थक हो गया है.इस मोर्चा के एक और बड़े नेता पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह राजपूत जाति से आते हैं.इनकी जाति भी लगभग एनडीए के साथ है.वैसे इस जाति की स्तिथि डावांडोल रही है.अपने क्षेत्र नरेंद्र सिंह का थोड़ा रसूख़ ज़रूर है.बिहार में इस जाति का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है.
बेशक,मोर्चा के एकमात्र मुस्लिम चेहरा अशफाक़ रहमान अपने समुदाय के भरोसेमंद बड़े मुस्लिम नेता हैं.मुस्लिम समाज का बड़ा तबक़ा अभी भी राजद के साथ है.कुछ नीतीश कुमार के साथ.मगर समाज बेचैनी में है.वह तेजस्वी को क़ुबूल करने को तैयार नहीं है.नीतीश भाजपा गठबंधन के कारण मुस्लिम समाज को पसंद नहीं है.बिहार में सबसे बड़ा वोटबैंक मुसलमान नई राह और नया नेतृत्व की तलाश में है.अपनी सियासत और अपनी कयादत के फ़ार्मूला से अशफाक़ रहमान समुदाय को साधने में बहुत हद तक सफल दिख रहे हैं.मौजूदा बिहार की राजनीति में अशफाक़ रहमान इकलौते मुस्लिम नेता हैं,बाक़ी दलों के हैं.इस कारण अशफाक़ समुदाय में उम्मीद जगाते हैं.पूर्व मंत्री नागमणि कोईरी-कुशवाहा जाति से आते हैं.इस जाति की बड़ी विरासत इनके पास है.बिहार के लेनिन जगदेव प्रसाद इनके पिता थें.कुशवाहा नेतृत्व में टकराव के बावजूद यह अपनी पहचान बरक़रार रखने में सफल नज़र आते हैं.पूर्व मंत्री रेणु कुशवाहा भी इस मोर्चा में शामिल हैं.पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद का संबंध यादव जाति से है.पुराने समाजवादी हैं.यादव जाति पर आधिपत्य लालू प्रसाद का ही है.दलित समुदाय से पूर्व मंत्री पूर्णमासी राम को जोड़ा गया है.यशवंत ने टीम तो वाक़ई दमदार बनाई है.हर जाति के नेता को जोड़ रखा है.सबका अपनी जाति समुदाय में थोड़ा बहुत असर रसूख़ भी है.कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मोर्चा के नेताओं ने अपनी-अपनी जातियों को समेट लिया तो किसी भी गठबंधन ख़ास कर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए को समस्या हो सकती है.यशवंत शायद इसी गुणा-भाग के मद्देनज़र कहते भी हैं’राज्य सरकार को सत्ता से हटाना मुख्य उद्देश्य है.

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