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कालसर्प दोष का उल्लेख किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथो मे नही

पंकज झा शास्त्री 

मिथिला हिन्दी न्यूज :-अक्सर लोग काल का नाम सुनते ही घबरा जाते है और इसे मृत्यू से जोड़कर देखते है परंतु वास्तविक मे तो काल अर्थात समय होता है और समय कभी भी रुकता नही है वो अपने गति से चलता ही रहता है ।इसी गति के साथ सृष्टि मे कई बदलाव देखने को मिलता है।कोई भी घटना किसी बदलाव काल का ही संकेत होता है ।

ज्योतिष काल गणना पर आधारित है ।परंतु कुछ पाखण्डीयो के द्वारा इसे भयावह व डरावना मोड़ दे दिया गया ।

किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रंथो मे कहीं भी कालसर्प दोष का उल्लेख नही मिलता है हां सर्प दोष का उल्लेख जरुर मिलता है । सर्पयोग को कालांतर मे तोर मरोड कर इसे कालसर्प दोष बना दिया गया जिसको लेकर अक्सर लोगों के मन मे चिंता बनी रहती है । सर्पयोग के प्रमुखता से 12 प्रकार वर्णन मिलता है इसमे भी सभी सर्प योग जिवन के लिये घातक नही होता ।इसलिये यह जानना जरुरी है कि कुंडली मे इन 12मे से कोन सा सर्प योग बन रहा है ।इस विषय मे किसी योग्य से कुंडली का अध्यन कराकर जानकारी प्राप्त कर सकते है । योग्य को भी चाहिये कि कुंडली का अध्यन बहुत ही सावधानी से करे ।
ज्योतिष किसी को सही मार्ग दिखाने मे सक्षम है ।ज्योतिष किसी को डराता नही है बल्कि सम्भावित वास्तविकता से अबगत कराता है ।
यदि कोई यदि कोई सर्पयोग भयावह बनाकर कालसर्प दोष कहता है तो इसका मै विरोध करता हुँ ।

नोट-ज्योतिष,हस्तलिखित जन्म कुंडली,पूजा पाठ,महामृत्युंजय जाप एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानो के लिये सम्पर्क कर सकते है ।

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