पैसे के अभाव में नहीं हो सकी बूढ़े मां बाप की दवाई और ना हो रही युवा हो चुकी बेटियों की विदाई !
तीन पीढ़ियां बर्बाद हो गई वित्त रहित शिक्षकों की विगत आठ साल से बाकी है बकाया अनुदान !
पैसे के अभाव में दाने-दाने को मोहताज हैं वित्त रहित शिक्षक। विगत आठ साल का बकाया अनुदान नहीं मिलने के कारण परिजनों के समक्ष भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया है। सारे संसार में एकमात्र बिहार ही ऐसा राज्य है जहां खूब पर हो लेकिन पैसा नहीं मिलेगा वाली वित्त रहित शिक्षा नीति का काला कानून लगाया गया । वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस काले कानून को समाप्त करते हुए परीक्षा फल के आधार पर अनुदान देने की घोषणा की। तब से अब तक महंगाई चौगुनी हो गई,विधायक और मंत्रियों के वेतन भत्ते तीनों ने बड़ा लिए गए बावजूद सरकार द्वारा अनुदान की राशि को भी चौगुनी बढ़ाने की बजाय , बकाया अनुदान भी नहीं दिए जाने से वित्त रहित शिक्षकों के समक्ष जीवन यापन का घनघोर संकट उत्पन्न हो गया है।एक बार पूरा और दूसरी बार अधूरा अनुदान दिया गया उसके बाद सरकारी लापरवाही से अनुदान देना बंद कर दिये जाने से वित्त रहित शिक्षकों के परिजनों को दुकानदारों ने उधार देना भी बंद कर दिया है। विगत आठ साल से बकाया अनुदान नहीं मिलने के कारण दाने-दाने को मोहताज हो रहे वित्त रहित शिक्षकों के परिजनों के समक्ष दिन-रात भुखमरी का संकट छाया रहता है। पैसे के अभाव में वित्त रहित शिक्षकों के बूढ़े मां बाप की ना तो दवाई हो रही है और ना जवान हो चुकी बेटियों की शादी विवाह नहीं होने के कारण विदाई हो पा रही है। बड़े अरमानों से माता पिता ने जमीन जायदाद एवं गहने जेवर बेचकर बैटरी को पढ़ा कर प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर बनाया था कि बुढ़ापा सुख से कटेगा। लेकिन वित्त रहित शिक्षा नीति लागू कर दिए जाने के कारण सभी के अरमानों पर वज्रपात हो गया। सरकार की काली नीति के कारण अर्थ के अभाव से न तो बुढ़ापा में बूढ़े मां बाप की समुचित सेवा हो सकी, ना पैसे के अभाव में बाल बच्चों को अच्छी शिक्षा दीक्षा प्राप्त हो सकी।पैसे के अभाव में वित्त रहित शिक्षक भरी जवानी में बुढ़ापा का शिकार होकर दाने दाने का मोहताज होते हुए अकाल काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं। पैसे के अभाव में वित्त रहित शिक्षकों की तीन पीढ़ियां बर्बाद हो गई। सरकार द्वारा वेतन नहीं दिए जाने एवं बकाया अनुदान के नहीं दिए जाने से वित्त रहित शिक्षक विभिन्न बीमारियों एवं हृदयाघात से बेमौत मरते जा रहे हैं। स्थानीय निकासपुर कॉलेज एवं केएसआर कॉलेज के डॉक्टर अमरनाथ राय, सुमन कुमार सिंह, एलबी राय, आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षक पैसे के अभाव में हृदय आघात एवं विभिन्न बीमारियों से मर चुके हैं। सारे बिहार में तो पांच सौ से अधिक वित्त रहित शिक्षक पैसे के अभाव में इलाज नहीं होने से बेमौत मर चुके हैं। पिछले साल होली से पूर्व में सरकार द्वारा सारा अनुदान दे दिए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन किसी भी पर्व त्योहार के अवसर पर भी अब तक सरकार द्वारा विगत आठ साल का बकाया अनुदान भी नहीं दिए जाने के कारण वित्त रहित शिक्षकों के परिजनों के समक्ष घनघोर भुखमरी का संकट छाया हुआ है।आज शिक्षक दिवस के अवसर पर सारा संसार जहां बड़ी खुशी के साथ शिक्षक दिवस मना रहा है, वही सारे वित्त रहित शिक्षक आज शिक्षक दिवस को भी काला दिवस के रूप में मनाने को मजबूर हो रहे हैं।