मिथिला हिन्दी न्यूज :-आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं. कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर जो स्त्री सायं प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनने के बाद आचार्य को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त करती है. व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है. यह व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है.
जीवित्पुत्रिका व्रत विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास और पूजा अर्चना के साथ संपन्न होता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर, 2020 गुरुवारके दिन मनाया जाएगा और 11 सितंबर, शुक्रवार को व्रत का पारण संपन्न होगा.
परंपरा के अनुसार व्रती बुधवार यानि 09 सितंबर को सिर से स्नान कर दिवंगत महिला पूर्वजों को तेल, खल्ली व जल-दान करेंगी. रात में 09:43बजे तक विशेष भोजन(ओठगन )होगा. यानी इससे पूर्व तक व्रती महिलाएं चूड़ा-दही खाएंगी या जो भी परंपरा में हो। इसके बाद पानी भी नहीं ग्रहण करेंगी. गुरुवार को दोनों शाम निर्जला व्रत करेंगी. दिन में चिल्हो व सियारो की पूजा होगी और प्रसाद चढ़ाने के साथ व्रती कथा सुनेंगी. शुक्रवार को सूर्योदय के बाद वे उपवास तोड़ेंगी। शुक्रवार को मिथिला क्षेत्रीय पंचांग अनुसार प्रातः5:50बजे तक।
09सितंबर,बुधवार को सप्तमी तिथि रात्रि 09:43तक इसके उपरांत अष्मी तिथि।
10सितंबर,गुरुवार को अष्टमी रात्रि 10:55तक इसके उपरान्त नवमी तिथि।
वैसे अपने अपने क्षेत्रीय पंचांग अनुसार समय सारणी में कुछ अंतर हो सकता है। वैसे हमारे तरफ से यह सलाह दिया जाता है कि जो महिला वर्ग यह उपवास करने में सारीरिक सक्षम न हो या अस्वस्थता के कारण किसी भी प्रकार का औषधि का सेवन कर रही हो वो जबरदस्ती इस व्रत को न करे। आस्था से प्रसंचित होकर ईश्वर का आराधना करें।