अपराध के खबरें

जिन्हें पूजना था भुलाये गये वो एक क्रांतिकारी की दर्दनाक कहानी, जिन्हें आजाद भारत में न नौकरी मिली न ईलाज

अनूप नारायण सिंह 

मिथिला हिन्दी न्यूज :- आजादी के बाद की बात है।बिहार की राजधानी पटना में बसों के परमिट आवंटित हो रहे थे।लोग लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।उसी में लगभग पचास की उम्र का एक व्यक्ति भी था।पटना कमिश्नर के सामने पहुँचने पर उसने अपना नाम बताया और ये भी बताया कि वह स्वतंत्रता सेनानी है।पटना कमिश्नर नें कहा, 'सर आपके पास स्वतंत्रता सेनानी का कोई सर्टिफिकेट हो तो दिखाइये... ऐसे कैसे मान लें कि आप स्वतंत्रता सेनानी हो? 'उस व्यक्ति को कमिश्नर की बातों से गहरा आघात लगा।लेकिन सर्टीफिकेट तो था नहीं।फिर उसे याद आया कि जब वो अंडमान में कालापानी की सजा काट रहा था तो भगत सिंह ने उसे एक पत्र लिखा था।वह पत्र आज एक बार फिर से पढ़ रहा था वो स्वतंत्रता का पुजारी,जिसमें भगत सिंह ने लिखा था, "वे दुनियाँ को यह दिखायें कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते,बल्कि जीवित रहकर जेलों की अंधेरी कोठरियों में हर तरह का अत्याचार भी सहन कर सकते हैं।" आज लग रहा था काश भगत सिंह की तरह उसे भी फांसी हो गई होती तो स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाणपत्र तो नहीं मांगा जाता।
यह स्वतंत्रता सेनानी कोई और नहीं बल्कि बटुकेश्वर दत्त थे, जिन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फोड़ा था और गिरफ्तारी दी,काला पानी की सजा काटी।लेकिन देश के तथाकथित नेताओं व सरकार ने माँ भारती के सपूत को भुला दिया।बाद में राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को बस परमिट व सर्टीफिकेट वाली बात पता चली,तो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से माफी मांगी थी।
चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह,राजगुरू आदि स्वतंत्रता सेनानी वीरों के साथ संघर्ष करने वाले बटुकेश्वर दत्त की पहचान नेपथ्य में दबकर रह गई।सेंट्रल असैंबली में बम फोड़ने की वजह से काला पानी की सजा मिली।भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को एक अन्य केस सांडर्स हत्याकांड की वजह से फांसी हो गई।लेकिन बटुकेश्वर दत्त कालापानी की सजा काटते रहे, फिर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जेल गये।उन्हें 1945 में जेल से रिहाई मिली।15 साल तक जेल की सलाखों के पीछे जीवन बिताने वाले बटुकेश्वर दत्त व उनका परिवार आजादी के बाद रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करते रहे।बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी को आज़ादी के बाद ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए कभी एक सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर भटकना पड़ा तो कभी डबलरोटी बनाने का काम करना पड़ा।आजादी की लड़ाई में प्राणों की बाजी लगाने वाले और संयोगवश फांसी से बच जाने वाले,बटुकेश्वर दत्त नितांत दयनीय स्थिति में जीवन गुजारते रहे और कोई खोज खबर लेने वाला नहीं रहा।।1963 में उन्हें विधानपरिषद का सदस्य बनाया गया, लेकिन गंभीर रूप से बीमार बटुकेश्वर दत्त के हालात में कोई फर्क नहीं आया।जब पूरे देश में खबर फैली तो लोग सहायता के लिए आगे भी आये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 20 जुलाई 1965 को उन्होंने इस संसार को विदा कह दिया।
सच है बटुकेश्वर दत्त को इस मृत्युपूजक देश ने सिर्फ़ इसलिए भुला दिया, क्योंकि वे आज़ादी के बाद भी ज़िंदा बचे रहे।

إرسال تعليق

0 تعليقات
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

live