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बांझपन और नपुंसकता के हो सकते है कई कारण,जिसमे गलत धारणा को पालना भी है सामिल

पंकज झा शास्त्री 


बांझपन तथ्य अधिकांश भारतीय पुरुष इसके बारे में नहीं जानते हैं
 पितृ सत्तात्मक एवं पुरुष प्रधान समाज में गभार्धान और प्रसव को भारत में सदियों से महिलाओं का मुद्दा माना जाता रहा है। पारंपरिक रूप से इस बारे में दादी-नानी मां महिला से ही चर्चा करती है और पुरुष चुप्पी साधे रहते हैं। विवाह के बाद अधिकांश पुरुष अपने स्वयं के परिवार को शुरू करना चाहते हैं लेकिन आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम पुरुष प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन मुद्दों के बारे में पूरी तरह से जानते हैं। महिला के गर्भवती नहीं होने पर पुरुष की शारीरिक कमी की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। नि:संतानता को अकसर एक महिला समस्या के रूप में देखा जाता है। भारत में पुरुष बांझपन के लिए परीक्षण करवाने में थोड़ा संकोच करते हैं। कई मामलों में तो जांच करवाने में स्वयं को हीन समझने के चलते भी चुप्पी साध लेते हैं। बांझपन के आसपास की इसी चुप्पी ने पुरुषों में प्रजनन समस्याओं के बारे में अज्ञानता और गलत धारणाओं को जन्म दिया है।

बांझपन से संबंधित 7 महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनके बारे में अधिकांश भारतीय पुरुषों को पता ही नहीं है-
लगभग 30 से 40 फीसदी बांझपन का कारण पुरुष हैं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 30 फीसदी मामले ‘पुरुष कारक बांझपन’ के कारण होते हैं। भारत में बांझपन के मामलों की एक महत्वपूर्ण संख्या में, महिलाओं को गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं होने के लिए दोषी ठहराया जाता है। पुरुष कारक बांझपन कम शुक्राणु की संख्या, खराब शुक्राणु गतिशीलता, कम टेस्टोस्टेरोन के स्तर या अन्य कारकों का परिणाम हो सकता है।

अधिकतर सायद मानते है कि बांझपन और नपुंसकता एक ही है परन्तु वास्तव में नपुंसकता और बांझपन समान नहीं है।
-भारत में बांझपन जागरूकता के स्तर को समझने के लिए हमने अनुमान लगाया है कि, 59 फीसदी पुरुष बांझपन और नपुंसकता के बीच के अंतर को नहीं जानते हैं। नपुंसकता, जिसे मेडिकल टर्म में इरेक्टाइल डिसफंक्शन या स्तंभन दोष के रूप में जाना जाता है। जब कोई पुरुष रति क्रिया के समय अपने गुप्तांग में पर्याप्त इरेक्शन या स्तंभन लाने में नाकामयाब हो जाता है या फिर उसको बरकरार नहीं रख पाता, तब उस स्थिति को इरेक्टाइल डिसफंक्शन कहते हैं जबकि बांझपन एक सफल गर्भावस्था होने में विफल होना है और कई कारकों के कारण हो सकता है।
पुरुषों के लिए प्रजनन परीक्षण अनिवार्य और यह प्राय: इनवेसिव है
-भारतीय पुरुष अकसर परीक्षण करवाने से मना कर देते हैं क्योंकि पुरुष बांझपन मर्दानगी और सम्मान से जुड़ा होता है। इसके अलावा प्रजनन परीक्षण को वे बेकार मानते हैं और जांच कराने में अत्यधिक असहजता महसूस करते हैं। लेकिन पुरुष बांझपन के परीक्षण में पहला कदम उसके स्वास्थ्य की जांच है, एक सामान्य शारीरिक परीक्षा, जिसके बाद शुक्राणु विश्लेषण होता है।
बांझपन से न केवल शारीरिक तनाव बल्कि मानसिक चिंता और संकट भी पैदा करता है
-डॉक्टरों और प्रजनन विशेषज्ञों के अनुसार, पुरुषों को भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक समर्थन देने या बांझपन से संबंधित समस्याओं के बारे में खुलकर बात करने की संभावना महिलाओं के मुकाबले बहुत कम है। हालांकि, बांझपन के दौर से गुजरना एक दंपति के लिए बहुत ही तनावपूर्ण और गहन अनुभव है, जो रिश्ते पर गंभीर तनाव का कारण बनता है। इस दौरान दोनों को पर्याप्त भावनात्मक समर्थन और मार्गदर्शन की जरूरत होती है।
मेरा व्यक्तिगत मानना है कि बांझपन या नपुंसकता कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। बहुत बड़ी समस्या यह है कि पढ़े लिखे शिक्षित लोग भी इस तरह के समस्या होने पर किसी योग्य को खुलकर जानकारी देने में हिचकिचाते है और यही कारण है कि बीतते समय के साथ दंपती जीवन नरकमय होने लगता है।हम यह कह सकते है कि हमारे प्राचीन शास्त्रों में बांझपन और नपुंसकता से मुक्ति पाने हेतु कई तरह के उपाय बताए गए है परन्तु कोन सा उपाय किस पर लाभकारी हो सकता है यह किसी योग्य के परामर्श से ही संभव है कारण सभी उपाय सभी के लिए लाभकारी नहीं होता।✍️
पंकज झा शास्त्री 9576281913
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नोट - उपरोक्त्त में मेरे द्वारा खुलकर लखिने का मकसद किसी के भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। मेरा उद्देश्य उपरोक्त शब्दों से जागरूक करना है।

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