मिथिला हिन्दी न्यूज :-राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राज्य परिषद् सदस्य मोहिउद्दीननगर विधानसभा सह जिला सचिव रालोसपा समस्तीपुर रंजीत कुमार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि आज हिन्दुस्तान देश के करदाता अचानक सक्रिय हो उठे हैं।
ये तथा कथित करदाता हर बार अपने टैक्स कीमत रसीद लेकर गरीबों-किसानों- मजदूरों द्वारा अपने अधिकारों की माँग के खिलाफ प्रकट हो जाते हैं।
इस बार ये किसानों के आंदोलन के समय प्रकट हुए हैं। पहले किसानों को खालिस्तानी कहा, फिर नक्सलवादी। लेकिन बात नही बनी तो दावा कर रहे हैं कि तुम जो समर्थन मूल्य माँग रहे हो उसे हमारे टैक्स के पैसे से चुकाया जायेगा। आपको याद हैं न ये तथा कथित करदाता आजकल बहुत सेलेक्टिव अवसरों पर प्रकट होते हैं और ' हाय मेरे टैक्स का पैसा कहाँ बर्बाद कर रहे हैं?
जेएनयू के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देना भी इनको करदाता के पैसे की बर्बादी लगता है।कभी आपने ये करदाता कॉरपोरेट द्वारा की जा रही देश की संपदा की अकूत लूट के विरोध में सक्रिय देखे हैं?
कभी देखा है कि कोई इस तरह का मिशनरी करदाता विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, सुब्रत रॉय सहारा या मेहुल भाई चौकसी द्वारा लूट लिए गए लाखों करोड़ रुपयों को अपने पैसे का दुरुपयोग कहते सुना है?
बैंको के एनपीए का नाम आपने सुना होगा। यानी वह ऋण जो धन्नासेठों ने लिया था पर बैंकों को नही लौटाया। वह भी लाखों करोड़ रुपये का। कभी कोई कहता मिला आपको कि मनमोहन जी या मोदी जी, ये पैसा न तो आपका पार्टी फण्ड है और न आप बाबा के घर से लाये थे- फिर आप किस अधिकार से बाँट रहे हैं? और 3000 करोड़ की भव्य मूर्ति का तो मैं जिक्र ही नहीं करूंगा वरना एकता खतरे में पड़ जाएगी?अब जरा पार्टी फण्ड को भी देख लें- ये क्या मंगलयान में भरकर प्लूटो ग्रह से आता है? जी नही, ये भी टैक्स पेयर का ही पैसा होता है। ये जो हर शहर में बनते फाइव स्टार पार्टी ऑफिस जो आप देख रहे हैं, और ये जो हवाई यात्राएं हैं- इनके लिये रुपया न राहुल जी के घर से आया है और न नरेंद्र मोदी जी के घर से। ये सब करदाता का पैसा है- जनता का माल।अंत मे- ये करदाता हैं कौन? आप जानते हैं अपने देश मे कर यानी टैक्स कौन देता है और कितना?हमारे महादेश में इनकम टैक्स देने वाले तो 5 फीसद से भी कम हैं और कुल राजस्व उगाही में इनका हिस्सा भी जरा सा ही बैठता है। सरकार की झोली तो भरती है अप्रत्यक्ष करों से। जैसे जी एस टी, सेल्स टैक्स, टोल टैक्स, आबकारी कर, वैट आदि इत्यादि से। पेट्रोल पर टैक्स।
डीजल पर टैक्स।
रसोई गैस पर टैक्स।
हम हर एक चीज जो खरीदते हैं, उसपर टैक्स देते हैं। देश की आबादी में सबसे बड़ा तबका किसान हैं-वे हर बात पर टैक्स देते हैं। बीज, खाद, बिजली, पानी, जमीन की खरीद बिक्री, यहां तक कि मंडी में फसल बेचने जाते हैं तो वहां भी टैक्स देते हैं।
तो देश मे सबसे अधिक करदाता किसान ही हैं और कोई नहीं।
जो आयकर देकर यह समझते हैं कि यह देश उनके टैक्स से ही चल रहा है, उनको यह पता होना चाहिए कि वे टैक्स दे रहे हैं क्योंकि टैक्स देने लायक इनकम उनको सरकार की नीतियों से ही हो रही है। क्योंकि सरकार आपको वेतन देती है या सरकारी सहायता से आपका धंधा चल रहा है। ये न हो तो भी टैक्स दे पाएंगे क्या? वैसे धीरे धीरे सरकार उसका भी इंतजाम कर ही रही है। पेंशन तो बंद हो ही गई है। वेतन का मजा तब तक ले लीजिये जब तक पब्लिक सेक्टर जिन्दा है। परंतु किसान, उसकी तो उत्तम कृषि सरकारी नीतियों के चलते ही आज घाटे का सौदा बन गई है और वह आत्महत्या के लिये विवश होता है। याद है न यह वही किसान है जो पूस की रात में पानी भरे खेत मे खड़ा होकर फसल की सिंचाई करता है तब जाकर हमें भोजन प्राप्त होता है। इतना सा गणित तो आप जानते होंगे कि हम चाहे जितना करदाता बन जायें लेकिन खाएंगे अनाज ही, जमा किया या बिना जमा किया टैक्स नही खा सकते।
और सबसे आखिर में, सौ बातों की एक बात-कर्ज माफी कोई इलाज नही है, यह सिर्फ संकट को न मानने की जिद है। नकली उपाय से किसान को बहलाने का प्रयास है जो दोनो कॉग्रेस व भाजपा प्रमुख राजनैतिक दल करते हैं।किसानी के संकट को समझना होगा।
खेती को लाभ की गतिविधि बनाना होगा।किसान को उसकी उपज का दोगुना दाम सुनिश्चित करना होगा। लागत में नगद लागत के अलावा किसान के परिवार की पूरी मजदूरी और भूमि तथा कृषि उपकरणों का किराया भी शामिल करना होगा।
व्यापक भूमि सुधार करने होंगे ताकि भूमि स्वामित्व की असमानता कम से कम हो।राज्य परिषद् सदस्य मोहिउद्दीननगर विधानसभा सह जिला सचिव रालोसपा समस्तीपुर रालोसपा समस्तीपुर रंजीत कुमार।