मिथिला हिन्दी न्यूज :-तीसरी कसम की कहानी सुनने के बाद राज कपूर ने शैलेन्द्र से फिल्म में काम करने के लिए साइनिंग एमाउण्ट की मांग की . साइनिंग एमाउण्ट की मांग सुनकर शैलेन्द्र का चेहरा मुर्झा गया. उन्हें अपने मित्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जब एक रुपए बतौर साइनिंग एमाउण्ट राजकपूर ने लिया तो शैलेन्द्र की नजरों में वे बहुत ऊंचे हो गये. राजकपूर ने फिल्म के हिट होने के लिए हीरो हीरोइन को अंत में सुखद मिलन कराना चाहते थे, लेकिन शैलेन्द्र को मूल कहानी से छेड़ छाड़ गवांरा न हुआ. फिल्म की हीरोइन समाज के आगे झुक जाती है. नौटंकी की बाई होने के कारण उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह एक भोले भाले इंसान की जिंदगी में आए. यहीं पर फिल्म पिट जाती है. भारतीय जन मानस हमेशा फिल्म का सुखद अंत देखने का आदी है. इसीलिए राजकपूर ने शैलेन्द्र को आगाह किया था, पर शैलेन्द्र ने आत्म संतुष्टि के लिए फिल्म बनाई और फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से शत प्रतिशत न्याय किया.फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी कहानी " मारे गये गुलफाम " पर आधारित थी फिल्म तीसरी कसम. शैलेन्द्र ने फणीश्वर नाथ रेणु की सलाह पर हीं वहीदा रहमान को इस फिल्म के लिए हीरोइन चुना था. राजकपूर ने एक भोले भाले देहाती के किरदार को अपनी बोलती आंखों के माध्यम से जीवन्त कर दिया. वहीं वहीदा रहमान ने नौटंकी नर्तकी के रूप में भाव प्रणव अभिनय किया. तीसरी कसम फिल्म के गीतों के मुखड़ों को शैलेन्द्र ने " मारे गये गुलफाम " कहानी से हूबहू लिया. इन गीतों को लयबद्ध करने में उन दिनों के सुप्रसिद्ध संगीतकार शंकर जयकिशन की जोड़ी ने जी जान लगा दिया. नतीजा निकला. सभी गीत सुपर हिट हुए. सजन रे झूठ मत बोलो, दुनियां बनाने वाले क्या तेरे मन में समाईं, सजनवा बैरी हो गये हमार, पान खाए सैंया हमारो, चलत मुसाफिर को मोह लिया रे..,लाली लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनियां ,अजी हां मारे गये गुलफाम -आदि सभी गीत आज भी श्रब्य हैं.तीसरी कसम अपने श्रेष्ठतम अभिनय एंव बेजोड़ निर्देशन के लिए जानी जाती है. इसके निर्देशक वासु भट्टाचार्य थे. वासु ने फिल्म अनुभव, आविष्कार, गृह प्रवेश समेत कई फिल्मों का निर्देशन किया था, पर तीसरी कसम जैसा जादू वे फिर कभी नहीं दुहरा पाए. इस फिल्म के संवाद लेखक खुद फणीश्वर नाथ रेणु थे. उनके सम्वाद की रवानगी, सहजपन व ठेठ गवईं भाषा आम जन की भाषा बन गई , जिससे राज कपूर बहुत दिनों तक उबर नहीं पाए थे. वे शूटिंग के बाद भी फिल्म वाले लहजे में हीं बात करते.
तीसरी कसम को 1966 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए राष्ट्रसजनवांपति द्वारा स्वर्ण कमल, 1967 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरूष्कार, 1967 में मास्को अंतराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरूष्कार मिल चुका है. इसके अतिरिक्त बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म करार दिया गया है. पाठ्य पुस्तक हिन्दी स्पर्श -2 में "तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र " लेख पढ़ाया जाता है.
जिस बैलगाड़ी में राजकपूर व वहीदा रहमान ने शूटिंग की थी, वह फणीश्वर नाथ रेणु की अपनी गाड़ी थी. आजकल यह बैलगाड़ी रेणु के भांजे के पास है,जो अाज भी अपना मौन दुखड़ा सुना रही है-
सजनवा बैरी हो गये हमार.
करमवां बैरी हो गये हमार.