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टीका लगने के बाद भी 3 साल तक मास्क लगाना अनिवार्य

प्रिंस कुमार 

वैश्विक महामारी कोरोना संकट से बचने को लेकर विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों के द्वारा दी गई सुझाव को अगर सफ़ल जिंदगी जीना है तो हम लोगों को अब मास के सुरक्षित शारीरिक दूरी हाथ धोना और ईम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहिए।हम जब भी घर से बाहर निकलते हैं तो खुद को सामाजिक परिस्थितियों के हिसाब से तैयार करते हैं यानी बेहतर कपड़े और जूते चप्पल पहनते हैं यह पहनना नहीं भूलते हैं इसी तरह अब मास्क को जिंदगी का हिस्सा और जरूरत दोनों बना लेना चाहिए।यदि आप मास्क लगाए बगैर बाहर निकलते हैं तो आपको लगना चाहिए कि आपने कपड़ा नहीं पहनी है इससे कपड़े की तरह जरूरी और मोबाइल फोन की तरह आदत बना लेना चाहिए। वैसे तो टीका लगने के बाद भी 3 साल तक मास्क लगाना अनिवार्य होना चाहिए, यदि यह कि आप हमारी जिंदगी का हिस्सा भी बन जाए तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। कोविंड-19 तो वायरस का एक प्रकार है।ऐसे ही कितने अनगिनत वायरस वायुमंडल में मौजूद है। अभी इसलिए महामारी फैलाई है हो सकता है भविष्य में किसी और वायरस का आक्रमण हो। मास्क पहने से संभवत उनमें से कई तरह के वायरस के आक्रमणों से बचा जा सकता है।

डॉक्टरी सहित कई पेशे में अभी तक मास्क इस्तेमाल होता रहा है लेकिन मास्क का असली महत्व शुरू हो गया है फिर भी पूरे देश में टीका लगने में समय लगेगा , मास्क का असली महत्व समझ में आ रहा है इस पूरी अवधि में संभवत हर खास और आम में इसके फायदे को महसूस किया है। यदि आप मुझसे मेरे निजी विचार पूछेंगे तो मैं कहूंगा मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया जाए। इससे हवा में फैले वायरस से बचा जा सकता है यह तो हुआ वैचारिक पक्ष, जिस पर बहस हो सकती है ।इसके साथ ही एक व्यवहारिक पक्ष यह भी है कि वैक्सीन का इंतजार लगभग खत्म हो चुका है ।टीकाकरण अभियान का मॉक ड्रिल शुरू हो गया है। फिर भी पूरे देश में टीका लगने में समय लगेगा ,पहले डोज के बाद दूसरे डोज का इंतजार करना होगा ।इसके साइड इफेक्ट से अच्छे बुरे परिणाम सामने आने में लंबा वक्त लगेगा, इस दौरान एहतियात बरतने ही होगी।साथ ही शारीरिक की दूरी का पालन करना भी जरूरी होगा ,अब आते ही टीकाकरण के दौरान और बाद की स्थिति पर दुनिया भर में हुए तमाम शोध के आधार पर यह साबित हुआ है कि महामारी को रोकने के लिए 80 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण जरूरी है।

वैक्सीन की करोड़ों डोज बनना भी आसान नहीं है, भारत जैसे देश में वैक्सीन को बड़ी आबादी तक पहुंचने में कुछ वक्त लगेगा। सरकार और फार्मा कंपनियों के बीच समझौते कई देशों की प्रतीक्षा सूची ,वितरण प्रणाली और स्टोरेज जैसी कई चुनौतियां सामने आएगी, इस दौरान जिन को वैक्सीन नहीं लगा होगा या एहतियात नहीं बरतने पर परेशान हो सकते हैं और सबसे आखरी में वैज्ञानिकों द्वारा अब तक हुए शोध में यह बात सामने आई है कि वैक्सीन शरीर में वायरस को फैलने से रोकेगी। लोगों को बीमार होने से बचाएगी। लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं है कि उसे दूसरों को कोरोना संक्रमण नहीं होगा।

वैक्सीन भी आएगी और दवाइयां भी, मुझे उम्मीद है कि इनकी बदौलत हम पहले की तरह सामान्य जिंदगी में भी लौट आएंगे, लेकिन मास्क लगाने, बार-बार हाथ धोने और सुरक्षित शारीरिक दूरी से कोरोना से बचाव होता है। यह बीते 1 साल में साबित हो गया है। यह टेस्ट फार्मूला है और अब हमारी आदत में शुमार हो गया है इसके लिए अब किसी परीक्षण या प्रमाण की जरूरत नहीं है इसे बनाए रखना होगा।

महामारी के शुरुआती दिनों में किस तरह से लोग डरे हुए थे ।घरों में कैद होने को मजबूर हो गए थे ।लेकिन एहतियात से ही भारत जैसे विशाल देश इससे उबरने की कोशिश में कामयाब हो गया ,अब हमें डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमने इसके साथ जीना सीख लिया है बस थोड़ी सी सावधानी जरूरी है।कोरोना संक्रमण के कारण पिछले साल के कई महीने कठिन दौर से गुजरे हैं। रोजी रोजगार और पढ़ाई ठप हो गई थी और धीरे-धीरे जीवन पटरी पर लौट रहा है।

बिहार के साथ जिला शिवहर में भी स्कूल में कुछ कक्षाएं शुरू हो गई है यह शुरुआत कब हो रही है जब देश को दो कोरोना वैक्सीन मिल गई है। वैक्सीन देने का काम शीघ्र शुरू होगा ।इस बीच स्कूल में पढ़ाई शुरू होना महत्वपूर्ण घटनाक्रम है ।कोरोना के भय से हम थोड़ा उभरे, कार्यालय बाजार और कारखाने खोले गए ,फिर धीरे-धीरे अन्य प्रतिबंधित शिथिल हुए ,स्कूलों का खुलना इस प्रक्रिया का सबसे अहम हिस्सा है। छोटे बच्चों के लिए स्कूल अभी नहीं खुल रहे हैं उम्मीद है कि इस महीने के अंत तक सभी कक्षाओं में पढ़ाई शुरू हो जाएगी यह शुभ संकेत है हालांकि ऐसी परिस्थिति में सतर्कता और बढ़ानी होगी, बच्चों को स्कूल भेजने के क्रम में दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन जरूरी होगा। स्कूल आने-जाने ,कक्षा में बैठने लंच- ब्रेक और खेल जैसी तमाम गतिविधियां नियमों के दायरे में रहकर चलेगी। बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर तनिक भी लापरवाही नहीं होनी चाहिए घर से लेकर स्कूल तक बच्चों पर निगाह रखनी होगी, अनुभव यह बता रहा है कि ऑनलाइन पढ़ाई एक विकल्प तो हो ही सकती है लेकिन इसके साइड इफेक्ट है ,यह बच्चों के संपूर्ण विकास में मदद नहीं कर सकती है, विद्यालय जाना, कक्षाओं में पढ़ना, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में शामिल होना ,बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है। ऑनलाइन पढ़ाई के नुकसान के तमाम उदाहरण सामने आए हैं बच्चे मोबाइल और लैपटॉप पर पढ़ते पढ़ते और ध्यान भटकने वाले गेम्स और वीडियो देखने लग रहे थे, जिन बच्चों के पास आधुनिक उपकरण नहीं थे उनके लिए घर बैठे पढ़ाई कठिन थी इस लिहाज से स्कूलों का खुला अत्यंत जरूरी था।कोरोना अनुशासन के पालन को लेकर लापरवाही नहीं हो इसके लिए प्रशासन भी अलर्ट गरहना चाहिए।

कोरोना वैक्सीन का ट्रायल चल रहे हैं इसको लेकर हर आम और खास में उत्साह का संचार है ।अर्थ जगत भी इस पूरी प्रक्रिया को आशा भरी नजरों से देख रहा है। जिनके रोजगार कोरोना काल में छिन गए हैं इसके जल्द पटरी पर लौटने की उम्मीद में हैं।कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा इसे राजनीतिक परिदृश्य तैयार किया जा रहा है ,क्या उन्हें वैज्ञानिकों की मेहनत पर यकीन नहीं है, क्या राजनीति की यही मतलब है अभी देश में किसानों के आंदोलन चल रहे हैं। ऐसी गंभीर स्थिति में हर व्यक्ति को उत्साह का संचार करना चाहिए ना कि नैराश्य पूर्ण वातावरण उत्पन्न करने में अपनी उर्जा लगानी चाहिए।

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