मतलब--चौपाई मानस से है लेकिन मर्म बेरोजगारी से जुड़ा हुआ है
शिवहर--बेरोजगारी का आलम यह है कि लोग पढ़ लिख कर भी नौकरी पाने की ललक में हमेशा बेचैन रहते हैं ।परिवार की भरण-पोषण को लेकर यत्र तत्र रह कर भी काम करने के लिए प्रयास करते रहते हैं अंततः काम नहीं मिलने पर लोग किसी तरह अपने जीविका को चलाने को लेकर छोटा-मोटा रोजगार खोल कर जीवन यापन करते देखे जा रहे हैं ऐसा ही जीरो माइल चौक शिवहर में एक शिक्षित व्यक्ति ने शिक्षित बेरोजगार चाय दुकान का बोर्ड लगा कर जीवन यापन शुरू किया है।
भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है किंतु काम करने के लिए राजी होते हुए भी बहुतों को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता है ऐसे व्यक्तियों का जो मानसिक और शारीरिक दृष्टि से कार्य करने की योग्य और इच्छुक है परंतु जिन्हें प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता उन्हें बेकार कहा जाता है। वैसे लोगों बेरोजगार की लाइन में खड़े होकर अपने परिवार के भरण-पोषण को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं।
शिक्षित चाय स्टाल के एस के पटेल ने बताया है कि मैं पढ़ा लिखा हूं रोजगार नहीं मिला तथा मीरा फैमिली ग्राउंड भी कुछ भी नहीं है इसीलिए थक हार कर शिक्षित बेरोजगार चाय दुकान का बोर्ड लगा कर रोजगार शुरु किया है।
उसने बताया है कि ऐसा देखा जा रहा है कि चपरासी की भर्ती निकली नहीं की हजारों लाखों लोग जो एमए एवं पीएचडी कर के बैठे हैं वह चपरासी का फॉर्म भर कर छोटे-छोटे पढ़े लिखे लोगों को बेरोजगार कर रहे हैं यह सबसे बड़ा उदाहरण है।अपने देश में बेरोजगारी की आलम यह है कि क्वालिफिकेशन के हिसाब से पर्याप्त नौकरी नहीं है इस वजह से लोग या तो खाली बैठे हैं या फिर कोई छोटा मोटा काम कर जीवन यापन कर रहे हैं ।मिसाल के तौर पर अगर कोई भी बीटेक पास लड़का ट्यूशन पढ़ा रहा है, कोई चाय की दुकान कर जीवन यापन करने को मजबूर है ।शिक्षित बेरोजगारी मतलब उसकी एजुकेशन और स्किल की हिसाब से उसके रोजगार नहीं मिल रहा है।
इस बाबत राजलक्ष्मी ग्रुप सेवा संस्थान के निदेशक देवव्रत नंदन सिंह उर्फ सोनू बाबू ने बताया है कि संरचनात्मक बेरोजगारी व बेरोजगारी है जो अर्थव्यवस्था में होने वाले रचनात्मक बदलाव के कारण उत्पन्न होती है शिवहर जिले में खुली बेरोजगारी ज्यादा है जिसमें श्रमिक काम करने के लिए उत्सुक है और उसको काम करने की आवश्यकता है, योग्यता भी है तथापि उसे काम प्राप्त नहीं होता है ।वह पूरा समय बेकार रहते है ,परिवार के भरण-पोषण को लेकर गांव में काम नहीं मिलने के कारण शहर की ओर रुख करते हैं ऐसी बेरोजगारी प्रायः कृषि श्रमिकों, शिक्षित व्यक्तियों तथा उन लोगों में पाई जाती है जो गांव से शहरी हिस्सों में काम की तलाश में आते हैं ,पर उनको काम नहीं मिलता यह बेरोजगारी की नग्न रूप है।
बेलवा पंचायत के पूर्व मुखिया राज किशोर पांडे ने बताया है कि मौसमी बेरोजगारी-- व्यक्तियों को वर्ष के केवल मौसमी महीनों में ही काम मिलता है ।भारत में कृषि क्षेत्र में बुवाई तथा कटाई के मौसम में अधिक लोगों को काम मिल जाता है किंतु शेष वर्ष हुए बेकार रहते हैं। बेरोजगार सिर्फ बेरोजगार नहीं होते हैं बेरोजगारों के अंदर कई तरह के बेरोजगार होते हैं इस वक्त कोविंड संकट के चलते पूरी दुनिया के साथ शिवहर भी बेरोजगारी से जूझ रहा है। जबकि जिले में मनरेगा के तहत मजदूरों को काम ना के बराबर है। कोई से देश में पहले से ही बेरोजगारी की स्थिति दयनीय है। कोविंड-19 के चलते बेरोजगारी की हालत और बिगड़ गई है।
ऐसे में शिक्षित बेरोजगार व्यक्ति के द्वारा बोर्ड लगाकर रोजगार करना कहीं ना कहीं प्रशासन एवं सरकार को मुंह चिढ़ाते नजर आ रहा है।